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मुफलिसी में पढ़ा ये शिक्षक कुछ इस तरह गढ़ रहा है मजलूमों का भविष्य

सहायक अध्यापक डॉ. प्रताप सिंह नौनिहालों का भविष्य संवारने के लिए ही बने हैं। वे जरूरतमंद बच्चों के लिए पाठ्य-सामग्री जुटाकर कर्तव्यनिष्ठा का संदेश दे रहे हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Wed, 05 Sep 2018 02:33 PM (IST)Updated: Thu, 06 Sep 2018 09:29 AM (IST)
मुफलिसी में पढ़ा ये शिक्षक कुछ इस तरह गढ़ रहा है मजलूमों का भविष्य
मुफलिसी में पढ़ा ये शिक्षक कुछ इस तरह गढ़ रहा है मजलूमों का भविष्य

सतपुली, पौड़ी[गणेश काला]: हाथ में हथौड़ी, कांधे पर पत्थर और मिट्टी से सने हाथ। कॉलेज परिसर को अपने हाथों से संवारने में जुटे शिक्षक डॉ. प्रताप सिंह की यह दिनचर्या उनकी रचनाधर्मिता और शिक्षा के प्रति समर्पण की तस्दीक करने के लिए काफी है। उन्होंने खुद मुफलिसी में रहकर अक्षर ज्ञान हासिल किया और अब जरूरतमंद बच्चों के लिए पाठ्य-सामग्री जुटाकर कर्तव्यनिष्ठा का संदेश दे रहे हैं। 

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पौड़ी जिले के सतपुली स्थित राजकीय इंटर कॉलेज में सहायक अध्यापक डॉ. प्रताप सिंह मानो नौनिहालों का भविष्य संवारने के लिए ही बने हैं। खुद मीलों पैदल चलकर गांव के सरकारी स्कूलों में पढ़े प्रताप सिंह का शिक्षण के प्रति समर्पण ही तो है, जो अवकाश के दिनों में भी हथौड़ी और कन्नी लेकर चल पड़ते हैं शिक्षा के मंदिर को संवारने। बीते दो साल से अपने इस कर्तव्य का निर्वहन कर रहे प्रताप सिंह कॉलेज परिसर में क्षतिग्रस्त पुश्तों की मरम्मत से लेकर पेयजल टैंक का निर्माण, हदबंदी, वॉल पेंटिंग आदि कार्यों को लगातार अंजाम तक पहुंचाने में जुटे हैं। 

इतना ही नहीं, अवकाश के दिनों में वे छात्रों के घर जाकर उनके अभिभावकों के सहयोग से बच्चों की कमजोरियों को चिह्नित करते हैं और फिर उनके निराकरण के लिए भी प्रेरित करते हैं। पर्यावरण एवं स्वच्छता भी उनके कार्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है। हर वर्ष वे विभिन्न स्थानों पर पौधरोपण कर छात्रों व जन सामान्य को पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हैं। 

संघर्षों में तपकर निखरे प्रताप 

पौड़ी जिले के कल्जीखाल प्रखंड स्थित ग्राम कुड़ी गांव निवासी भरोसा सिंह व बिगरी देवी के घर जन्मे प्रताप सिंह का बचपन मुफलिसी में गुजरा। पिता राजमिस्त्री का कार्य करते थे, इसलिए सात भाई-बहनों वाले इस परिवार की गुजर बामुश्किल हो पाती थी। बावजूद इसके अपनी लगन की बदौलत प्रताप सिंह ने न केवल बेहतर शिक्षा हासिल की, बल्कि शिक्षक बन ज्ञान का प्रकाश फैलाने का भी निर्णय लिया। बकौल प्रताप सिंह, 'मैं अपने वेतन का एक हिस्सा स्कूल में विभिन्न कार्यों पर व्यय करता हूं। साथ ही बच्चों को सीख देता हूं कि भविष्य में वे भी वेतन के एक हिस्से को सामाजिक कार्यों में अवश्य लगाएंगे।' 

खुद के बच्चे भी सरकारी स्कूल में 

आमतौर पर सरकारी स्कूलों के शिक्षक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना पसंद करते हैं। लेकिन, प्रताप सिंह ने अपने दोनों बच्चों को सरकारी स्कूल में ही शिक्षा देना जरूरी समझा। वर्तमान में उनका एक पुत्र 12वीं और दूसरा दसवीं में पढ़ रहा है। कहते हैं, 'यदि हम अपने बच्चों को सरकारी के बजाय प्राइवेट में भेज रहे हैं तो तय मानिए कि यह हमारे शैक्षणिक कौशल पर सवालिया निशान है। राजकीय इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य रामअवध भास्कर अपने कर्तव्य एवं जुनून के लिए  प्रताप सिंह सालभर में मिलने वाले उपार्जित अवकाश को भी तवज्जो नहीं देते। हर साल उनकी पांच से छह सीएल बचती हैं। कॉलेज को संवारने और बच्चों के भविष्य के प्रति सजग प्रताप सिंह से हम सबको प्रेरणा लेनी चाहिए।

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