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संग्रहालय की धरोहर 250 साल पुरानी पांडुलिपियां

शंकराचार्य माधवाश्रम पर्वतीय लोक संग्रहालय समिति बीते दो वर्ष से रुद्रप्रयाग जिले में दुर्लभ पाडुलिपियों के संरक्षण का कार्य कर रही है। अब तक 700 से अधिक पांडुलिपि जिले के बेंजी गांव स्थित इस संग्रहालय की धरोहर बन चुकी हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 29 Jul 2021 11:17 PM (IST)Updated: Thu, 29 Jul 2021 11:17 PM (IST)
संग्रहालय की धरोहर 250 साल पुरानी पांडुलिपियां
संग्रहालय की धरोहर 250 साल पुरानी पांडुलिपियां

रविंद्र कप्रवान, रुद्रप्रयाग

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शंकराचार्य माधवाश्रम पर्वतीय लोक संग्रहालय समिति बीते दो वर्ष से रुद्रप्रयाग जिले में दुर्लभ पाडुलिपियों के संरक्षण का कार्य कर रही है। अब तक 700 से अधिक पांडुलिपि जिले के बेंजी गांव स्थित इस संग्रहालय की धरोहर बन चुकी हैं। संस्कृत व गढ़वाली भाषा में लिखी 250 वर्ष तक पुरानी ये पाडुलिपि स्थानीय निवासियों के घरों में मौजूद थीं, जिन्हें उन्होंने इस संग्रहालय को दान किया है।

संग्रहालय का निर्माण वर्ष 2019 में स्वामी माधवाश्रम महाराज की स्मृति में किया गया था। पहाड़ी शैली में बने इस संग्रहालय में इतिहास व साहित्य के दुर्लभ दस्तावेज संरक्षित किए गए हैं। साथ ही जिले के तल्ला नागपुर क्षेत्र के 72 गांवों का इतिहास भी यहां संरक्षित है। संग्रहालय के ऊपरी तल पर इतिहास, संस्कृति व धर्म से जुड़ी प्राचीन वस्तुएं, दैनिक उपयोग की विलुप्त सामग्री, दुर्लभ पांडुलिपि व हस्तलिखित ग्रंथ संरक्षित किए गए हैं। भूतल के एक हिस्से में भगवान तुंगनाथ का मंदिर और दूसरे हिस्से में स्वामी माधवाश्रम महाराज की मूर्ति स्थापित की गई है। इसी हिस्से में उनसे जुड़ी वस्तुएं भी रखी गई हैं।

वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार के राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन व पुराना दरबार ट्रस्ट टिहरी की ओर से संग्रहालय में मौजूद पांडुलिपियों का सर्वेक्षण किया गया। पांडुलिपियों का अध्ययन कर रहे पुराना दरबार ट्रस्ट के शोधार्थी नवनीत बिष्ट बताते हैं अधिकांश पांडुलिपि धार्मिक ग्रंथों की हैं। बताया कि आचार्य उपेंद्र दत्त बेंजवाल ने संग्रहालय को गढ़वाली में लिखी मुहूर्त चिंतामणि और संस्कृत में लिखी श्रीमद्भागवत की 250 साल पुरानी पांडुलिपि दान दी हैं।

संग्रहालय समिति के अध्यक्ष कैलाश बेंजवाल बताते हैं कि संग्रहालय में पांडुलिपि दान करने वाले हर व्यक्ति का रिकार्ड रखा जाता है। समिति पांडुलिपियों के साथ अनुवाद का प्रयास भी कर रही है। भविष्य में इनका डिजिटलाइजेशन कर इन पर लेखक व दानीदाता का नाम भी अंकित किया जाएगा।


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