इस गांव के लोगों ने की इसकी खेती, रुक गया पलायन
पिथौरागढ़ में 7095 फीट की ऊंचाई पर स्थित नामिक गांव के ग्रामीणों ने आलू और राजमा की खेती कर गांव से होने वाले पलायन पर बंदिश लगा दी है।
पिथौरागढ़, [जेएनएन]: जिस गांव तक जाने में अधिकारी और कर्मचारी कतराते हैं। साल के तीन माह वहां बर्फबारी होती है और मानसून के चार माह में गांव अलग-थलग पड़ा रहता है। सड़क अभी 27 किमी दूर है। उस गांव के जैविक आलू की धाक पूरे कुमाऊं के बाजार में बनी है। जैविक आलू और राजमा ने गांव से होने वाले पलायन पर बंदिश लगा दी है।
130 परिवारों वाले 7095 फीट की ऊंचाई पर स्थित नामिक गांव पर प्रकृति ने सौंदर्य की कृपा तो खूब बिखेरी है, परंतु यहां का जीवन बेहद कठिन भी है। इस ऊंचाई पर फसलों के उत्पादन के नाम पर आलू, राजमा, साग-सब्जी और जड़ी-बूटी का उत्पादन होता है।
ग्रामीणों ने जैविक कठिन हालातों से उबरने का मंत्र खेती को बनाते हुए आलू उत्पादन को आजीविका का आधार बनाया। सात हजार फीट की ऊंचाई पर जैविक आलू उत्पादन कर उसे 27 किमी पैदल मार्ग से ढोकर सड़क तक पहुंचाया तो आलू ने अपना स्थान बना लिया। नामिक के आलू का स्वाद लोगों को ऐसा भाया कि पूरे कुमाऊं में इसकी पहाड़ी आलू के नाम पर सबसे अधिक मांग है।
अब यहां ग्रामीण आलू की खेती का रकबा बढ़ा रहे हैं। गांव के सभी घर आबाद भी हैं और बाहर नौकरी व पेशा करने वाले लोग देखभाल के लिए आते-जाते भी रहते हैं।
महिलाएं के हाथ में है कमान
नामिक गांव के कुछ युवा फौज में हैं कुछ बाहर प्राइवेट कंपनियों में काम करते हैं। कुछ शिक्षक भी है। अधिकांश ग्रामीण गांव में ही रहकर आलू, राजमा और जड़ी बूटी की खेती करते हैं। भेड़ व बकरियां पाल कर ऊनी हस्तशिल्प से जुड़े हैं। गांव की महिलाओं ने अपना समूह बनाया है।
समूह के माध्यम से प्रति सदस्य पचास रु पए का शुल्क लेकर कोष बनाया है। महिलाएं 27 किमी पैदल चल कर क्वीटी बैंक के खाते में रकम जमा करती हैं। गांव में प्रकाश के लिए उरेडा ने स्मॉल पावर हाउस प्रोजेक्ट बनाया है। इसके लिए बनी नहर जब क्षतिग्रस्त होती है तो गांव की महिलाएं खुद इसकी मरम्मत करती हैं।
यह भी पढ़ें: सात साल में उत्तराखंड के इतने गांव बने घोस्ट विलेज
यह भी पढ़ें: 1000 घोस्ट विलेज हैं यहां, तीन लाख घरों पर ताले; कागजों में योजनाएं
यह भी पढ़ें: पलायन रोकने को कृषि उत्पादों के ब्रांड व पैकेजिंग पर फोकस करने की जरूरत