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चीन सीमा पर स्थित इस ट्रैक ऑफ द इयर को सुविधाओं की दरकार

विदेशी पर्यटकों की आवक वाले नामिक ट्रैक को पर्यटन विभाग ने 'ट्रैक ऑफ द इयर' तो घोषित कर दिया, लेकिन यहां सुविधाएं नहीं जुटाई जा सकीं।

By BhanuEdited By: Published: Tue, 10 Jul 2018 10:58 AM (IST)Updated: Thu, 12 Jul 2018 05:09 PM (IST)
चीन सीमा पर स्थित इस ट्रैक ऑफ द इयर को सुविधाओं की दरकार
चीन सीमा पर स्थित इस ट्रैक ऑफ द इयर को सुविधाओं की दरकार

पिथौरागढ़, [ओपी अवस्थी]: विदेशी पर्यटकों की आवक वाले नामिक ट्रैक को पर्यटन विभाग ने 'ट्रैक ऑफ द इयर' तो घोषित कर दिया। बावजूद इसके इस क्षेत्र में सुविधाएं नहीं जुटाई जा सकीं। 

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समुद्र तल से 3500 मीटर की ऊंचाई पर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ स्थित इस ट्रैक से हीरामणि और रामगंगा ग्लेशियर तक पहुंचा जाता है। इलाके में व्यवस्थाओं में सुधार से पर्यटन और स्थानीय रोजगार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद जगी है।

यह ट्रैक चीन और नेपाल की सीमाओं से लगे सीमांत इलाके के नामिक गांव पर समाप्त होता है। इसी कारण इसे यह नाम दिया गया है। दोनों ग्लेशियरों को भी नामिक नाम से ही जाना जाता है। तमाम दुश्वारियों के बावजूद यहां प्रतिवर्ष 300-400 देशी-विदेशी पर्यटक ट्रैकिंग के लिए पहुंचते हैं।

ग्लेशियर तक पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं। पहला बागेश्वर जिले के कपकोट से गोगिना होते हुए और दूसरा मुनस्यारी के बिर्थी से होते हुए। पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी के बिर्थी से होकर जाने वाला ट्रैक पूरी तरह पैदल मार्ग है। बिर्थी से नामिक गांव की दूरी 27 किमी है और वहां से ग्लेशियर की दूरी 30 किमी है। इस ट्रैक से ग्लेशियर आने-जाने का समय पांच से छह दिन का है। 

बागेश्वर जिले से ग्लेशियर तक का ट्रैक सुविधाजनक है। बागेश्वर से गोगिना तक वाहन मार्ग है। गोगिना से लगभग सात किमी की दूरी पर नामिक गांव है। इस रूट से ट्रैकरों को करीब 35 किमी की ही ट्रैंिकंग करनी होती है। जबकि बिर्थी से 57 किमी की ट्रैकिंग है। पर्यटन विभाग द्वारा बागेश्वर से वाया सामा, लीती, गोगिना होते ट्रैकिंग रूट का चयन किया गया है। जिसे लेकर सड़क से 27 किमी की दूरी पर स्थित गांव के लोग मायूस हैं। 

ट्रैकिंग सीजन प्रारंभ हो चुका है और 15 सितंबर के बाद इसमें तेजी आएगी, जो 15 अक्टूबर तक रहेगी। जिला पर्यटन अधिकारी अमित लोहनी के मुताबिक, पर्यटन विभाग इस बार विशेष कवायद कर रहा है। टूर ग्रुप के माध्यम से भी ट्रैकरों को लाया जाएगा। साथ ही पर्यटन के इस स्वरूप को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान आदि के बारे में भी बताया जाएगा। ताकि पर्यटन से अधिकाधिक स्थानीय लोग भी लाभान्वित हों।  

बहरहाल, समय कम है और सुविधाएं न के बराबर। दोनों ट्रैकिंग मार्ग से ग्लेशियर तक जाने वाले ट्रैकरों को फिलहाल या तो टेंटों में रहना होगा या फिर भेड़-बकरियां चराने वाले चरवाहों की बनाई झोपड़ियों में। नामिक गांव में पर्यटक आवास गृह का निर्माण पूरा नहीं होने के चलते मौसम अनुकूल न होने की स्थिति में भी टेंटों में रहना ट्रैकरों की मजबूरी है। 

नामिक ग्लेशियर को ट्रैक ऑफ द इयर तो घोषित किया गया परंतु ट्रैकरों के रहने के लिए होम स्टे (स्थानीय लोगों द्वारा अपने घरों में पर्यटकों को ठहराना) की व्यवस्था नही है। एक तरफ पर्यटन से जुड़े क्षेत्र में होम स्टे को बढ़ावा देकर स्थानीय लोगों को भी रोजगार मुहैया कराने की बात कही जा रही है। 

हालांकि कैलास मानसरोवर यात्रा में होम स्टे की व्यवस्था इस साल कुमाऊं मंडल विकास निगम (केएमवीएन) द्वारा शुरू की गई है। यदि होम स्टे की व्यवस्था की जाए तो दूरस्थ गांव नामिक भी इससे लाभान्वित होगा।  पर्यटन विभाग द्वारा बागेश्वर जिले से ट्रैक को चयनित किया गया है। वहीं पर्यटन और ट्रैकिंग से जुड़े लोग बिर्थी से ट्रैकिंग के अधिक पक्षधर हैं। 

जिले के प्रमुख ट्रैकर पीएस धर्मशक्तू का कहना है कि नामिक ग्लेशियर तक का ट्रैक बिर्थी से होकर ही विकास के द्वार खोल सकता है। आने और जाने वाले ट्रैकरों से पर्यटक स्थल बिर्थी फॉल, मुनस्यारी और पिथौरागढ़ आदि को भी लाभ मिलता। 

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