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माहवारी के दौरान पंचेश्वर पुल पर नहीं जा सकती महिलाएं

संवाद सूत्र, झूलाघाट: रु ढि़वादिता का दंश पंचेश्वर क्षेत्र की महिलाएं झेल रही हैं। मासिक धर्म के

By JagranEdited By: Published: Fri, 30 Nov 2018 10:17 PM (IST)Updated: Fri, 30 Nov 2018 10:17 PM (IST)
माहवारी के दौरान पंचेश्वर पुल पर नहीं जा सकती महिलाएं
माहवारी के दौरान पंचेश्वर पुल पर नहीं जा सकती महिलाएं

संवाद सूत्र, झूलाघाट: रु ढि़वादिता का दंश पंचेश्वर क्षेत्र की महिलाएं झेल रही हैं। मासिक धर्म के दौरान युवतियों और महिलाओं का भारत नेपाल सीमा पर पंचेश्वर में सरयू नदी पर बने झूला पुल पर आवाजाही प्रतिबंध रहती है। इस दौरान पुल पर आवाजाही तो दूर रही पंचेश्वर तीर्थ के आसपास के एक चिन्हित क्षेत्र में प्रवेश तक नहीं कर सकती है। यह पंरपरा है या अनिष्ठ की शंका परंतु महिलाओं का पुल पर चलने से वर्जित होना उनके साथ एक अन्याय ही है।

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भारत नेपाल सीमा पर काली और सरयू नदी के संगम स्थल पर सरयू नदी में एक झूला पुल है। यही झूला पुल पिथौरागढ़ और चम्पावत जिले को जोड़ता है। सरयू नदी पार करने के लिए अन्य कोई विकल्प नहीं है। इसी झूला पुल पर माहवारी के दौरान युवतियां और महिलाएं नहीं चल सकती हैं। इस स्थान पर अन्य किसी माध्यम से भी रजस्वला नदी पार नहीं कर सकती हैं। जहां पर दोनों नदियां मिलती है झूला पुल भी ठीक उसी स्थान पर है। पुल के नीचे ही तीर्थ है । निकट में ही मंदिर है।

पिथौरागढ़ जिले में पंचेश्वर घाट तक पहुंचने के दो मार्ग हैं। एक मार्ग तो सेल से है जो सीधे मंदिर यानि तीर्थ तक जाता है दूसरा मार्ग अन्य गांवों से है जो पहले झूला पुल पर जाता है वहां से फिर तीर्थस्थल तक जाता है। दोनों मार्गो में माहवारी के दौरान युवतियां और महिलाएं एक निश्चित स्थल तक ही जा सकती हैं। पंचेश्वर के पास तक नहीं जाती हैं। इस क्षेत्र के हाट, बाजार चम्पावत जिले के क्षेत्र में हैं। नदी के एक दूसरे क्षेत्र के लोगों की आवाजाही होती रहती है। परंतु मासिक धर्म वाली महिलाओं के लिए पुल पर चलना वर्जित रहता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। माहवारी के दौरान पंचेश्वर के निकट काली नदी में नेपाल के लिए चलने वाली नावों से भी वह नदी पार नहीं कर सकती हैं।

यह वही क्षेत्र है जहां मासिक धर्म के दौरान छात्राएं पांच दिन तक विद्यालय नहीं जा पाती हैं। इसी क्षेत्र में पुल पर आवाजाही भी नहीं होती है। इस संबंध में महिलाओं द्वारा किसी तरह का विरोध आज तक नहीं दर्शाया गया है। परंपरा का पालन आज भी यथावत जारी है। स्वयं महिलाएं इस दौरान इस क्षेत्र में जाने का प्रयास तक नहीं करती हैं।


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