कैलास मानसरोवर की यात्रा सुगम बनाएगा वैकल्पिक मार्ग
- छोटा कैलास के भी दर्शन कर सकेंगे यात्री - वैकल्पिक मार्ग से दारमा वैली का भी होगा पर्यटन विक
- छोटा कैलास के भी दर्शन कर सकेंगे यात्री
- वैकल्पिक मार्ग से दारमा वैली का भी होगा पर्यटन विकास
ओपी अवस्थी, पिथौरागढ़ : उत्तराखंड के रास्ते कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग इस बार अब तक दुरुस्त नहीं हो पाया है। पिछले वर्ष आपदा में मार्ग बहने के बाद मानसरोवर यात्रियों को एयर लिफ्ट कराने की सहमति तो बनी है लेकिन स्थानीय प्रशासन वैकल्पिक मार्ग की संभावना भी तलाश रहा है। वैकल्पिक मार्ग से यात्रा अपेक्षाकृत और सुखद हो सकेगी। इस मार्ग पर यात्रियों को छोटा कैलास के दर्शन के साथ ही कई ग्लेशियरों का भी दीदार होगा।
अभी तक कैलास मानसरोवर यात्रा धारचूला की व्यास घाटी से उच्च हिमालयी क्षेत्र में होती है लेकिन जून से शुरू हो रही यात्रा से पहले यह मार्ग खोल पाना संभव नहीं दिख रहा है। ऐसे में धारचूला की दारमा घाटी के रास्ते यात्रा कराने का विकल्प तैयार हो सकता है।
नेपाल से रास्ता मागने से बेहतर विकल्प : पिछले वर्ष बादल फटने की घटना में कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग लखनपुर से नज्याग तक(छह सौ मीटर) नेस्तनाबूद हो चुका है। इस स्थान पर पैदल आवाजाही भी संभव नहीं है। नब्बे डिग्री के कोण पर खड़ी चट्टानों को काट कर मार्ग बनाना चुनौतीपूर्ण है। कैलास यात्रा से पहले व्यास घाटी के ग्रामीणों का माइग्रेशन भी अपने मूल गावों के लिए शुरू होने वाला है। इसके लिए भारत-नेपाल के अधिकारियों की एक बैठक एक माह पूर्व हुई थी। जिसमें भारत-नेपाल के अधिकारियों के बीच दो किमी यात्रा नेपाल के रास्ते कराने पर सहमति तो बनी लेकिन इसे अमल में नहीं लाया जा सका। दरअसल नेपाल से रास्ता मागने पर काली नदी पर दो स्थानों पर लकड़ी के अस्थाई पुल बनाए जाने की जरूरत थी। पुल बनाने को भारतीय प्रशासन तैयार था लेकिन नेपाल में शासन स्तर से इसकी मंजूरी नहीं मिल पाई। ऐसे में दारमा घाटी से रास्ता तैयार करना बेहतर विकल्प हो सकता है। इसका सुझाव आइटीवीपी ने भी स्थानीय प्रशासन को दिया है।
ग्लेशियरों का भी दीदार
वैकल्पिक मार्ग पर यात्री तिदाग तक वाहन से सफर कर सकेंगे। यात्रियों को पंचाचूली ग्लेशियर से लेकर सिनला पास जैसे ग्लेशियरों के भी दीदार होंगे। कैलास मानसरोवर के दर्शनों से पूर्व यात्रियों को आदि कैलास के दर्शन का अवसर मिलेगा। इस मार्ग में कैलास यात्रियों को दोनों उच्च हिमालयी घाटियों(व्यास व दारमा) के दर्शन होंगे और पंचाचूली ग्लेशियर के पास से यात्रा गुजरेगी । तवाघाट से उच्च हिमालयी तिदाग तक मोटर मार्ग तैयार है। व्यास घाटी से जाने पर भी यात्री चौथे दिन गुंजी पहुंचते हैं। वाया दारमा होकर जाने पर भी चौथे दिन गुंजी पहुंच जाएंगे।
दारमा घाटी से ऐसे पहुंचेंगे गुंजी
व्यास घाटी से होने वाली यात्रा में यात्रियों का पहला पड़ाव सिर्खा, दूसरा गाला, तीसरा बूंदी और चौथा पड़ाव गुंजी होता है। पाचवा अंतिम पड़ाव नावीढाग होता है। दारमा मार्ग से यात्रा होने पर पहला पड़ाव कंच्योती के आसपास करना होगा। दूसरे दिन यात्री छोटे वाहनों से दिन में तिदाग पहुंचेंगे। जहा से पैदल यात्रा प्रारंभ होगी। छह किमी पैदल चल विदाग (धाकर पहुंचेंगे)। तीसरे दिन चार किमी दूर सिनला पास पार छह किमी दूर जौलिंगकोंग पहुंचेंगे। जहा पर केएमवीएन के आवास हैं। चौथे दिन यात्रियों को जौलिंगकोंग से अंतिम भारतीय गाव कुटी होकर गुंजी पहुंचना होगा। यह लगभग 20 किमी मार्ग है परंतु कुटी के पास से वाहन की भी व्यवस्था हो सकती है। साथ ही यहा पर घोड़े खच्चर भी उपलब्ध होंगे। तिदाग से गुंजी तक एडीबी मद से पैदल मार्ग बना है। सिनला पास में मार्ग का सुधारीकरण होना है। इस स्थान पर यात्रियों को सोलह हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर चलना होगा।
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दारमा होते हुए यात्रा संचालन से उच्च हिमालयी दारमा घाटी को भी पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होने का अवसर मिलेगा। यात्रियों को कैलास मानसरोवर के दर्शनों से पूर्व पंचाचूली और आदि कैलास के दर्शन होंगे। जो यात्रियों के लिए अपने आप में एक अलग रोमांच हो सकता है। प्रशासन और केएमवीएन व्यास मार्ग नहीं खुलने की दशा पर विकल्प के तौर पर वाया दारमा होते यात्रा का संचालन कर सकते हैं।
- एपीएस निंबाडिया, डीआइजी , बरेली रेंज आइटीबीपी।