डीसीडीएफ कंगाली की राह में
जागरण संवाददाता, कोटद्वार: 'कल चमन था आज ये सहरा हुआ, देखते ही देखते ये क्या हुआ.। ज
जागरण संवाददाता, कोटद्वार:
'कल चमन था आज ये सहरा हुआ, देखते ही देखते ये क्या हुआ.। जी हां, सत्ता के गलियारों से सहकारिता को बढ़ाने के दावे भले ही तमाम किए जाते हों, लेकिन इन दावों की हकीकत बयां कर रहा है जनपद पौड़ी का जिला भेषज एवं सहकारी संघ (डीसीडीएफ)। स्थिति यह है कि किसी जमाने में प्रतिवर्ष एक करोड़ से अधिक के टर्नओवर वाला संघ आज 'फकीरों' की तरह दिन काट रहा है।
शासन की नीतियों में खामियों का ही परिणाम भुगत रहा जिला भेषज एवं सहकारी संघ। आजादी के उपरांत वर्ष 1949 में हुई थी, जिला भेषज एवं सहकारी संघ की स्थापना। उद्देश्य स्पष्ट था जनपद में सहकारिता को बढ़ावा देना। उस दौरान सहकारी संघ सीमेंट, आयोडाइज्ड नमक, नालीदार चादरें, कपड़ा, ऑयल, आयातित चीनी, खाद की कंट्रोल दरों पर बिक्री करता था। संघ की पौड़ी, लैंसडौन, धुमाकोट, बीरोंखाल, रुद्रप्रयाग, रामनगर सहित विभिन्न स्थानों पर दुकानें थी, जहां से आम आदमी सरकारी दरों पर उक्त वस्तुओं की खरीद कर सकता था। अस्सी के दशक में तो हालात यह थे कि संघ में बिकने वाले सीमेंट, नमक को लेकर मालगाड़ी कोटद्वार रेलवे स्टेशन पर पहुंचती।
समय बदलता गया व सरकार ने उक्त तमाम वस्तुओं को खुले बाजार में बिक्री की अनुमति दे दी, जिसका सीधा प्रभाव संघ की वार्षिक आय पर पड़ा। धीरे-धीरे संघ की दुकानें बंद हो गई व पूरा कारोबार सिमट कर कोटद्वार व आसपास के क्षेत्रों में आकर सिमट गया। उक्त वस्तुओं की खुली बिक्री के बाद संघ ने भेषज व कैरोसिन तेल (मिट्टी तेल) की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया। संघ जहां एक ओर जड़ी-बूटियों के विपणन का कार्य करता, वहीं क्षेत्र में मिट्टी तेल की सप्लाई भी करता। मिट्टी तेल की सप्लाई के लिए संघ के पास अपने आठ टैंकर थे।
वक्त ने पुन: करवट ली और वर्ष 2006-07 में शासन ने भेषज को सहकारी संघ से अलग कर दिया। इसके बाद संघ ने पूरा ध्यान मिट्टी तेल की सप्लाई पर केंद्रित कर दिया, जिससे संघ को प्रतिमाह करीब एक करोड़ का राजस्व मिल जाता। लेकिन छह माह से स्थिति पूरी तरह उलट हो गई। दरअसल, केंद्र सरकार ने उत्तराखंड के मिट्टी तेल कोटे में करीब 69 फीसदी की कटौती कर दी, जिसका सीधा असर जिला भेषज एवं सहकारी संघ पर पड़ा। स्थिति यह रही, जहां संघ मिट्टी तेल से प्रतिवर्ष करीब एक करोड़ कमाता था, आज संघ के समक्ष पांच लाख का आंकड़ा छूना भारी पड़ रहा है। तमाम टैंकर हट गए हैं व महज एक टैंकर ही आय का स्त्रोत बन कर रह गया है।
यह है वार्षिक टर्नओवर की स्थिति
वर्ष,टर्नओवर
2014-15,3.76 लाख
2015-16,0.55 लाख
2016-17,2.47 लाख
पिछले कुछ वर्षों में मिट्टी तेल का कोटा कम होने के कारण स्थिति बिगड़ गई है, जिसे व्यवस्थित करने का प्रयास किया जा रहा है। संघ नए व्यापार को अपनाने की दिशा में प्रयासरत है, ताकि संघ की बदहाल स्थिति को ढर्रे पर लाया जा सके। .वीर ¨सह रावत, सचिव, जिला भेषज एवं सहकारी संघ