मानव ही है हिमालय में भूस्खलन का बड़ा कारण
संवाद सहयोगी, पिथौरागढ़ : एलएसएम राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में भूस्खलन कारण और रोकथा
संवाद सहयोगी, पिथौरागढ़ : एलएसएम राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में भूस्खलन कारण और रोकथाम विषय पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला बुधवार को शुरू हुई। देश भर से आए भू-वैज्ञानिकों ने हिमालय में भू-स्खलन के कारण और बचाव पर अपने अनुभवों को साझा किया।
मुख्य अतिथि प्रो.वीके गैरोला ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यशाला का शुभारंभ किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि हिमालय भू-स्खलन की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। उन्होंने उत्तराखंड में भू-स्खलन के इतिहास पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि लगातार बढ़ रही भू-स्खलन की घटनाओं के पीछे खुद मानव बड़ा कारण है। पहाड़ों में बेतरतीब ढंग से सड़कें काटी जा रही हैं। मलबा पहाड़ी ढलानों पर फेंका जा रहा है या नदियों में बहाया जा रहा है। हिमालय की चट्टानें बेहद कमजोर है। इनमें विस्फोटकों का प्रयोग बेहद खतरनाक है। उन्होंने कहा कि सड़कों के निर्माण में वैज्ञानिक तौर तरीके अपनाए जाने की जरू रत है, जिससे कमजोर पहाड़ियों को नुकसान न हो। उन्होंने कहा कि भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में आवासीय भवन कतई न बनाए जाए।
प्रो.वाईपी सुंदिरयाल ने अपने संबोधन में उत्तराखंड में भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों की जानकारी देते हुए कहा कि ऐसे इलाकों में वनीकरण भूस्खलन को रोकने में मददगार हो सकता है। कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.डीएस पांगती ने कहा कि विचार-विमर्श से महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आएंगी जिनका उपयोग भूस्खलन से बचाव में मददगार होगा। आयोजन सचिव डॉ.आरए सिंह ने कार्यशाला की रू परेखा प्रस्तु्रत की।
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आधा दर्जन वैज्ञानिकों ने प्रस्तुत किए शोध पत्र
पिथौरागढ़: कार्यशाला में भाग लेने आए देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के भू-वैज्ञानिक प्रो.वाईपी सुंदरियाल, डॉ.नीलम वर्मा, डॉ.आरपी सिंह, डॉ.महेश ठाकुर, डॉ.पीपी घोष, प्रो. वैभव श्रीवास्तव ने भूस्खलन कारण और बचाव पर अपने शोध प्रस्तुत किए। सम्मेलन में आए शोध पत्र और चर्चाओं की विस्तृत रिपोर्ट सरकार को प्रेषित की जाएगी।
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आज से संवेदनशील क्षेत्रों का भ्रमण करेंगे भू-वैज्ञानिक
पिथौरागढ़: कार्यशाला में भाग लेने पहुंचे भू-वैज्ञानिक गुरू वार से जिले के भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों का भ्रमण करेंगे। वैज्ञानिक जौलजीवी से मुनस्यारी होते हुए गंगोलीहाट पहुंचेंगे। इस दौरान भूस्खलन से संबंधित जानकारियां एकत्र की जायेंगी। इस भ्रमण के दौरान वैज्ञानिक जिले की गोरी गंगा घाटी और रामगंगा घाटी क्षेत्रों को कवर करेंगे।