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पिथौरागढ़ में पशु बलि प्रथा को त्यागा, हवन कर निभाई परंपरा

पिथौरागढ़ के चार गांवों के लोगों ने मंदिर में वर्षों से चली आ रही बलिप्रथा को छोड़कर हवन यज्ञ के जरिए अपनी धार्मिक परंपराओं का निर्वहन किया।

By Edited By: Published: Sat, 08 Sep 2018 11:28 PM (IST)Updated: Sun, 09 Sep 2018 09:47 AM (IST)
पिथौरागढ़ में पशु बलि प्रथा को त्यागा, हवन कर निभाई परंपरा
पिथौरागढ़ में पशु बलि प्रथा को त्यागा, हवन कर निभाई परंपरा

पिथौरागढ़, [जेएनएन]: जिला मुख्यालय के नजदीकी चार गांवों के लोगों ने मिसाल पेश की है। मंदिर में वर्षों से चली आ रही बलिप्रथा को छोड़कर ग्रामीणों ने हवन यज्ञ के जरिए अपनी धार्मिक परंपराओं का निर्वहन किया। मुख्यालय से 10 से 15 किमी की परिधि में बसे गांव जाखपंत, सिरकूच, लेलू और मजिरकांडा गांव के लोग सदियों से क्षेत्र के असुरचूला मंदिर परिसर के समीप बलि देते आ रहे थे। लोक देवताओं की आराधना की यह परंपरा पिछले वर्ष तक चली आ रही थी। सोर क्षेत्र में मनाई जाने वाली चैतोला से पूर्व बलि संपन्न कराई जाती थी। सामाजिक कार्यकर्ता हरीश पंत ने बताया कि गांव के युवाओं ने बलि प्रथा को लेकर विचार विमर्श किया और इसे बंद कर इसकी जगह हवन-यज्ञ कराने का विचार किया। युवाओं ने चारों गांवों के लोगों से विचार विमर्श कर मंदिर में पशु बलि बंद करने का निर्णय लिया।

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परंपरा के अनुसार ग्रामीण शुक्रवार को डोला लेकर पांच किमी. की खड़ी चढ़ाई पार कर असुरचूला मंदिर पहुंचे। ग्रामीणों ने विधिविधान से पूजा अर्चना की। ग्रामीणों ने सामूहिक हवन यज्ञ किया। पूरे दिन चले हवन यज्ञ के बाद ग्रामीणों ने पूर्णाहुति देकर क्षेत्र के कल्याण की कामना की। हवन यज्ञ पं.दिवाकर पंत, हेम जोशी, दामोदर पंत, सतीश पंत की देखरेख में संपन्न हुआ। हवन से पूर्व ग्रामीणों ने पूरी रात मंदिर में भजन-कीर्तन किए। 

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