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ककड़ाखाल से आधी रात को भागे थे अंग्रेज

बृजेश भट्ट, रुद्रप्रयाग रुद्रप्रयाग जिले के ककड़ाखाल गांव में हर स्वतंत्रता दिवस खास होता है। दर

By JagranEdited By: Published: Tue, 07 Aug 2018 11:31 PM (IST)Updated: Tue, 07 Aug 2018 11:31 PM (IST)
ककड़ाखाल से आधी रात को भागे थे अंग्रेज
ककड़ाखाल से आधी रात को भागे थे अंग्रेज

बृजेश भट्ट, रुद्रप्रयाग

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रुद्रप्रयाग जिले के ककड़ाखाल गांव में हर स्वतंत्रता दिवस खास होता है। दरअसल, इसी गांव से कुली-बेगार प्रथा के खिलाफ गढ़वाल में पहला आंदोलन शुरू हुआ, जो बाद में पूरे गढ़वाल में फैल गया था। आंदोलन की आग फैलती देख अंग्रेज अफसर ग्रामीणों से बातचीत के लिए पहुंचे। लेकिन, आसपास के कई गांवों के लोगों ने एक जगह एकत्र होकर आधी रात को अंग्रेजों को काले झंडे दिखाकर गांव से खदेड़ दिया। ककड़ाखाल में उसी स्थान पर आंदोलनकारियों की याद में स्मारक बनाया है। आज भी यहां स्वतंत्रता दिवस पर आसपास के कई गांवों से बच्चे, बूढ़े और युवा इकट्ठा होते हैं और आंदोलनकारियों को श्रद्धांजलि देने के बाद विभिन्न कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है।

जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से तकरीबन 32 किमी की दूरी पर स्थित है अगस्त्यमुनि ब्लॉक का ककड़ाखाल गांव। वर्ष 1921 में इसी गांव से गढ़वाल में सबसे पहले कुली-बेगार प्रथा और अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ आवाज उठी थी। इस आंदोलन का नेतृत्व अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने किया था। जिसमें आसपास के सौ से अधिक गांवों ने हिस्सा लिया। धीरे-धीरे यह आंदोलन उग्र होता चला गया। बाद में अंग्रेज अफसर आंदोलनकारियों से बातचीत करने ककड़ाखाल पहुंचे। लेकिन, आंदोलनकारी नहीं माने और आधी रात में काले झंडे दिखाकर उन्होंने अंग्रेजों को गांव से बाहर खदेड़ दिया। इससे बौखलाए ब्रिटिश अफसरों ने यहां आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज कर दिया। एक दर्जन से अधिक आंदोलनकारी गिरफ्तार कर जेल में डाल दिए गए। इससे आंदोलन और भी भड़क उठा और यह आग पूरे गढ़वाल में फैल गई। देशभर में भी बेगारी प्रथा के खिलाफ आंदोलन होने लगे थे। आखिरकार अंग्रेजों को इस प्रथा पर रोक लगानी पड़ी। हालांकि, इसके बाद देशभर में स्वाधीनता के लिए चल रहा आंदोलन पहाड़ में भी तेज हो गया।

बाद में ककड़ाखाल में आंदोलन से जुड़ी महत्वपूर्ण बैठक और अन्य आयोजन होने लगे। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और ककड़ाखाल में आंदोलनकारियों की याद में स्मारक बनाया गया। स्वतंत्रता दिवस पर हर साल ककड़ाखाल समेत आसपास के गांवों के लोग स्मारक पर पहुंचकर आंदोलनकारियों को श्रद्धांजलि देते हैं। यही नहीं, गांव के सभी विशेष कार्यक्रम भी स्मारक पर ही आयोजित होते हैं।

गांव के वर्तमान प्रधान राजवर सिंह राणा बताते हैं कि बेगारी प्रथा के खिलाफ आंदोलन में ककोड़ाखाल के साथ ही सारी, चमसील, ¨सधवाड़ी, नाग समेत कई गांवों के लोगों ने बढ़-चढ़कर भागीदारी की थी। हम हर स्वतंत्रता दिवस पर उनके संघर्षो को याद करते हैं।


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