बिना मैदान कैसे संवरे भविष्य
खेलेगा इंडिया बढ़ेगा इंडिया लेकिन जब मैदान ही नहीं तो कहां खेलेगा और कैसे बढ़ेगा इंडिया।
जागरण संवाददाता, कोटद्वार :
'खेलेगा इंडिया, बढ़ेगा इंडिया', लेकिन जब मैदान ही नहीं तो कहां खेलेगा और कैसे बढ़ेगा इंडिया। कोटद्वार के राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में खेल के क्षेत्र में भविष्य संवारने की उम्मीदें लेकर आने वाले युवाओं से बेहतर शायद ही अन्य कोई इस बात से वाकिफ हो। दरअसल, स्थापना के बाद से आज तक महाविद्यालय के पास अपना खेल मैदान नहीं है। हालात यह हैं कि महाविद्यालय को स्वयं की वार्षिक क्रीड़ा प्रतियोगिताएं भी राजकीय स्पोर्ट्स स्टेडियम में करवानी पड़ती हैं।
कोटद्वार में 1976 में महाविद्यालय की स्थापना हुई। उस दौरान में महाविद्यालय बुद्धा पार्क के समीप दो-तीन कमरों में संचालित होता था। वक्त बीतने के साथ ही शासन ने लैंसडौन वन प्रभाग के कोटद्वार रेंज कार्यालय से सटी वन भूमि कॉलेज निर्माण के लिए अवमुक्त कर दी। खेल मैदान की जरूरत महसूस हुई तो महाविद्यालय के समीप ही एक हेक्टेयर वन भूमि महाविद्यालय को दे दी गई। वक्त के साथ महाविद्यालय का उच्चीकरण होता तो खेल मैदान की भूमि में कक्षा-कक्ष बना दिए। आज हालात यह हैं कि मैदान के नाम पर भूमि का एक छोटा सा टुकड़ा है, जिसमें खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन संभव नहीं। शासन में लटकी है भूमि संबंधी फाइल
खेल मैदान की कमी को देखते हुए करीब डेढ़ दशक पूर्व महाविद्यालय प्रशासन ने मैदान से लगी 0.93 हेक्टेयर वन भूमि को खेल मैदान के लिए दिए जाने का प्रस्ताव शासन में भेजा। लेकिन, आज तक यह प्रस्ताव शासन की फाइलों में ही दफन है। प्राचार्या डॉ. जानकी पंवार ने बताया कि इस प्रस्ताव के संबंध में प्रदेश के वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत से भी वार्ता की गई है। उन्होंने अतिशीघ्र उक्त भूमि महाविद्यालय को हस्तांतरित करने का आश्वासन दिया है। संदेश : 8 कोटपी 5
कोटद्वार के राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय परिसर में मौजूद खेल मैदान