Navratri 2022 : इस मंदिर में देवी भगवती ने लटकाए थे चंड व मुंड के सिर, रक्तबीज के संहार के बाद यहां हुई थीं अंतरध्यान
Navratri 2022 कालीमठ मंदिर सिद्धपीठों में शामिल है। देवी भागवत कथा में लिखा है कि इसी क्षेत्र के मनसूना स्थान में दो बलशाली राक्षस शुम्भ- निशुम्भ रहते थे। चैत्र व शारदीय नवरात्रों में यहां विशेष पूजा होती है।
टीम जागरण, रुद्रप्रयाग : Navratri 2022 : उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में गौरीकुंड हाईवे के पास प्रसिद्ध सिद्धस्थल मां काली का मंदिर कालीपीठ स्थित है। देवी भागवत कथा में लिखा है कि इसी क्षेत्र के मनसूना स्थान में दो बलशाली राक्षस शुम्भ- निशुम्भ रहते थे। इन दोनों राक्षसों का लोगों पर जुल्म बढ़ गया था। दोनों ने कई निर्दोष लोगों को मार डाला और देवताओं को मारने के लिए भी उतारु हो गए।
तब सभी देवताओं ने कालीशिला नामक स्थान पर देवी की अराधना की। जिसके बाद देवी भगवती कालीशिला में 14 वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हुई। इस कन्या ने राक्षसों का वध करना शुरू कर दिया। कन्या ने सबसे पहले चंड व मुंड का वध कर कालीमठ में दोनों के सिर एक कुंडी में लटका दिए थे। यह कुंडी आज भी कालीमठ में मुख्य मंदिर के अंदर देखी जा सकती है।
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शुम्भ-निशुम्भ राक्षस भी कालीमठ में चंडिका से युद्ध करने गए तो चंडिका ने दोनों राक्षसों का वध कर उन्हें मार डाला। मान्यता है कि रक्तबीज के संहार के बाद काली माई इसी स्थान से अंतरध्यान हो गई थीं। नवरात्र पर हर साल इस मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
कैसे पहुंचे कालीपीठ?
- ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे रुद्रप्रयाग तक-130 किमी दूरी तय करनी होगी
- रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाईवे पर गुप्तकाशी-42 किमी दूरी तय करनी होगी
- यहां से गुप्तकाशी से कालीमठ मार्ग पर-10 किमी पर काली नदी के दूसरे छोर पर कालीमठ मंदिर में पहुंचा जा सकता है।
सिद्धपीठ में शामिल है यह मंदिर
- कालीमठ मंदिर सिद्धपीठों में शामिल है।
- चैत्र व शारदीय नवरात्रों में यहां विशेष पूजा होती है।
- कालीमठ मंदिर का वर्णन स्कंद पुराण के अन्तर्गत केदारखंड में इसका उल्लेख मिलता है।
- साथ ही मार्कण्डेय पुराण व देवी भागवत महापुराण में भी कालीमठ मंदिर का वर्णन मिलता है।
सिद्धपीठ कालीमठ में नवरात्रों में स्थानीय भक्तों के साथ ही देश-विदेश के भक्त बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। नवरात्रों में जो भक्त श्रद्धाभाव एवं सच्चे मन से मां की पूजा करते है उनकी सभी मनोकमानाएं पूरी हो जाती है।
- जयप्रकाश गौड़, पुजारी, कालीमठ मंदिर रुद्रप्रयाग