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उत्तराखंड में टिहरी के प्रतापनगर स्थित पीड़ी पर्वत में मिला 50 करोड़ साल पुराना ‘स्ट्रोमैटोलाइट’

भू-विज्ञानी प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया ने बताया कि अरबों साल पहले धरती पर कुछ सरीसृप या अन्य जीव मौजूद थे मरने के बाद भी जिनके जीवाश्म सुरक्षित हैं। यह जरूर हुआ कि समय के साथ इन जीवाश्मों पर मिट्टी की परत जमती चली गई।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 29 Oct 2020 09:10 AM (IST)Updated: Thu, 29 Oct 2020 12:32 PM (IST)
उत्तराखंड में टिहरी के प्रतापनगर स्थित पीड़ी पर्वत में मिला 50 करोड़ साल पुराना ‘स्ट्रोमैटोलाइट’
उत्तराखंड में टिहरी के प्रतापनगर स्थित पीड़ी पर्वत में मिला स्ट्रोमैटोलाइट फॉसिल्स (धारीदार अवसादी शैल)। साभार: वन विभाग

अनुराग उनियाल, नई टिहरी। प्रतापनगर के पीड़ी पर्वत में स्ट्रोमैटोलाइट फॉसिल्स (धारीदार अवसादी शैल) का खजाना मिला है। तकरीबन 50 करोड़ साल पुराने माने जा रहे इस स्ट्रोमैटोलाइट को परीक्षण के लिए कुमाऊं विश्वविद्यालय भेजा गया था। विवि के भू-विज्ञानी प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया इस पर अध्ययन कर रहे हैं। पीड़ी पर्वत में कई अन्य स्ट्रोमैटोलाइट जीवाश्म भी मौजूद हैं।

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टिहरी वन प्रभाग के प्रतापनगर ब्लॉक में समुद्रतल से 8367 फीट की ऊंचाई पर स्थित पीड़ी पर्वत में मिले स्ट्रोमैटोलाइट फॉसिल्स मूल रूप से सायनोबैक्टीरिया की परत के ऊपर परत उगने से उत्पन्न होते हैं। सायनोबैक्टीरिया एक एककोशिकीय सूक्ष्मजीव होता है। इसी वर्ष सितंबर में वन विभाग की टीम ने यहां का दौरा किया था। इस दौरान पीड़ी पर्वत पर स्ट्रोमैटोलाइट की तरह कुछ नजर आया।

प्रभागीय वनाधिकारी कोको रोसे ने उन दिनों टिहरी दौरे पर आए कुमाऊं विश्वविद्यालय में कार्यरत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के भू-विज्ञानी प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया से इस संबंध में चर्चा कर स्ट्रोमैटोलाइट की जांच का आग्रह किया। प्रो. कोटलिया ने बताया कि इस स्ट्रोमैटोलाइट की उम्र लगभग 50 करोड़ साल हो सकती है। इस तरह के जीवाश्म करोड़ों साल पहले सरीसृप वर्ग के जीव रहे होंगे। इसलिए इसमें मौजूद तत्वों की जांच की जा रही है। इसके बाद जीवाश्म संरक्षण के लिए टिहरी वन प्रभाग को सौंप दिया जाएगा।

क्या होता है स्ट्रोमैटोलाइट जीवाश्म : भू-विज्ञानी प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया ने बताया कि अरबों साल पहले धरती पर कुछ सरीसृप या अन्य जीव मौजूद थे, मरने के बाद भी जिनके जीवाश्म सुरक्षित हैं। यह जरूर हुआ कि समय के साथ इन जीवाश्मों पर मिट्टी की परत जमती चली गई। लंबे अंतराल में प्राकृतिक बदलावों को ङोलते हुए ये जीवाश्म चट्टान में बदल गए।

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. राजेश वर्मा बताते हैं कि स्ट्रोमैटोलाइट असल में 90 से सौ करोड़ साल पुरानी काई (शैवाल) है। यह इस बात का संकेत है कि उस दौर में इन इलाकों में वातावरण न अधिक गर्म रहा होगा, न अधिक ठंडा ही। कम पानी, खासकर चूना पत्थर वाले इलाकों में इस तरह की काई का पाया जाना सामान्य बात है।

यहां मिले हैं स्ट्रोमैटोलाइट जीवाश्म: उत्तराखंड के अल्मोड़ा व नैनीताल जिलों के बाद अब टिहरी जिले में स्ट्रोमैटोलाइट जीवाश्म मिले हैं। प्रो. कोटलिया ने बताया कि प्रदेश के अन्य किसी जिले में उन्हें ऐसे जीवाश्म नहीं मिले। इन तीन जिलों में जीवाश्मों पर व्यापक शोध से नई जानकारी सामने आ सकती है। इससे इतिहास के कई नए अध्याय भी खुलेंगे, जो नए शोध में काम आएंगे।


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