पेयजल समस्या बढ़ी, जल स्रोत पर नहीं बनी नीति
संवाद सहयोगी, चम्पावत : बढ़ती सूर्य की तपिश के साथ-साथ पानी की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। जन
संवाद सहयोगी, चम्पावत : बढ़ती सूर्य की तपिश के साथ-साथ पानी की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। जनपद के अनेक क्षेत्रों में अभी से पानी की किल्लत होनी शुरू हो गई है। फिर भी अनेक ऐसे जल स्रोत हैं जिनसे वर्ष भर जल बहता रहता है। जहां एक ओर पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है वहीं दूसरी ओर जल संस्थान व स्वजल आने वाले महीनों में होने वाली पानी की भीषण समस्या से निपटने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं।
जनपद के अनेक क्षेत्रों में अभी से पानी की समस्या ने सिर उठाना शुरू कर दिया है। कई क्षेत्रों में अभी से ही पानी की आपूर्ति के लिए जल संस्थान ने टैंकर भेजने शुरू कर दिए हैं। पानी की बढ़ती किल्लत को देखते हुए भी जल संस्थान व स्वजल ने अभी तक कोई ठोस नीति नहीं बनाई। हालांकि क्षेत्र में अनेक ऐसे जल स्रोत हैं जो आने वाली गर्मी में होने वाली जल की कमी को पूरा कर सकते हैं। मगर सरकार इनके संरक्षण पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। क्षेत्र के ललुवापानी रोड समेत कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां जल स्त्रोतों से 24 घंटे पानी फिजूल में बह रहा है मगर इसके संरक्षण का किसी को ध्यान नहीं है और लोग पानी के लिए हाहाकार मचा रहे हैं। इसको देखते हुए स्वजल द्वारा जनपद के जल स्रोतों का सर्वे किया जा रहा है। जनपद में लगभग एक हजार जल स्रोत हैं जिनका सर्वे होना है। अभी तक लगभग 25 प्रतिशत जल स्रोतों का सर्वे हो चुका है।
वनों को उगाएं तभी कम होगी पानी की किल्लत
वृद्ध बैद्य लीलाधर जोशी कहते हैं कि एक समय था जब जनपद में पानी की कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन आज हालात यह है कि वनों के कटने से पानी की समस्या हर साल बढ़ती जा रही है। उन्होंने बताया कि कई ऐसे वृक्ष हैं जो पानी का संचय करते हैं। काफल का वृक्ष 150 लीटर, उतीस का 350 लीटर, बांज का वृक्ष तीन सौ लीटर, तुषास् का वृक्ष दो सौ लीटर पानी अपनी जड़ों में संरक्षित रखते हैं। जो पूरे साल पानी छोड़ते रहते हैं। जरूरत है ऐसे पेड़ों को लगाकर उनका जल संरक्षण की। तभी पानी की समस्या खत्म होगी।
हींगलादेवी मंदिर में पानी की समस्या
क्षेत्र के प्रसिद्ध हींगला देवी मंदिर में वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। लेकिन मंदिर में आज तक पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं है। मंदिर के पीछे एक टैंक बना हुआ है लेकिन वह भी सूखा हुआ है। मंदिर के पुजारी तथा यहां आने वाले श्रद्धालुओं को पानी की व्यवस्था न होने से परेशानी का सामना करना पड़ता है। पेय जल की कोई व्यवस्था न होने से मंदिर से नीचे की ओर काफी दूर पैदल चलकर गधेरे से पानी लाना पड़ता है।