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ऐशोआराम की जिंदगी छोड़ ये दंपती कर रहा है लोगों का दुख दूर

डॉक्टर अरुण नेगी ने आलीशान जिंदगी छड़कर पहाड़ों में मोतियाबिंद की समस्या से जूझ रहे लोगों का दर्द दूर करने की ठानी। आज वो पहाड़ में शिविर लगाकर उनकी मदद कर रहे हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sat, 11 Aug 2018 06:17 PM (IST)Updated: Sat, 11 Aug 2018 09:02 PM (IST)
ऐशोआराम की जिंदगी छोड़ ये दंपती कर रहा है लोगों का दुख दूर
ऐशोआराम की जिंदगी छोड़ ये दंपती कर रहा है लोगों का दुख दूर

कोटद्वार, [अजय खंतवाल]: अपने परिवार के साथ दिल्ली की आलीशान जिंदगी जी रहे थे वरिष्ठ नेत्र सर्जन डॉ. अरुण नेगी। लेकिन दिलो-दिमाग में कहीं न कहीं उन 'अपनों' के लिए एक दर्द था, जिनकी आंखों को मोतियाबिंद लगातार नुकसान पहुंचा रहा था और वह जानकारी व संसाधनों के अभाव में अपनी आंखों का उपचार नहीं करा पा रहे थे। डॉ. नेगी ने अपनी अर्धांगिनी रिचा से राय-मशविरा किया और आलीशान जिंदगी को छोड़कर 'अपनों' की रोशनी महफूज रखने के लिए घर लौट आए। परिजनों ने विरोध किया, लेकिन इस दंपती ने तो मानो घर लौट 'अपनों' की सेवा करने का पूरा मन बना लिया था। दोनों बच्चों को हॉस्टल में भेजकर खुद पहाड़ में अपने उद्देश्यों की पूर्ति में जुट गए। 

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बात हो रही है रिखणीखाल प्रखंड के अंतर्गत ग्राम तिमलसैंण निवासी उम्मेद सिंह नेगी और शीला नेगी के पुत्र अरुण की। दिल्ली में जन्म लेने वाले अरुण की पूरी शिक्षा-दीक्षा दिल्ली में ही हुई। पिता उम्मेद सिंह दिल्ली में प्राइवेट जॉब करने के बाद अब दिल्ली में रहते हैं, जबकि माता शीला गृहणी हैं। बचपन से ही होनहार अरुण ने नेत्र चिकित्सा में एमएस की डिग्री हासिल कर दिसंबर 2003 से नोएडा के सेक्टर 12 व सेक्टर 22 में प्राइवेट प्रैक्टिस शुरू की। अरुण की मानें तो उनके क्लीनिक पर पहुंचने वाले मरीजों में सत्तर फीसद मरीज पहाड़ी मूल के थे, जो अपने बुजुर्ग माता-पिता की आंखों का इलाज कराने उनके पास पहुंचते थे। 

अरुण बताते हैं कि बुजुर्ग माता-पिता में से 95 फीसद मोतियाबिंद से पीड़ित होते हैं। जब उनसे पूछा जाता कि इलाज क्यों नहीं कराते तो पता चलता कि उनके क्षेत्र में कोई डॉक्टर नहीं है। बुजुर्ग बताते हैं कि कुछ प्राइवेट डॉक्टर हैं भी तो उनका उपचार काफी महंगा है। 

इन बुजुर्गों की बातें अरुण के सीने में नश्तर की तरह चुभती। जमीनी हकीकत को देखने के लिए अरुण ने 2014 में पौड़ी जिले में नेत्र चिकित्सा शिविर आयोजित किया, जिसमें उन्हें मोतियाबिंद से पीड़ित नब्बे फीसद मरीज मिले। नतीजा, अरुण ने दिल्ली की शाही जिंदगी छोड़ उस पहाड़ की ओर लौटने का मन बना लिया, जिसे उनके परिजन दशकों पूर्व रोजगार की खातिर छोड़ चुके थे। 

मार्च 2017 में अरुण अपनी चार्टेड अकाउंटेंट पत्नी रिचा के साथ कोटद्वार आ गए और कोटद्वार में नेत्र शल्य चिकित्सा संबंधी सुविधाएं जुटानी शुरू कर दी। तीन जुलाई 2017 से डॉ. नेगी ने कोटद्वार में मरीज देखने शुरू किए और दिसंबर 2017 से उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों में नेत्र शिविर आयोजित करने शुरू कर दिए। डॉ. नेगी पिछले छह माह में आठ नेत्र शिविर आयोजित कर चुके हैं, जिनमें नेत्र की मुफ्त जांच व दवा वितरण की सुविधा होती है। साथ ही मोतियाबिंद से पीड़ित मरीजों की कोटद्वार में शल्य चिकित्सा की जाती है।

पहाड़ को 'कैट्रेक्ट' फ्री करना उद्देश्य 

डॉ. नेगी बताते हैं कि पर्वतीय क्षेत्रों में आमजन अपनी आंखों के प्रति कतई जागरूक नहीं हैं। नतीजा, उम्र बढ़ने के साथ ही मोतियाबिंद की समस्या आम हो चली है। कहा कि यदि समय रहते आंखों की देखरेख कर ली जाए तो मोतियाबिंद जैसी समस्या नहीं हो सकती। उन्होंने बताया कि दिल्ली से पहाड़ लौटने का मुख्य उद्देश्य पहाड़ी को 'कैट्रेक्ट' अर्थात मोतियाबिंद से मुक्त करना है। बताया कि वे शिविर में लोगों को आंखों की देखरेख के उपाय भी बताते हैं। 

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