कंडी रोड : 18 साल, आठ मुख्यमंत्री और परिणाम शून्य
जागरण संवाददाता, कोटद्वार: 18 वर्ष, आठ मुख्यमंत्री और परिणाम शून्य। यह रिपोर्ट कार्ड उस कंडी रोड (र
जागरण संवाददाता, कोटद्वार: 18 वर्ष, आठ मुख्यमंत्री और परिणाम शून्य। यह रिपोर्ट कार्ड उस कंडी रोड (रामनगर- कालागढ़-कोटद्वार-लालढांग-हरिद्वार) का है, जिससे प्रदेश का शायद प्रत्येक शख्स वाकिफ है। उत्तराखंड के गढ़वाल-कुमाऊं मंडलों की पांचों लोकसभा सीटों के सत्तर लाख से अधिक मतदाताओं से सीधा जुड़ा है कंडी रोड का मुद्दा, लेकिन बात करें तो समाधान की तो शून्य। हैरानी तो इस बात की है कि पिछले 18 वर्षों में राज्य के किसी भी सांसद ने कंडी रोड के निर्माण का मामला संसद में उठाने की जहमत नहीं उठाई। राज्य स्तर पर प्रयास हुए, लेकिन कभी'जंगली कानून'भारी पड़े तो कभी श्रेय लेने की राजनीति। पिछले दो वर्षों में कंडी रोड के निर्माण की कुछ उम्मीद नजर तो आई, लेकिन वह भी कोटद्वार-लालढांग के मध्य ही सिमटती नजर आ रही है।
विडंबना देखिए कि विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाला उत्तराखंड राज्य में प्रदेश की राजधानी देहरादून को नैनीताल हाईकोर्ट से सूबे के भीतर ही सीधे आपस में जोड़ने वाली कोई सड़क नहीं है। दोनों मंडलों के लोगों को आज भी उत्तर प्रदेश से होकर गुजरना पड़ता है। नतीजा, एक ओर लंबी दूरी का किराया व दूसरी ओर यूपी के टैक्स की मार। पूरी तस्वीर में कंडी रोड ही एकमात्र विकल्प, लेकिन जंगल से गुजरने वाले इस मार्ग को आम यातायात के लिए खोलने के लिए गंभीरता से कभी कोई प्रयास नहीं हुए। 1972 में जब वन कानून बने थे, ब्रिटिश काल की यह सड़क उस दौर में भी अस्तित्व में थे। तमाम आवागमन, व्यापार और यात्राएं इसी मार्ग से होते थे वन कानून आए और पहाड़ की इस'लाइफ लाइन'को निगल गए। हालांकि, इस मार्ग के कालागढ़-कोटद्वार व कोटद्वार-लालढांग के मध्य आवागमन आज भी जारी है, लेकिन वन महकमा कब बंदिश लगा दे, कहा नहीं जा सकता।
कंडी रोड कुछ तथ्य
1. राज्य के भीतर गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों को आपस में सीधे जोड़ने वाला एकमात्र मार्ग।
2. रामनगर से काशीपुर, जसपुर, अफजलगढ़ होते हुए कोटद्वार की दूरी 161 किमी, जबकि कंडी मार्ग के खुलने पर यह होगी 88 किमी।
3. अभी तक दोनों मंडलों के लोगों को उत्तर प्रदेश के बिजनौर से होकर देहरादून अथवा रामनगर आना-जाना पड़ता है।
4. पड़ोसी राज्य की सड़क का उपयोग करने पर उत्तराखंड के लोगों पर पड़ती है विभिन्न करों की मार।
5. लगातार आंदोलन के बावजूद अब तक राज्य सरकार अथवा सांसदों ने इस अहम सवाल को गंभीरता से नहीं लिया।
कब क्या हुआ
1. जनता की मांग पर सर्वप्रथम 1976 में लोनिवि ने कंडी रोड निर्माण का प्रस्ताव बनाया। प्रस्ताव को मंजूरी मिली और कोटद्वार से गूलरस्त्रोत तक 19.37 किलोमीटर और लालढांग गांव से रामनगर तक 20 किलोमीटर तक का निर्माण कार्य लोनिवि ने किया, लेकिन वन संरक्षण अधिनियम 1980 के लागू होने के बाद इस मार्ग के शेष हिस्से का निर्माण रुक गया।
2. जनता ने आंदोलन छोड़ा तो 1992 में सरकार ने इस मार्ग को आम यातायात के लिए खोलने के मद्देनजर 92 लाख की राशि स्वीकृत कर दी।
3. बाद में पुराने कंडी रोड और यूपी से होकर गुजरने वाली सड़क की जगह नया रोड मैप आया। 138 किमी लंबी इस सड़क का 95 किमी भाग उत्तराखंड और शेष यूपी से गुजरता था।
4. 2006 में क्षेत्रवासियों ने जनांदोलन शुरू किया और रामनगर-कालागढ़-कोटद्वार मार्ग संयुक्त संघर्ष समिति अस्तित्व में आई।
संदेश : 22 कोटपी 1
कंडी रोड पर कोटद्वार से रामनगर की ओर पड़ने वाले हिस्से में पाखरो का वह गेट, जहां से सड़क वन क्षेत्र में प्रवेश करती है। जागरण