जौलजीबी मेले को लेकर संशय बरकरार
काली और गोरी नदियों के संगम पर भारत और नेपाल में लगने वाले जौलजीबी मेले को लेकर संशय बरकरार है।
संवाद सूत्र, जौलजीबी: काली और गोरी नदियों के संगम पर भारत और नेपाल में लगने वाले जौलजीबी मेले को लेकर संशय बना हुआ है। बीते वर्ष कोरोना की भेंट चढ़ने से इस बार भी मेले के आयोजन को लेकर संदेह है। मेला कमेटी और स्थानीय व्यापारियों ने प्रशासन से मेले के आयोजन को लेकर स्थित स्पष्ट करने की मांग की है।
तीन देशों भारत, नेपाल और तिब्बत की सांस्कृतिक और व्यापारिक पहचान का प्रतीक जौलजीबी मेला प्रतिवर्ष 14 नवंबर से प्रारंभ होता है। यह मेला प्रदेश ही नहीं अपितु उत्तर भारत के प्रमुख मेलों में शामिल है। अपनी तमाम विशेषताओं को समेटे इस मेले का इतिहास अति वैभवशाली रहा है। वर्ष 1962 से पूर्व तक इस मेले में तिब्बत के व्यापारी भी भारी संख्या में सहभाग करते थे। अतीत में यह मेला एक साल का होता था और अब दस दिवसीय रहता है। बीते वर्ष कोरोना के चलते मेले का आयोजन नहीं हो सका। इस वर्ष अभी तक मेले को लेकर किसी तरह की सूचना नहीं है।
इस संबंध में जौलजीबी के व्यापारियों और मेला कमेटी ने जिला प्रशासन से मेले के आयोजन को लेकर स्थिति स्पष्ट करने की मांग की है। व्यापारियों का कहना है कि मेला प्रारंभ होने में अब मात्र एक माह का समय रह चुका है। स्थिति स्पष्ट होने पर व्यापारी मेले के लिए अपनी तैयारी कर सके। व्यापारियों ने बैठक कर प्रशासन से समय से मेले को लेकर जानकारी देने की मांग की है।
बैठक में मौजूद व्यापारियों में गजेंद्र पतियाल,राजेंद्र पांगती, विक्रम चंद, भुवन चंद, भूपाल चंद, पुष्कर पाल, प्रेम दताल, अमर बहादुर चंद, उमेश चंद, महेंद्र पाल,भूपाल पाल, ललित प्रसाद ,मनोज , नंदन बसेड़ा, संजय दताल, मोहन देव भट्ट, हंसा जंगपांगी शामिल रहे।