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पहले से ही संकट कम नहीं अब मलबा छीन रहा है सौर की ठौर

जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़: भारत नेपाल के मध्य बहने वाली काली नदी में पाई जाने वाली सौर यानि

By JagranEdited By: Published: Sat, 09 Feb 2019 11:05 PM (IST)Updated: Sat, 09 Feb 2019 11:05 PM (IST)
पहले से ही संकट कम नहीं अब मलबा छीन रहा है सौर की ठौर
पहले से ही संकट कम नहीं अब मलबा छीन रहा है सौर की ठौर

जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़: भारत नेपाल के मध्य बहने वाली काली नदी में पाई जाने वाली सौर यानि सूस मछली पर पहले से ही संकट कम नहीं थे इधर अब सड़क निर्माण का मलबा डाले जाने से इस प्रजाति पर आसन्न संकट गहरा चुका है। कभी लोगों में खौफ पैदा करने वाली महाशीर प्रजाति का सौर का आकार घटता जा रहा है। सड़कों का मलबा काली नदी में डाले जाने से सौर की ठौर प्रभावित हो रही है। जबकि इस बड़े आकार की मछली को ताजे जल के टाइगर का नाम मिला है।

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अलग -अलग नामों से जानी जाती है मछली

काली नदी की महाशीर प्रजाति की इस मछली को स्थानीय लोग अलग-अलग नाम से पुकारते हैं। प्रत्येक क्षेत्र में इसका नाम लेते ही लोग खौफ खाते हैं और इस मछली को लेकर अतीत से चली आ रही कहानियां सुनाते हैं। अस्कोट के तल्लाबगड़ ,जौलजीवी क्षेत्र में इसे सूस कहा जाता है। सूस का स्थानीय अर्थ जिसका कभी पेट नहीं भरता है। झूलाघाट क्षेत्र में सौर कहा जाता है। जिसका शाब्दिक अर्थ बहुत बड़ा आकार तो नदी तट से लगे कुछ क्षेत्रों में इसे सौक्टी कहते हैं। जिसका अर्थ सब कुछ सोख देने वाला है। वहीं मत्स्य जगत में महाशीर मछली को ताजे जल का टाइगर नाम मिला है। जानवरों और मानवों का शिकार करती है सौर काली नदी की सौर के बारे में कहा जाता है कि यह जानवरों से लेकर मानवों तक का शिकार करती थी। आज भी काली नदी में बहने वाले लोगों के 90 फीसद शव नहीं मिलते हैं। जिसका एक कारण यही मछली मानी जाती है। मांसाहारी यह मछली शवों से लेकर नदी की अन्य मछलियों को खा जाती है। काली नदी में काफी अधिक संख्या में नजर आने वाली सौर यानि सूस अब काफी कम नजर आ रही है। इसका शिकार पूर्व से ही डायनामाइट, ब्लीचिंग से होता आया है। इधर अब नदी किनारे निर्मित सड़कों का मलबा नदी में डाले जाने से रही सही कसर भी पूरी होने लगी है।

। सहायक नदियों में आने पर होता है शिकार

सौर मछली जब छोटी होती है और उसका वजन दस किग्रा के आसपास रहता है तो इस दौरान भूले भटके मछलियां सहायक नदियों के उथले पानी में आ जाती हैं। तब इनका जमकर शिकार होता आया है। मछली के 25 किग्रा से अधिक का होने के बाद शिकार संभव नहीं है। काली नदी में भारत नेपाल सीमा पर भैरंगकुच्चा से लेकर टनकपुर तक यह पाई जाती है। इससे ऊपर ग्लेशियरों से निकलने वाली नदी का जल अत्यधिक ठंडा होने से नहीं बढ़ती है।


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