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हिमालय पर अभी और शोध की जरूरत : डॉ. शेखर

शीतजल मात्सयकी अनुसंधान निदेशालय के सभागार में 'हालत-ए-हिमालय' विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया।

By Edited By: Published: Tue, 05 Jun 2018 08:20 PM (IST)Updated: Sun, 10 Jun 2018 05:03 PM (IST)
हिमालय पर अभी और शोध की जरूरत : डॉ. शेखर
हिमालय पर अभी और शोध की जरूरत : डॉ. शेखर
भीमताल : शीतजल मात्सयकी अनुसंधान निदेशालय के सभागार में 'हालत-ए-हिमालय' विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि पद्मश्री डॉ. शेखर पाठक ने कहा कि हिमालय इतना विस्तृत है कि अभी जो शोध हुए हैं, उसके अनुसार इसमें 1500 से अधिक ग्लेशियर का पता चला है। अब आवश्यकता है कि नई पीढ़ी इसकी देखभाल करे और एक स्वच्छ पर्यावरण का निर्माण करे। हिमालय जहां अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, तिब्बत ,भारत, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान तक फैला हुआ है, वहीं इसमें विविध प्रकार की संस्कृति, वनस्पति, जीव-जंतु और अन्य कई विषयों में स्थान-स्थान पर भिन्नता है। उन्होंने चलचित्र दिखाकर हिमालय के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां दीं। निदेशक बिरला प्रो. बीएस बिष्ट ने बताया कि पर्यावरण को संतुलित करने के लिए क्रांतिकारी कदम उठाने की आवश्यकता है। विभागाध्यक्ष जीव विज्ञान प्रो. एचसीएस बिष्ट ने बताया कि मेंटल इन्वायरमेंट के बारे में सब को सजग रहना होगा। इस मौके पर लेक्स इंटरनेशनल के विद्यार्थियों के द्वारा प्रस्तुत चलचित्र का भी प्रर्दशन किया गया। व्याख्यान से पूर्व निदेशालय परिसर में वृहद पौधरोपण कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसके बाद लेक्स इंटरनेशनल, हर्बर, माउंट एल्वन स्कूल और हरमन माइनर विद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा बनाए गए मॉडल की प्रदर्शनी लगाई गई। कार्यक्रम में डॉ. रवि पतियाल, मैडम शिवपुरी समेत कई विषय विशेषज्ञ उपस्थित थे। इनसेट केदारनाथ त्रासदी का सच सामने न आना दुर्भाग्यपूर्ण पद्मश्री डॉ. शेखर पाठक ने कहा केदारनाथ में 2013 में आई त्रासदी का सच अब तक सामने नहीं आ पाया, जो दुर्भाग्य है। सरकार को चाहिए था कि हिमालय की त्रासदी पर श्वेतपत्र जारी करती। कहा कि केदारनाथ और बद्रीनाथ को पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित करने से अच्छा है कि इनको धार्मिक स्वरूप में रखा जाए। इस दौरान हिमालय में लगातार बढ़ रही गंदगी पर भी चिंता व्यक्त की गई। बताया कि माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप में टनों कूड़ा इस बात का संकेत है कि हम लोग अपने पर्यावरण और धरोहर के प्रति सजग नहीं हैं। कहा कि यदि बढ़ते तापमान को नहीं रोका गया तो हिमालय की बर्फ पर उसका असर दिखाई देगा। उदाहरण दिया कि गंगोत्री 1882 से कई किमी पीछे चले गई है। भीमताल के पर्यावरण पर हुई विशेष चर्चा कार्यशाला में भीमताल के पर्यावरण में विशेष चर्चा हुई। पाठक ने बताया कि दुर्भाग्य है कि हम लोगों ने मलवाताल का अस्तित्व खो दिया। बताया कि लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व अंग्रेजों ने इस झील को क्षेत्र की सबसे बड़ी झील बताया था। आज इसका वजूद तक नहीं है। बताया कि नैनीताल और भीमताल झील की हालत एक सी है। दोनों अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। नैनीताल झील की हालत प्लास्टिक के कारण अधिक खराब है। दोनों नगरों में वृहद पौधरोपण की आवश्यकता है।

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