कृषि व पर्यटन से पहाड़ी देश विकास के सर्वश्रेष्ठ मॉडल
जागरण संवाददाता श्रीनगर गढ़वाल देश में खेती की स्थिति किसानों की समस्या उद्यानिकी और क
जागरण संवाददाता, श्रीनगर गढ़वाल:
देश में खेती की स्थिति, किसानों की समस्या, उद्यानिकी और कृषि क्षेत्र में रोजगार की संभावना जैसे ज्वलंत मुद्दों पर देश के विभिन्न राज्यों से आए प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने शनिवार को राष्ट्रीय कार्यशाला मंथन में अपने विचार रखे। विभिन्न विश्वविद्यालयों से आए 200 से अधिक प्रतिभागी विषय विशेषज्ञों ने कार्यशाला के पहले दिन 120 शोध पत्र पढ़े। पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर तेजप्रताप ने कहा कि कृषि और पर्यटन के बूते ही विश्व के पहाड़ी देश विकास के सफल मॉडल भी बने हैं।
गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग की ओर से किसानों और कृषि को लेकर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला मंथन श्रीनगर के चौरास परिसर स्थित ऑडिटोरियम में शनिवार से शुरू हुई। पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर तेजप्रताप ने बतौर मुख्य अतिथि कार्यशाला का शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि कहा कि पर्वतीय क्षेत्र में कृषि का भविष्य सुनहरा है। पर्वतीय क्षेत्र की कृषि के साथ ही जैव विविधता पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। उन्होंने स्विटजरलैंड, जापान सहित अन्य देशों के उदाहरण देते हुए कहा कि कृषि और पर्यटन के बूते ही विश्व के पहाड़ी देश विकास के सफल मॉडल भी बने हैं। पहाड़ से हो रहे पलायन पर भी चिता व्यक्त करते हुए कहा कि खेती और उद्यानिकी से दूरी बन जाना भी इसका एक प्रमुख कारण है। राष्ट्रीय कार्यशाला में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आए 200 से अधिक प्रतिभागी विषय विशेषज्ञों ने पहले दिन 120 शोध पत्र भी पढ़े। इस मौके पर गढ़वाल केंद्रीय विवि के अधिष्ठाता छात्र कल्याण अध्यक्ष प्रोफेसर पीएस राणा, संयोजक प्रोफेसर एमसी सती, डॉ. प्रशांत कंडारी ने भी विचार रखे।
पहाड़ी परंपरागत फसलों का उत्पादन बढ़ाने पर जोर
गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर अन्नपूर्णा नौटियाल ने मंडुवा, झंगोरा आदि पहाड़ की परंपरागत फसलों का उत्पादन बढ़ाने पर जोर देते हुए कहा कि पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन के लिए भी इन फसलों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी जरूरी है। पहाड़ की परंपरागत फसलें पौष्टिक अनाज उपलब्ध कराने के साथ ही भूमि संरक्षण को रोकने और पर्यावरण के अनुकूल भी होती हैं। अंतरराष्ट्रीय फूड पॉलिसी रिसर्च सेंटर दिल्ली के निदेशक प्रोफेसर पीके जोशी ने बतौर मुख्य वक्ता कहा कि देश की परफॉर्म और रिफॉर्म नीति खेती और किसानों पर आधारित होनी चाहिए। कृषि और किसानों को लेकर देश कृषि कमीशन तक ज्यादा सीमित रहा है। खेती को सरकार के शिकंजे से मुक्त करने पर विशेष जोर देते हुए प्रोफेसर पीके जोशी ने कहा देश को यदि 2022 तक फाइव ट्रिलियन डॉलर और 2030 तक दस ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाना है तो कृषि के साथ ही किसानों पर आधारित नीतियां और योजनाएं बनानी होंगी। इनसेट मंथन में रखे विचार
किसानों की आय दोगुनी करने और किसान पॉलिसी के संदर्भ में देश के विभिन्न क्षेत्रों से आए अर्थशास्त्रियों ने कार्यशाला के प्रथम दिन मंथन सत्र में भाग लेते हुए विचार साझा किए। कुमाऊं विवि के पूर्व कुलपति प्रोफेसर वीके नौटियाल की अध्यक्षता में चले मंथन सत्र में आइआइटी दिल्ली के प्रोफेसर पीके चौबे, गिरी विकास संस्थान लखनऊ के प्रोफेसर आरपी ममगांई, आइआइटी रुड़की के प्रोफेसर एसपी सिंह, मेरठ विवि के प्रोफेसर आरपी जुयाल सहित अन्य कई वरिष्ठ अर्थशास्त्रियों ने भी प्रतिभाग किया। तीन तकनीकी सत्र चले
कृषि और किसान को लेकर आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला के प्रथम दिन तीन तकनीकी सत्र चले। जिसमें कुल 120 शोध पत्र पढ़े गए। राष्ट्रीय कार्यशाला के आयोजक प्रोफेसर एमसी सती ने कहा कि कार्यशाला के दूसरे दिन रविवार को विषय विशेषज्ञों की ओर से 80 शोध पत्र पढ़े जाएंगे। देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों और अन्य उच्च शैक्षिक संस्थानों से 200 से अधिक अर्थशास्त्र बतौर प्रतिनिधि इस कार्यशाला में प्रतिभाग कर रहे हैं।