नेपाल सीमा से लगे कुछ गांवों में दुमंजिले पर नहीं लगती है चारपाई
जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़: भारत, नेपाल सीमा पर माहवारी के दौरान छात्राओं के मार्ग में मंदिर
जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़: भारत, नेपाल सीमा पर माहवारी के दौरान छात्राओं के मार्ग में मंदिर होने के कारण विद्यालय जाने से रोक के बाद सुर्खियों में आए क्षेत्र में आज भी कई परंपराएं जड़ जमाए हैं। भौंरा, रावतगड़ा, सल्ला जैसे गांवों में मकानों के दुमंजिले में चारपाई लगा कर सोने पर प्रतिबंध है। आज भी इन गावों के दुमंजिले में लोग चारपाई पर नहीं सोते हैं। नाते, रिश्तेदारों को भी आने पर दुमंजिले में जमीन पर ही बिस्तर लगा कर सुलाया जाता है। इस क्षेत्र में परंपराएं और रु ढि़यां आज भी जड़ जमाए हैं। जहां युवतियों और महिलाओं को माहवारी के दौरान तमाम तरह की दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं । छात्राएं विद्यालय नहीं जा पाती हैं। पंचेश्वर पुल पर आवाजाही नहीं कर सकती हैं। दूसरी तरफ आम लोगों पर भी प्रतिबंध हैं। जिसका जीता जागता उदाहरण गांवों के दुमंजिले में बिना चारपाई के सोना पड़ता है। रावतगड़ा, सल्ला और भौंरा गांवों में दुमंजिले में चारपाई लगाने पर प्रतिबंध है। परिवार सहित नाते, रिश्तेदारों को भी दुमंजिले में चारपाई पर सोना नसीब नहीं होता है। इसी तरह घर के आंगन व अन्य स्थान पर भी ऊंचाई पर बैठने का प्रावधान नहीं है। सेल गांव में आसपास के कुछ गांवों से आने वालों को आंगन में दीवार, चारपाई और कुर्सी पर नहीं बैठाया जाता है। जमीन पर दरी, चटाई पर ही बैठाया जाता है। चारपाई लगाने पर लगता है औला दुमंजिले पर चारपाई लगाना या फिर आंगन में ऊंचाई पर बैठने के पीछे स्थानीय भाषा में औला बाधक है। औला का अर्थ अपशकुन है। जो सीधे देवता से जुड़ा बताया जाता है। ऊंचाई पर सोने और ऊंचाई पर बैठने को सदियों से चली आ रही परंपरा का पालन नहीं होने पर किसी तरह के औला (अपशकुन ) की आशंका जताई जाती है। इस क्षेत्र के भौंरा गांव निवासी जिला मुख्यालय में पत्रकारिता से जुड़े युवा मनोज चंद बताते हैं कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। आज भी लोग बदस्तूर मान रहे हैं। उनके अनुसार अब इस परंपरा में बदलाव लाने चाहिए। दुनिया कहां पहुंच चुकी है इसे देख कर आगे आना होगा।