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आपदा को मानवजनित परिस्थितियां जिम्मेदार

संवाद सहयोगी, चंबा: जलवायु परिवर्तन व आपदा के लिए मानवजनित परिस्थितियां जिम्मेदार हैं। इसके लिए हम स

By JagranEdited By: Published: Fri, 26 Oct 2018 10:39 PM (IST)Updated: Fri, 26 Oct 2018 10:39 PM (IST)
आपदा को मानवजनित परिस्थितियां जिम्मेदार
आपदा को मानवजनित परिस्थितियां जिम्मेदार

संवाद सहयोगी, चंबा: जलवायु परिवर्तन व आपदा के लिए मानवजनित परिस्थितियां जिम्मेदार हैं। इसके लिए हम सभी को मिलकर कार्य करना होगा। जलवायु परिवर्तन पर गढ़वाल विश्वविद्यालय के एसआरटी परिसर में शुरू हुई तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला के पहले दिन वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने यह बातें कहीं।

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गढ़वाल विवि के स्वामी रामतीर्थ परिसर (एसआरटी) बादशाहीथौल में जलवायु परिवर्तन और आपदा न्यूनीकरण पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमीनार शुरू हुआ।

सेमिनार में मुख्य वक्ता गढ़वाल विवि के भूगर्भ विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. एस प्रसाद ने कहा कि जंगलों में आग लगना एक बड़ी समस्या है, जिससे काफी नुकसान होता है। जंगलों में आग लगने के लिए 73 प्रतिशत घटनाएं मानव जनित होती हैं जब मात्र 27 प्रतिशत प्राकृतिक होती हैं उन्होंने कहा कि पहाड़ में चीड़ पर्यावरण के लिए घातक हैं इसलिए इसका उन्मूलन जरूर है। उन्होंने कहा कि चीड़ अपने नीचे घास नही उगने देता है इसलिए धीरे-धीरे पशुओं के चारे का संकट भी पैदा हो रहा है। वहीं एसआरटी परिसर के भूगर्भ विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो0 डीएस बागड़ी ने कहा कि विकास के लिए प्रकृति का दोहन किया जा रहा है उन्होंने अरावली पर्वत का उदाहरण देते हुए कहा कि सरकार राजस्व के लिए खनन कराती है जिससे एक ओर लाभ होता है वहीं दूसरी ओर नुकसान भी होता है। इसके लिए सभी पहलुओं पर विचार करके नीति बनाई जानी चाहिए। इससे पहले परिसर सभागार में टीएचडीसी सेवा के निदेशक मोहन ¨सह रावत गांववासी, परिसर निदेशक आरसी रमोला व अन्य वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यशाला का शुभारंभ किया। टीएचडीसी सेवा के निदेशक मोहन ¨सह रावत गांववासी ने कहा कि प्रकृति के साथ तो छेड़छाड़ किया जा रहा है जिससे ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज का भोगवादी विकास ही जलवायु परिवर्तन व आपदा के लिए जिम्मेदार है इससे निबटने के लिए सभी को अपने स्तर से प्रयास करने होंगे तभी जलवायु परिवर्तन व आपदा के खतरों से निबटा जा सकेगा। परिसर निदेशक प्रो. आरसी रमोला ने स्वागत भाषण दिया। उन्होंने बताया कि कार्यशाला में जलवायु परिवर्तन व आपदा पर विस्तार से चर्चा होगी। तीन दिवसीय सेमिनार में वैज्ञानिक अपने-अपने शोधपत्र प्रस्तुत करेंगे जिससे एक नया सुझाव पत्र तैयार होगा। कार्यशाला में पहले दिन परिसर के प्रो. डॉ. एनपी नैथाणी ने अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया और आपदा के विभिन्न पहलुओं की जानकारी दी। इस मौके पर सेमिनार के संयोजक डा. दीपक भट्ट, डा. हर्ष डोभाल ने भी उक्त विषय पर विचार व्यक्त किए। इस मौके पर सेमिनार के विषय जलवायु परिवर्तन और आपदा न्यूनीकरण पर प्रकाशित पुस्तक का भी विमोचन किया गया। इस मौके पर आइआइटी रुड़की से प्रो. एसके शराफ, प्रो. एसके भारतीय, दिल्ली विवि प्रो. ए शर्मा, प्रो. आरके नागार्जुन, प्रो. शिवी पांडेय, प्रो. शीतल कनौजिया, डॉ. राकेश भूषण गोदियाल, डा. केके बौड़ाई, पुस्तकालयाध्यक्ष हंसराज बिष्ट, डॉ. विमल मिश्रा आदि देशी विदेशी वैज्ञानिक मौजूद थे। देश विदेश के वैज्ञानिक प्रस्तुत करेंगे शोध पत्र

--सेमीनार में भारत के विभिन्न जगहों के अलावा जापान, चीन, ताइवान, अमेरिका, न्यूजीलैंड, नेताल इटली आदि देशों के करीब डेढ़ सौ वैज्ञानिक प्रतिभाग कर रहे हैं। जो तीन दिवसीय सेमीनार में अपने-अपने शोधपत्र प्रस्तुत करेंगे और उसके बाद सेमीनार की सलाहकार समिति उन शोधपत्रों के सार का एक सुझाव प्रस्ताव तैयार कर देश के पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को प्रेषित करेंगी। ---ताइवान में जलवायु परिवर्तन व आपदा के कारण कई तरह के दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। वहां यह समस्या भारत से बहुत अधिक है। इसलिए ताइवान सरकार जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए नई योजना बना रही है। हालांकि भारत में यह काम ज्यादा तेजी से हो रहा है। मै वहां के अनुभव व सरकार के काम को साझा करने के लिए यहां आई हूं।

डॉ. मिनचीन तसाई

वैज्ञानिक, मौसम नियंत्रक ब्यूरो ताइवान -यूरोपीय देशों में औद्योगिकीकरण व अन्य कई कारणों से कार्बन तेजी से बढ़ रहा है। यह जलवायु परिवर्तन का एक मुख्य कारण हैं। यह समस्या मुझे भारत में भी दिखाई देती है। जलवायु परिवर्तन के खतरों को कम करने के लिए पहले आंतरिक समस्या अर्थात कार्बन को घटाना पडे़गा। मै इसी विषय पर शोधपत्र प्रस्तुत कर रही हूं।

प्रो. फेडोरा क्वात्रोची,

डिरीजेंट टेक्नो इंस्टीट्यूट सेजिओन इटली। फोटो-26-एनडब्ल्यूटीपी 4

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