टिंचरी माई के कहने पर पं.जवाहर लाल नेहरू ने स्वीकृत की थी यह योजना, आज बनी इतिहास
टिंचरी माई के कहने पर प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू ने कोटद्वार के भाबर क्षेत्र के लिए पेयजल योजना को स्वीकृत किया था, पर सरकारी सिस्टम उस अनमोल सौगात को सहेज नहीं पाया।
कोटद्वार, [अजय खंतवाल]: सौगात मिली, लेकिन विकल्पों के पीछे भाग रहा सरकारी सिस्टम उस अनमोल सौगात को सहेज नहीं पाया। बात हो रही है उस सिगड्डी पेयजल योजना की, जिसे इच्छागिरी माई (टिंचरी माई) के कहने पर प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू ने कोटद्वार के भाबर क्षेत्र के लिए स्वीकृत किया था। लेकिन, नलकूप खोदने की होड़ में आज न योजना बची है और न इस योजना का नाम लेने वाला ही। योजना में लगे पाइप भी कहां गए, इसकी जानकारी स्वयं सरकारी नुमाइंदों को भी नहीं है।
वर्ष 1948-49 में हरिद्वार से कोटद्वार के सिगड्डी गांव में पहुंची टिंचरी माई ने यहीं पर घास-फूस की झोपड़ी बनाकर जीवन-बसर शुरू किया। सिगड्डी में तब पानी का घोर अभाव था और बहू-बेटियों को पानी के लिए यहां-वहां भटकना पड़ता था। माई को यह स्थिति सहन नहीं हुई तो वह डिप्टी कलेक्टर से मिलीं, पर कोई फायदा नहीं हुआ। माई ने हिम्मत नहीं हारी और दिल्ली पहुंचकर पं.नेहरू की कोठी के फाटक पर धरना देकर बैठ गईं। जैसे ही नेहरूजी अपनी कार से कार्यालय जाने को निकले, माई कार के सामने खड़ी हो गईं। पुलिस ने माई को हटाने का प्रयास किया, लेकिन वह टस-से-मस नहीं हुईं।
नेहरूजी गाड़ी से नीचे उतरे तो माई ने गांव की बहू-बेटियों की पूरी स्थिति उनके समक्ष रख दी। माई का पूरा शरीर बुखार से तप रहा था। जैसे ही नेहरूजी ने माई का हाथ थामा तो माई ने सीधा सवाल दागा, 'बोल! पानी देगा या नहीं।' नेहरूजी ने माई को पानी देने का भरोसा दिलाते हुए अस्पताल में भर्ती करा दिया। स्वस्थ होने पर वापस लौटते समय नेहरूजी ने माई को कुछ कपड़े देते हुए कहा कि 'जल्दी पानी मिल जायेगा' और ऐसा ही हुआ भी। कुछ ही दिन बाद सिगड्डी में पानी आ गया।
टिंचरी माई : एक परिचय
ताउम्र सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध लड़ी गई लड़ाई ने पौड़ी जिले के थैलीसैण ब्लॉक स्थित मंज्यूर गांव में रामदत्त नौटियाल के घर जन्मी दीपा को इच्छागिरी माई (टिंचरी माई) का नाम दिया। पांच वर्ष की आयु में मातृ-पितृ विहीन हो चुकी दीपा का लालन-पालन उनके चाचा ने किया। सात वर्ष की आयु में उनका विवाह गवाणी गांव के गणेशराम से हुआ। ससुराल में एक दिन बिताकर दीपा पति के साथ रावलपिंडी चली गई। पति हवलदार गणेशराम पत्नी को बड़े लाड़-प्यार से रखते, लेकिन नियति को यह भी मंजूर न हुआ और गणेशराम की भी मृत्यु हो गई। 19 वर्ष की आयु में दीपा ससुराल आ गई, लेकिन वहां मिले तिरस्कार ने दीपा की सोच बदली और वह अकेले ही लाहौर चली गईं।
वहां एक मंदिर में एक संन्यासिनी ने दीपा को दीक्षा दी और उन्हें 'इच्छागिरी माई' का नाम मिला। भारत-पाक विभाजन के दौरान वह लाहौर छोड़ हरिद्वार आ गईं, लेकिन हरिद्वार भी उन्हें रास नहीं आया तो कोटद्वार क्षेत्र के सिगड्डी में आ बसीं। कोटद्वार में माई ने अपने प्रयासों से सिगड्डी पेयजल योजना व मोटाढाक इंटर कॉलेज की सौगात क्षेत्र की जनता को दी।
वर्ष 1955-56 में माई ने पौड़ी में एक शराब (टिंचरी) की दुकान को आग लगा दी और इस घटना के बाद उन्हें 'टिंचरी माई' का नाम मिला।
सिगड्डी पेयजल योजना : तब और अब
पं.जवाहर लाल नेहरू के निर्देश पर बनी सिगड्डी पेयजल योजना की मुख्य लाइन दस किमी लंबी थी। लैंसडौन वन प्रभाग की कोटद्वार व लालढांग रेंज के मिलान स्थल पर स्थित रूपगढ़देव स्रोत से इस योजना का निर्माण हुआ था, जो कि पुराने कोटद्वार-हरिद्वार मार्ग से करीब पांच किमी दूर जंगल में था। सिगड्डी स्रोत में स्थित गुर्जर डेरे में पिछले 75 वर्षों से रह रहे 85-वर्षीय मो.कासिम बताते हैं कि उत्तराखंड राज्य गठन के बाद अगले दो-तीन वर्षों तक इस योजना में पानी चलता रहा। तब योजना की देख-रेख के लिए जल संस्थान के चार-पांच कर्मियों की नियमित तैनाती होती थी और वर्षभर लोगों को योजना का लाभ मिलता था। लेकिन, बाद के वर्षों में योजना के पाइप भी नहीं बचे।
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