रातों रात बदला देश, लांबा परिवार ने मेहनत से बदली किस्मत
रातों रात बदला देश लांबा परिवार ने मेहनत से बदली किस्मत
रातों रात बदला देश, लांबा परिवार ने मेहनत से बदली किस्मत
: हरिराम लांबा और उनके परिवार का रातों रात देश बदल गया। भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान पाकिस्तान के हजारा जिले से जान बचाकर कश्मीर पहुंचे हरिराम लांबा और उनकी पत्नी कौशल्या और अन्य संबंधियों को नियति टिहरी लेकर आ गई। जहां वर्ष 1948 में हरिराम लांबा ने सड़क किनारे कपड़े बेचने से नई शुरुआत की और देखते ही देखते वह टिहरी के प्रतिष्ठित कपड़ा व्यापारी बन गए। आज हरिराम लांबा दुनिया में नहीं हैं। लेकिन, उनके बेटे नई टिहरी के बौराड़ी और ऋषिकेश में कपड़ों के प्रतिष्ठित व्यापारी हैं।
भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान हरिराम लांबा हजारा जिले से जान बचाकर भारत आ गए। उस दौरान उनका पाकिस्तान में कपड़े का अच्छा व्यापार था। लेकिन, विभाजन ने उनसे सब छीन लिया। विभाजन के दौरान कुछ महीने कश्मीर के शरणार्थी कैंप में रहने के बाद वह दिल्ली पहुंचे और वहां से 1948 में टिहरी आ गए। टिहरी में उन्होंने सड़क किनारे कपड़े बेचने का काम शुरू किया। उस दौरान शरणार्थी होने के कारण किसी ने भी उन्हें दुकान किराये पर नहीं दी। बाद में जब व्यापार चमक गया तो 1950 में उन्होंने टिहरी में हरिराम एंड संस के नाम से कपड़े की दुकान खोली। उसके बाद मेहनत के बल पर वह कुछ समय में ही टिहरी के प्रतिष्ठित व्यापारी बन गए। उसके बाद 1984 में उनके बेटे केवल किशोर लांबा और राकेश लांबा ने दुकान का नाम बदलकर मयूर कलेक्शन किया। 1991 में हरिराम लांबा और उनकी पत्नी कौशल्या देवी का निधन हो गया। उसके बाद उनके बेटे राकेश लांबा नई टिहरी के प्रतिष्ठित व्यापारी हैं और उनके भाई ऋषिकेश में कपड़े के प्रतिष्ठित व्यापारी हैं। राकेश लांबा बताते हैं कि विभाजन के दौरान उनके पिता और मां के साथ उनकी बड़ी दीदी कंचन भी भारत आई थी। उनका और उनके भाइयों का जन्म टिहरी में ही हुआ था। पिता जब तक जीवित रहे तो विभाजन का दर्द उनके अंदर रहा। अपनी जन्मभूमि को छोड़ना सबसे बड़ा दर्द होता है। वह बताते थे कि कुछ लोग तो भारत आ गए। लेकिन, कई को तो वहीं मार दिया गया। हजारा जिले से टिहरी आकर बसने वाले स्व. रामचंद्र लांबा के बेटे हरिकृष्ण लांबा भी नई टिहरी में नवीन साड़ी सेंटर नाम से दुकान चलाते हैं। उन्होंने बताया कि विभाजन के दौरान उनके पिता रामचंद्र लांबा ही सभी को लेकर टिहरी आए। टिहरी उस दौरान बेहद सुरक्षित स्थान था। हरिकृष्ण लांबा के पास आज भी पाकिस्तान में उनके पैतृक क्षेत्र फ्रंटीयर सीमा प्रांत और हरिपुर हजारा जिले हजारा का पूरा नक्शा है। जिसे वह अपने सगे संबंधियों और रिश्तेदारों को अपने पुरखों की जमीन के बारे में बताते हैं।