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विस्थापन से पहले ही कोट गांव में मौत का तांडव

मधुसूदन बहुगुणा, नई टिहरी भिलंगना प्रखंड के बूढ़ाकेदार क्षेत्र में हर साल बारिश कहर बनक

By JagranEdited By: Published: Wed, 29 Aug 2018 11:51 PM (IST)Updated: Wed, 29 Aug 2018 11:51 PM (IST)
विस्थापन से पहले ही कोट गांव में मौत का तांडव
विस्थापन से पहले ही कोट गांव में मौत का तांडव

मधुसूदन बहुगुणा, नई टिहरी

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भिलंगना प्रखंड के बूढ़ाकेदार क्षेत्र में हर साल बारिश कहर बनकर टूटती है। बुधवार तड़के क्षेत्र के कोट गांव में प्रकृति के कहर ने एक बार फिर ग्रामीणों को झकझोर कर रख दिया। आपदा की दृष्टि से संवेदनशील माने जाने वाले कोट, मेड, मरवाड़ी, कोटी, अगुंडा गांव के लोग बरसात के मौसम में इस कदर डर जाते हैं कि बारिश न होने की दुआ मांगने लगते हैं। बरसाती सीजन के लगभग गुजर जाने से ग्रामीण राहत में थे कि अचानक प्रकृति ने कोट गांव में अपना रौद्र रूप दिखा दिया।

भिलंगना प्रखंड आपदा की ²ष्टि से सबसे संवेदनशील है जिसे जोन पांच में रखा गया है। लंबे समय से विस्थापन की राह ताक रहे गांव कोट, कोटी, अगुंडा, मेड, मरवाड़ी के ग्रामीण वर्षों से आपदा की मार झेल रहे हैं। बरसात में यहां के ग्रामीण सहम जाते हैं। बरसात में अभी तक सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था कि बुधवार तड़के प्रकृति के कहर से गांव में मातम छा गया। वर्ष 2002 में बूढाकेदार के अगुंडा, कोटी, मेड, मरवाड़ी में बादल फटने से करीब 18 लोगों की मौत हो गई थी, वहीं वर्ष 2008 में भी कोट गांव सहित उक्त गांवों में पांच लोगों की जान गई थी। वर्ष 2013 की आपदा में कोट गांव में बादल फटने से तीन लोग जिंदा दफन हो गए थे। और इस साल बुधवार तड़के कोट गांव में भूस्खलन होने से सात लोगों की मौत हो गई है। इन गांवों को विस्थापन की श्रेणी में रखा भी गया है, लेकिन उनका इंतजार लंबा होता जा रहा है।

भूस्खलन व बादल फटने की घटनाएं सबसे ज्यादा भिलंगना प्रखंड में ही होती हैं। यहां के ग्रामीण बरसात में भय के कारण कुछ दिनों के लिए छानियों में चले जाते हैं। आपदा के दौरान जनप्रतिनिधि व बड़े अधिकारी गांव तो पहुंचते हैं, लेकिन मामला उससे आगे नहीं बढ़ पाता है। कोट गांव के धर्म ¨सह जखेड़ी और मंगल ¨सह का कहना है कि आपदा की दृष्टि से उक्त गांव संवेदनशील है और वह लंबे समय से विस्थापन की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही। कहा कि शासन प्रशासन इतनी संवेदनहीन हो गया है कि उन्हें लोगों की जान की भी प्रवाह नहीं है। जनसमस्याएं की फाइलें उनकी मेज पर धूल फांकती रहती हैं, लेकिन आगे नहीं सरकती और अंत में वहीं पड़ी-पड़ी दम तोड़ देती हैं और स्थानीय लोगों की जान से यह सरकारी खिलवाड़ यूं ही चलता रहता है।


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