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केदारघाटी में एक मंदिर ऐसा भी है, जहां भूमिगत शिवलिंग की होती है पूजा

केदारघाटी में एक मंदिर ऐसा भी है जहां भूमिगत शिवलिंग की पूजा होती है। मंदिर में जल चढ़ाने पर जल भूमिगत शिवलिंग में चला जाता है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 21 Feb 2020 10:29 AM (IST)Updated: Fri, 21 Feb 2020 08:04 PM (IST)
केदारघाटी में एक मंदिर ऐसा भी है, जहां भूमिगत शिवलिंग की होती है पूजा
केदारघाटी में एक मंदिर ऐसा भी है, जहां भूमिगत शिवलिंग की होती है पूजा

गुप्‍तकाशी (रुद्रप्रयाग), विमल तिवारी। केदारघाटी में एक मंदिर ऐसा भी है, जहां भूमिगत शिवलिंग की पूजा होती है। मंदिर में जल चढ़ाने पर जल भूमिगत शिवलिंग में चला जाता है। कहा जाता है कि तपस्वी व्यक्ति को ही इस शिवलिंग के दर्शन हो पाते है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने यहां पर एक रात्रि विश्राम (बासा) किया था। इसी बासा से यहां का नाम बसु (बासा) केदार (शिव) अर्थात बसुकेदार पड़ा। महाशिवरात्रि पर यहां पर भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना कर जलाभिषेक व रुद्राभिषेक किया जाता है। 

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अगस्त्युनि ब्लॉक में पड़ने वाले भगवान बसुकेदार का मंदिर का निर्माण सोलह सौ वर्ष पूर्व जगदगुरू शंकराचार्य ने किया था। यह कत्यूरी शैली मे निर्मित आठ छोटे बड़े मंदिरों का समूह है। मुख्य मंदिर शिव के केदार स्वरूप को समर्पित है। यह प्राचीन शिवालय समूचे 40 गांवों के आस्था का प्रतीक है।

सालभर श्रद्धालुओं का यहां आना जाना लगा रहता है। कहा जाता है कि बसुकेदार मंदिर के नीचे पानी भरा हुआ है। इसके अलावा गुप्त शिवलिंग है, जो पानी के नीचे है और भगवान भोले को जल चढ़ाने के बाद नीचे शिवलिंग में जाता है। जिसका वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में मिलता है। बसुकेदार में भगवान शिव की महिमा का विशेष महत्व है। केदारघाटी में भगवान शंकर के ज्यादातर मंदिर केदारनाथ की आकृति के बने हैं। चाहे वह गुप्तकाशी का विश्वनाथ मंदिर हो या फिर त्रियुगीनारायण। 

प्रत्येक वर्ष महाशिव रात्रि पर्व पर यहां भगवान के दर्शनों के लिए दूर दराज क्षेत्रों से बड़ी संख्या में भक्तजन पहुंचते है। कहा कि जाता है कि जो भक्त यहां सच्चे मन से भगवान की शरण में पहुंचा है, उसे मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। सामाजसेवी भानु प्रकाश भट्ट बताते है कि केदारखंड में भगवान बसुकेदार मंदिर के साथ ही मंदिर समूह का वर्णन भी है। 

मंदिर में रह रहे बाबा अविदूत गिरी एवं माई तारागिरी ने बताया कि बसुकेदार मंदिर से क्षेत्र के लगभग चार दर्जन से अधिक गांवों की आस्था जुड़ी है। प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर्व पर मंदिर में सुबह से शाम तक भक्तों का तांता लगा रहता है। उन्होंने शासन-प्रशासन के साथ ही सरकार से मंदिर के संरक्षण के लिए ठोस पहल करने की मांग भी की है। 

शिव ने किया था रात्रि विश्राम 

मान्यता है कि गौत्र हत्या के पाप से मुक्ति के लिए जब पांडव स्वर्गारोहिणी जा रहे थे, तो उस समय पांडवों ने भगवान शिव की तपस्या की, लेकिन भगवान भोले पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे और यहीं से होकर भगवान शिव केदारनाथ गए थे। भगवान शंकर ने एक रात्रि इसी स्थान पर विश्राम किया था, जिससे यहां का नाम बसुकेदार रखा गया। जिसका वर्णन केदारखंड में मिलता है। 

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ऐसे पहुंचे बसुकेदार मंदिर 

रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाईवे पर पहला मार्ग रुद्रप्रयाग से विजयनगर तक 20 किमी, उसके बाद विजयनगर-डडोली-बसुकेदार मोटरमार्ग से 20 किमी दूरी तय करके बसुकेदार पहुंचा जा सकता है। दूसरा मार्ग रुद्रप्रयाग से बांसवाडा 30 किमी, उसके बाद बांसवाडा-बष्टी-बसुकेदार मोटरमार्ग से 12 किमी दूरी तक बसुकेदार पहुंचा जा सकता है। तीसरा मार्ग रुद्रप्रयाग-गुप्तकाशी हाईवे पर 42 किमी व उसके बाद गुप्तकाशी-मयाली मोटमार्ग से 25 किमी दूरी तय बसुकेदार पहुंचा जा सकता है। बसुकेदार क्षेत्र में उतरने के बाद सड़क से दो सौ मीटर पैदल दूरी तय कर मंदिर पहुंचा सकता है। 

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