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Water Conservation: टिहरी जनपद में चिड़ियाली के ग्रामीणों ने सहेजी पानी की बूंदें, फूटी धारा

चंबा प्रखंड के चिड़ियाली गांव के ग्रामीणों ने पानी की बूंदों को सहेज कर मिसाल पेश की है। ग्रामीणों ने न केवल बरसाती पानी को सहेज कर रखा बल्कि वर्षों पहले सूख चुके गांव के प्राकृतिक जल स्रोत को पुनर्जीवित कर गांव में पानी के संकट को दूर किया।

By Edited By: Published: Mon, 05 Apr 2021 03:00 AM (IST)Updated: Mon, 05 Apr 2021 03:00 AM (IST)
Water Conservation: टिहरी जनपद में चिड़ियाली के ग्रामीणों ने सहेजी पानी की बूंदें, फूटी धारा
टिहरी जनपद के चंबा प्रखंड के चिड़ियाली में ग्रामीणों द्वारा बनाई गई चहल।

संवाद सहयोगी, नई टिहरी।  Water Conservation चंबा प्रखंड के चिड़ियाली गांव के ग्रामीणों ने पानी की बूंदों को सहेज कर मिसाल पेश की है। ग्रामीणों ने न केवल बरसाती पानी को सहेज कर रखा, बल्कि वर्षों पहले सूख चुके गांव के प्राकृतिक जल स्रोत को पुनर्जीवित कर गांव में पानी के संकट को दूर किया। भविष्य में पानी की बढ़ती चुनौतियों को भांपते हुए ग्रामीणों के भगीरथ प्रयास से आज जलस्रोत पर पानी धारा फूट रही है।

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चिड़ियाली गांव में करीब 45 परिवार निवास करते हैं। यह गांव पिछले करीब छह-सात साल से पानी का संकट झेल रहा था। ग्रामीण करीब डेढ़ किलोमीटर दूर नदी से पानी ढोते थे, जिससे उनका अधिकांश समय पानी ढोने में ही व्यतीत होता था। गांव में शादी-ब्याह व अन्य सार्वजनिक कार्य में उन्हें रातभर पानी की व्यवस्था में लगना पड़ता था। गर्मियों में खच्चरों से गांव में पानी की आपूर्ति की जाती थी। वर्ष 2015 में ग्रामीणों ने जन जागृति संस्था खाड़ी के सहयोग से गांव के पुराने सूख चुके जलस्रोत के आस-पास बांज, देवदार के पौधों के रोपण के साथ ही कुज्जू, किनगोड़ सहित ऐसी झाड़ियां घास उगाई, जो पानी के लिए महत्वपूर्ण माने जाते है। 

इसके अलावा, उन्होंने जलस्रोत के ऊपर बरसाती कच्ची चाल का निर्माण किया, जहां बरसात का पानी जमा होकर जमीन का नमी प्रदान करता है। ग्रामीणों की मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति आखिर रंग लाई और करीब दो साल पहले जलस्रोत से पानी की धार फूटने लगी। पर्याप्त मात्र में स्नोत से पानी आ रहा है। स्रोत के ऊपर गड्ढे बनाकर बरसात के पान को जमा किया जा रहा है। इससे गांव के ग्रामीणों के पीने के पानी की पूर्ति हो रही है। अब ग्रामीणों को डेढ़ किलोमीटर दूर से पानी नहीं ढोना पड़ रहा है। पिछले दो सालों से स्रोत पर निरंतर पानी की धार बह रही है। 

जल स्रोत के पास पनपा रहे जंगल

ग्रामीणों ने अब जल स्रोत के पास जंगल संरक्षित करना शुरू कर दिया, ताकि पानी की निरंतरता बनी रहे और गांव के आसपास का क्षेत्र हराभरा बना रहे। प्रधान निर्मला मंद्रवाल का कहना है कि यहां पर बरसात के समय ग्रामीण बांज, बुरांश आदि का पौधारोपण शुरू कर दिया। पिछले चार-पांच सालों में यहां पर करीब तीन हजार से अधिक पौधों का रोपण किया गया जिनका ग्रामीण नियमित देखभाल करते हैं। वहीं पूर्व में लगाए गए पौधे भी अब बड़े होने लगे हैं।

सामूहिक प्रयास से हुआ संभव

गांव में जब पानी की समस्या बढ़ने लगी तो ग्रामीणों ने इसके लिए पहल शुरू की। पांच साल पहले ग्रामीण ने मिलकर सबसे पहले गांव के जल स्रोत के आसपास पौधों का रोपण किया, यहां पर पत्तीदार घास उगाई। इसमें जन जागृति संस्था खाडी ने ग्रामीणों का सहयोग किया। स्रोत के ऊपर करीब सात-आठ चाल बनाई, ताकि बारिश का पानी इसमें जमा हो सके। इसका यह परिणाम हुआ कि पिछले डेढ़ दो साल से प्राकृतिक जलस्रोत पर पानी चलना शुरू हो गया। ग्रामीण बबली देवी, चैता देवी, पूरण सिंह राकेश सिंह का कहना है कि गांव में सालों से पानी की समस्या बनी थी, महिलाएं खेती-बाड़ी का काम छोड़ पानी ढोने में लगी रहती थी। ग्रामीणों के सामूहिक श्रमदान से आज गांव में पानी की समस्या दूर हुई है।

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