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जानलेवा बना पनपतिया-मदमहेश्वर ग्लेशियर

संवाद सहयोगी, रुद्रप्रयाग: समुद्रतल से बीस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित पनपतिया-मद्महेश्वर ट्रैक काफी

By JagranEdited By: Published: Wed, 13 Jun 2018 11:25 PM (IST)Updated: Wed, 13 Jun 2018 11:25 PM (IST)
जानलेवा बना पनपतिया-मदमहेश्वर ग्लेशियर
जानलेवा बना पनपतिया-मदमहेश्वर ग्लेशियर

संवाद सहयोगी, रुद्रप्रयाग: समुद्रतल से बीस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित पनपतिया-मद्महेश्वर ट्रैक काफी खतरनाक होने के बावजूद विदेशियों के साथ ही विशेषकर पश्चिमी बंगाल के ट्रैकर्स इसे पंसद कर रहे हैं। गत वर्ष सितंबर महीने में इंडियन ऑयल के 13 सदस्यीय टीम ने भी इस ट्रैक पर जाने का जोखिम उठाया था, जिसमें उनके एक वरिष्ठ अधिकारी की मौत हो गई, जबकि इस बार भी भारतीय रेलवे के एक इंजीनियर को अपनी जान गंवानी पड़ी।

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चमोली जनपद के लामबगड़ से मद्महेश्वर ट्रैक तक लगभग 120 किमी लंबा पनपतिया मद्महेश्वर ट्रैक का अधिकांश क्षेत्र समुद्र तल से बीस हजार फीट से लेकर 18 हजार फीट से होकर गुजरता है। इस ट्रैक पर विशेषकर पश्चिमी बंगाल के ट्रैकर्स व विदेशी ही जाना पसंद करते हैं। पनपतिया ग्लेशियर से सरियो सरोवर के बीच काफी खतरनाक चढ़ाई है। साथ ही यहां पर अक्सर मौसम काफी खराब रहता है, पूरी चोटी बर्फ से ढ़की रहती है। पनपतिया ग्लेशियर को पार करने के बाद ही ट्रैकर्स मद्महेश्वर पहुंचते हैं। गत वर्ष सितंबर 25 तारीख को भी इंडियन ऑयल के 13 सदस्यीय ट्रै¨कग दल पनपतिया के पास ही फंस गया था, किसी तरह इन ट्रैकर्स को हेलीकॉप्टर से रेस्क्यू कर बचाया जा सका, जबकि एक ट्रैकर की मौत हो गई थी। इस बार भी गत 5 जून को 23 सदस्यीय एक ट्रै¨कग दल खीरों नदी के पास लामबगड चमोली जनपद से रवाना हुआ था, जिसमें एक सदस्य की 11 जून को मौत हो गई। यह ट्रैक रूट काफी ऊंचाई पर स्थित होने से आक्सीजन की भारी कमी है, जबकि तापमान भी जून के महीने में माइनस दस से बीस डिग्री होता है। ऐसी स्थिति में जरा भी चूक मौत का कारण बनती है।

ट्रै¨कग दल इस ट्रैक पर तो जाते हैं, लेकिन इसकी जानकारी तक प्रशासन को नहीं देते, जो कि मौत का कारण बनता है। ऐसे में रेस्क्यू में समय लग जाता है। पुलिस अधीक्षक पीएन मीणा कहते हैं कि इस तरह के ट्रैक रूट पर जाने से पहले ट्रैकर्स को स्थानीय प्रशासन को पूरी जानकारी देनी चाहिए, ताकि प्रशासन भी सतर्क रहे। जरूरत पड़ने पर समय से राहत बचाव कार्य शुरू कर सके। उन्होंने कहा कि गत वर्ष सितंबर महीने में भी जो 13 सदस्यीय ट्रै¨कग दल इस ट्रैकरूट पर गया था उसके द्वारा भी पूर्व में पुलिस प्रशासन को कोई सूचना नहीं दी गई। जिससे रेस्क्यू शुरू करने में काफी समय लग गया।


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