प्रवृत्ति बदल रहा गुलदार, तलाश रहा आसान शिकार
जागरण संवाददाता कोटद्वार पहाड़ गुलदार के आतंक से थर्रा रहा है। आए दिन कहीं न कहीं
जागरण संवाददाता, कोटद्वार: पहाड़ गुलदार के आतंक से थर्रा रहा है। आए दिन कहीं न कहीं गुलदार के हमलों की घटनाएं सामने आ रही हैं। सवाल यह उठ रहे हैं कि आखिर क्यों गुलदार जंगल छोड़ बस्ती के नजदीक आ गए हैं? साथ ही सवाल यह भी उठता है कि आखिर पर्वतीय क्षेत्रों में गुलदार की तादाद कितनी है? गुलदार की तादाद की जानकारी तो वन महकमे के पास भी नहीं है, लेकिन बस्ती के नजदीक आने का कारण जंगल में भोजन की कमी बताया जा रहा है।
गुरुवार को चौबट्टाखाल तहसील के अंतर्गत ग्राम डबरा में महिला को निवाला बनाने वाले गुलदार की मौत अपने पीछे सवालों की लंबी फेहरिस्त छोड़ गई। एक बार फिर सवाल उठा कि आखिर क्यों लगातार पहाड़ में गुलदार का आतंक दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। वर्ष 2008 से अब तक 41 आदमखोर गुलदारों का सफाया कर चुके शिकारी जॉय हुकिल का कहना है कि गुलदार को पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा था। ऐसे में भोजन की तलाश में उसने मानव बस्ती का रुख किया। मानव बस्ती में आसानी से शिकार मिल जाने के कारण उसने बस्ती के आसपास ही रहना शुरू कर दिया। पहले पालतू पशुओं का शिकार किया व बाद में मानव का भी शिकार करना शुरू कर दिया। समय के साथ गुलदार की प्रवृत्ति पूरी तरह बदल गई, जिसके स्वभाव में शिकार का पीछा कर भोजन का प्रबंध करना था, लेकिन मानव बस्ती के नजदीक आकर वह शिकार की खातिर संघर्ष नहीं करना चाहता।
मानव को करना होगा प्रयास
मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने के लिए तमाम प्रयास मानव को ही करने होंगे। ऐसे में इस तरह की नीतियां बननी बेहद जरूरी हैं, जिनसे गुलदार को मानव बस्ती से दूर रखा जा सके। वन महकमा पर्वतीय क्षेत्रों में गुलदार की तादाद बढ़ने की बात तो करता है, लेकिन आज तक गुलदार की गणना नहीं की गई है। नतीजा, महकमे को भी नहीं पता कि पर्वतीय क्षेत्र में कितने गुलदार मौजूद हैं। ऐसे में मौजूद गुलदार के लिए जंगल में भोजन की व्यवस्था कैसे की जाए, यह बड़ा सवाल है। स्वयं शिकारी जॉय हुकिल भी कहते हैं कि वन क्षेत्रों में गुलदार की गणना किया जाना बेहद जरूरी है।