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लोकजात यात्रा के रांसी लौटने के बाद यात्रा का हुआ समापन

मध्यमेश्वर घाटी की मनणामाई की लोकजात यात्रा के तहत मनणी बुग्याल में यात्रा कासमापन हुआ।

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Jul 2021 10:44 PM (IST)Updated: Fri, 23 Jul 2021 10:44 PM (IST)
लोकजात यात्रा के रांसी लौटने के बाद यात्रा का हुआ समापन
लोकजात यात्रा के रांसी लौटने के बाद यात्रा का हुआ समापन

संवाद सहयोगी, रुद्रप्रयाग: मध्यमेश्वर घाटी की मनणामाई की लोकजात यात्रा के तहत मनणी बुग्याल में भोगमूर्ति की विशेष पूजा-अर्चना कर मंदिर में स्थापित किया गया। इसके बाद देवी की मूर्ति को ब्रह्मकमलों तथा अन्य पुष्पों से ढका गया। इसके बाद लोकजात यात्रा के रांसी वापस लौटने के बाद यात्रा का समापन हो गया।

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बीते सोमवार को रांसी गांव स्थित राकेश्वरी मंदिर से मनणा माई की भोग मूर्तियों की पूजा-अर्चना के बाद लोकजात यात्रा शुरू हुई थी। पहले दिन यात्रा सनियारा बुग्याल, खनेरा वड्यार, पटुड़ीधार, दोफून होते हुए अपने पहले पड़ाव थोली बुग्याल पहुंची। 20 जुलाई से थौली से विनायकधार, द्वारीधार, शिलासमुद्र होते हुए मनणी नदी को पैदल पार करते हुए अपने यात्रा धाम मनणी बुग्याल पहुंची। 21 जुलाई को यात्रा में शामिल ग्रामीणों ने सुबह मां मनणी की भोगमूर्ति को विशेष पूजा-अनुष्ठान के बाद मंदिर में स्थापित किया। इस दौरान मंदिर में भोग भी लगाया गया। इसी को ग्रामीणों ने प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। इसी दिन लोकजात रात्रि विश्राम के लिए वापस थौली पहुंची। 22 जुलाई को यात्रा सनियारा बुग्याल और 23 जुलाई को सनियारा बुग्याल से रांसी गांव पहुंचने के बाद लोकजात यात्रा का समापन हो गया है। प्रतिवर्ष सावन मास के प्रथम सप्ताह में मनणीमाई की जात की परंपरा है। मनणी धाम रांसी गांव से लगभग 32 किमी दूर हिमालय के आंचल और मंदाकिनी नदी के किनारे बसा हुआ है। मनणामाई भेड़ पालकों की अराध्य देवी भी मानी जाती हैं। यह लगभग 64 किमी लंबी यात्रा है। कोरोना संक्रमण के कारण लोकजात यात्रा में मात्र छह स्थानीय श्रद्धालु पंडित ईश्वरी प्रसाद भटट्, शिव सिंह रावत, बलवीर पंवार, अभिषेक नेगी, रोहित नेगी, अंकित राणा शामिल हुए थे। पिछले दो वर्षो से कोरोना संक्रमण के कारण मनणामाई की यात्रा को सादगी से संपन्न किया जा रहा है।


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