कनार के मक्के को नहीं मिल रहा है बाजार
संवाद सहयोगी, पिथौरागढ़: सीमांत जिले पिथौरागढ़ का कनार गांव अकेला ऐसा गांव है जहां दो प्रक
संवाद सहयोगी, पिथौरागढ़: सीमांत जिले पिथौरागढ़ का कनार गांव अकेला ऐसा गांव है जहां दो प्रकार के मक्के की खेती होती है, बहुतायत में पैदा होने वाले इस मक्के को आज तक बाजार नहीं मिल सका है। ग्रामीण अपने उत्पादन को सीमित करने के लिए मजबूर है।
बंगापानी तहसील के अंतर्गत आने वाला कनार गांव जहां अपनी खूबसूरती के लिए राज्य में विशेष पहचान रखता है। वहीं मक्का उत्पादन भी इस गांव को एक पहचान देता है। यहां सफेद और पीले रंग के दो तरह के मक्के पैदा होते हैं। जुलाई और सितंबर माह में उत्पादित होने वाले इन मक्कों का स्वाद विशेष होता है। इसका कारण गांव की समुद्रतल से सात हजार फिट की ऊंचाई पर बसा होना माना जाता है। कृषि वैज्ञानिक जितेंद्र क्वात्रा बताते है कि उच्च हिमालय की साफ जलवायु से इस तरह के उत्पादनों में एक विशेष प्रकार का स्वाद आता है। क्षेत्र के लोगों का उत्पादन में किसी तरह के रसायन का उपयोग नहीं करने से भी गुणवत्ता बेहतर होती है। गांव में रहने वाले 100 परिवार लगभग पांच कुंतल से अधिक मक्का पैदा करते हैं, लेकिन इसके लिए कोई बाजार उपलब्ध नहीं है। ग्रामीण इसे आसपास के कस्बों तक भी नहीं पहुंचा पाते हैं कारण है सड़क का अभाव। गांव से निकटतम कस्बे बरम की दूरी करीब 16 किमी. है। इस कस्बे तक पहुंचने के लिए लोगों को 16 किमी. पैदल चलना पड़ता है। ग्रामीण अपने उत्पादन का उपभोग अपने और अपने जानवरों के लिए करने को मजबूर हैं। कई ग्रामीण अधिकतर उत्पादन आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले अपने नाते रिश्तेदारों को उपलब्ध करा देते हैं। गांव के लिए सड़क बने तो मक्के के कारोबार से इस गांव की आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव आ सकता है।
गांव के सामाजिक कार्यकर्ता जगत सिंह का कहना है कि मक्का उत्पादन से इस क्षेत्र की आर्थिक तस्वीर बदल सकती है। सरकार गांव को सिर्फ सड़क की सुविधा दे दे बाकी बाजार की व्यवस्था ग्रामीण खुद ही कर लेंगे।