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यहां की महिलाओं ने बंजर खेतों में लहलहाई फूलों की महक

टिहरी जिले के चोपड़ीयाल गांव व चुरेड़धार की महिलाओं ने गांव में बंजर खेतों को आबाद कर उनमें फूलों की खेती शुरू की है। जो उनकी नियमित आय का जरिया भी बन गई है।

By BhanuEdited By: Published: Tue, 04 Sep 2018 10:37 AM (IST)Updated: Tue, 04 Sep 2018 10:37 AM (IST)
यहां की महिलाओं ने बंजर खेतों में लहलहाई फूलों की महक
यहां की महिलाओं ने बंजर खेतों में लहलहाई फूलों की महक

चंबा, टिहरी [जेएनएन]: महिलाओं को थोड़ा सहयोग मिले तो वह प्रेरणादायी कार्य करने लगती हैं। इसका उदाहरण हैं टिहरी जिले के चोपड़ीयाल गांव व चुरेड़धार की महिलाएं। इन महिलाओं ने गांव में बंजर खेतों को आबाद कर उनमें फूलों की खेती शुरू की है। जो उनकी नियमित आय का जरिया भी बन गई है। 

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प्रखंड चंबा के चोपड़ीयाल गांव व चुरेड़धार में करीब सात पूर्व तक जिन खेतों में खरपतवार के सिवा कुछ और नजर नहीं आता था, आज उनमें फूलों की खेती लहलहा रही है। यह संभव हो पाया महिलाओं की मेहनत और एकीकृत आजीविका सुधार परियोजना से। 

आजीविका परियोजना ने गांव की महिलाओं को संगठित कर उनका समूह बनाया और फिर उन्हें बंजर खेतों में फूलों की खेती करने के लिए प्रेरित किया। फिर क्या था, महिलाएं पूरे मनोयोग से खेतों को आबाद करने में जुट गईं। 

आजीविका परियोजना ने उन्हें न सिर्फ फूलों के बीज उपलब्ध कराए, बल्कि उद्यान विभाग के सहयोग से फूलों की खेती का प्रशिक्षण दिलाया। इसके बाद महिलाओं ने अप्रैल में करीब 40 नाली भूमि पर गेंदे के पूसा बसंती प्रजाति के फूलों की नर्सरी तैयार की। 

एक-एक सप्ताह के अंतराल पर खेतों में गेंदे के पौधों का रोपण किया गया, जिन पर इन दिनों फूल खिल रहे हैं। 

बिक्री के लिए ऋषिकेश भेजे फूल 

हाल ही में महिलाएं एक क्विंटल फूल बिक्री के लिए ऋषिकेश भेज चुकी हैं। साथ ही वहां से दो क्विंटल फूलों की और डिमांड आई है। इन फूलों की कीमत 50 से 70 रुपये प्रति किलो तक है। ये पौधे दीवाली तक फूल देंगे। 

इसके बाद दूसरी प्रजाति के फूलों के पौधे लगाए जाएंगे। फूलों की खेती से चोपड़ीयाल गांव व चुरेड़धार की एक दर्जन से अधिक महिलाएं जुड़ी हुई हैं। फूलों की बिक्री से प्राप्त धनराशि को ये महिलाएं आपस में बांट लेंगी।

शकुंतला देवी, कमला बधाणी व राजेश्वरी बताती हैं कि फूलों की खेती में कम मेहनत लगती है, जबकि मुनाफा अच्छा-खासा हो जाता है। साथ ही बाजार के लिए भी नहीं भटकना पड़ता। कहती हैं कि स्थानीय स्तर पर भी फूलों की काफी डिमांड है। जैसे-जैसे लोगों को पता लग रहा है, वैसे-वैसे डिमांड भी बढ़ रही है।

महिलाओं की मेहनत का नतीजा 

परियोजना प्रबंधक डॉ. हीराबल्लभ पंत के मुताबिक महिलाओं की मेहनत और एकीकृत आजीविका से यह संभव हो पाया है। फूलों की खेती अच्छा कारोबार है और महिलाओं के लिए यह कार्य आसान भी है। परियोजना का उद्देश्य भी यही है कि खेती आदि कार्यो से उनकी आय बढ़ाई जाए। परियोजना के माध्यम से फूलों की बिक्री में भी महिलाओं की मदद की जाएगी।

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