सिस्टम की पड़ी ऐसी मार, मिठास घोलने से पहले ही दम तोड़ती सीएम की बगिया
सीएम रावत ने कार्यभार संभालते ही पूरे प्रदेश में खाली जमीनों पर बागान लगाकर लोगों को स्वरोजगार से जोड़ने की मंशा जताई थी। लेकिन ये योजना भी साकार होती नजर नहीं आ रही।
सतपुली, पौड़ी गढ़वाल[गणेश काला]: मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के गांव-गांव बागान तैयार कर ग्रामीणों को स्वरोजगार देने की मंशा पर सरकारी सिस्टम ही पानी फेर रहा है। और गांवों की छोड़िए, सिस्टम ने तो सीएम के पैतृक गांव खैरासैण में ही उम्मीदों का मखौल उड़ा दिया। असल में उद्यान विभाग ने खैरासैण में पांच हेक्टेयर भूमि पर लीची का बाग तैयार कर वहां सिंचाई के लिए हौज (तालाब) तो बना दी, लेकिन इस हौज तक पानी पहुंचाना जरूरी नहीं समझा। इतना ही नहीं, लीची के नन्हें पौधों के पास कूड़ा जलाने से सालभर में ही इस बगिया की सांसें उखड़ने लगी हैं।
सीएम रावत ने कार्यभार संभालते ही पूरे प्रदेश में खाली जमीनों पर बागान लगाकर लोगों को स्वरोजगार से जोड़ने की मंशा जताई थी। इसी क्रम में बीते वर्ष सीएम के पैतृक घर के निकट खैरासैण में पांच हेक्टेयर भूमि पर लीची का बागान विकसित करने का खाका बना तो डीएम से लेकर तमाम दिग्गज अफसर खैरासैण पहुंचकर इसे मॉडल के तौर पर देख रहे थे। कार्यदायी संस्था खंड विकास कार्यालय जयहरीखाल और उद्यान विभाग कोटद्वार ने गांव में बड़े जलसे के बीच लीची के 500 पौधों का रोपण भी कर दिया।
मनरेगा के बजट से तैयार हो रहे इस बागान में पानी के लिए बाकायदा हौज बनाई गई, लेकिन अति उत्साहित अफसर इस हौज तक पानी पहुंचाना भूल गए। जानवरों से बाग की सुरक्षा के लिए घेरबाड़ भी तैयार हुई, लेकिन एंगलों की बुनियाद न होने के कारण वह जमींदोज होने के कगार पर हैं।
बाग में ही जलाई झाड़ियां, झुलसे पौधे
यह लापरवाही की हद ही तो है कि तकनीकी समन्वय के अभाव में पिछले दिनों बाग में काटी गई झाडिय़ों को बाग में ही आग के हवाले कर दिया गया। नतीजा, हरियाली पकड़ रहे सैकड़ों पौधे झुलस गए। पिछले दिनों गांव के दौरे पर आए गढ़वाल आयुक्त दिलीप जावलकर व जिलाधिकारी सुशील कुमार भी बाग की इस दुर्गति से खासे व्यथित नजर आए।
उद्यान निरीक्षक डॉ. एसएन मिश्रा का कहना है कि बागान का निरीक्षण किया है। सिर्फ 30 से 40 पौधे ही जीवित हैं। ग्रामीणों से अपेक्षित सहयोग न मिल पाने के कारण बागान की स्थिति नहीं सुधर पा रही। ग्राम प्रधान से भी सहयोग की गुजारिश की गई है।
यह भी पढ़ें: मंडुवे के बिस्किट बन रहे लोगों की पहली पसंद, कर्इ राज्यों में होगी बिक्री
यह भी पढ़ें: यहां खिलते हैं 500 से अधिक प्रजाति के फूल, चले आइए फूलों की घाटी
यह भी पढ़ें: लेमनग्रास बनी पहाड़ के लोगों के लिए वरदान, रुका पलायन