समूह के साथ बढ़े कदम, लिखी खुशहाली की इबारत
2014 में पौड़ी की तत्कालीन सीडीओ सोनिका ने महिलाओं को स्वरोजगार के लिए किया था प्रेरित, अब दिखने लगा है बड़ा बदलाव
गुरुवेंद्र नेगी, पौड़ी। उद्योगविहीन पहाड़ी क्षेत्रों में पलायन की समस्या से सभी वाकिफ हैं। ऐसे दौर में उत्तराखंड के पौड़ी में बौंसरी गांव की महिलाएं समूह बनाकर न केवल जिला मुख्यालय पौड़ी में कैंटीन संचालित कर रही हैं, बल्कि उनकी यह पहल अन्य लोगों के लिए प्रेरणा का स्नोत बनी है। यह सब-कुछ तब देखने को मिल रहा है जब पहाड़ी क्षेत्रों से लोग रोजगार की तलाश में मैदानी इलाकों में भाग रहे हैं। जाहिर है महिलाओं की इस पहल ने पहाड़ में नई संभावनाओं को जन्म दिया है।
जिला मुख्यालय पौड़ी से करीब छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है बौंसरी गांव। इस गांव की महिलाएं पहले खेतीबाड़ी करती थीं, लेकिन धीरे-धीरे उनकी सोच बदली और उन्होंने समय निकालकर एक साथ बैठना शुरू कर दिया। इन्हीं बैठकों से उनमें समूह की सोच ने जन्म लिया। समूह को नाम दिया गया बदरीनाथ स्वयं सहायता समूह। बावजूद इसके स्वरोजगार की दिशा में कोई उल्लेखनीय पहल नहीं हुई।
गांव की सीमा देवी बताती हैं कि 2014 में ल्वाली गांव में एक बैठक आयोजित हुई, जिसमें कई समूह शामिल हुए। बैठक में तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी सोनिका भी पहुंचीं। उन्होंने महिलाओं को स्वरोजगार अपनाने के लिए प्रेरित किया। सुझाव दिया कि वे सरकारी आयोजनों में बंद डिब्बा भोजन मुहैया कराएं।
बदरीनाथ स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष सीमा देवी बताती हैं कि शुरुआती दौर में महिलाओं को कुछ परेशानी हुई, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। कई बार विकास भवन तो कई बार कमिश्नरी सभागार में सरकारी बैठकों में उन्होंने बंद डिब्बा पहाड़ी व्यंजन मुहैया कराए। इसके सकारात्मक नतीजे सामने आए, जिसकी परिणति नवंबर 2015 में जिला मुख्यालय में इंदिरा अम्मा कैंटीन के रूप में हुई। आज समूह की पांच महिलाएं इस कैंटीन में स्वरोजगार की इबारत लिख रही हैं।
समूह के खाते से लिए 50 हजार
महिला समूह की हर माह बैठक होती है। समूह से जुड़ी सीमा देवी बताती हैं, पहले हमने दस-दस रुपये की धनराशि एकत्रित की। इसका फायदा मिला तो आज हर माह समूह में शामिल महिलाएं 200-200 रुपये जमा कर रही हैं। इसी का नतीजा है कि समूह के खाते में 50 हजार की रकम हर वक्त मौजूद रहती है। जब भी किसी महिला को पैसों की जरूरत होती है, समूह के खाते से उसकी मदद की जाती है। मैंने स्वयं बेटी की शादी में समूह से 50 हजार रुपये लिए।
पांच से छह हजार की आमदनी
कैंटीन से जुड़ी महिलाओं को हर माह पांच से छह हजार रुपये की कमाई हो जाती है। जब सब्सिडी मिलती है तो सभी आपस में बांट लेती हैं। कैंटीन की खास बात यह है कि कैंटीन में पहाड़ी व्यंजन पर आधारित भोजन मुहैया कराया जाता है। महिलाएं समय-समय पर चौलाई के लड्डू बनाकर भी बेचती हैं। बौंसरी निवासी अंशी देवी व सावित्री देवी बताती हैं कि तत्कालीन सीडीओ सोनिका ने हमें स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया।