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आज ही के दिन 1937 में हुआ था महिला अस्पताल का उद्घाटन, मथुरादत्त पांडे ने बनाया था भवन का प्रारूप

आज से 83 साल पहले हल्द्वानी का महिला अस्पताल बनकर तैयार हुआ था। इसका निर्माण जिला बोर्ड के मुख्य अभियंता मथुरादत्त पांडे ने किया था। मंगलवार को उनकी पुत्री और पौत्र ने महिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. ऊषा जंगपांगी को उद्घाटन के अवसर की तस्वीर भेंट की

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 23 Sep 2020 10:49 AM (IST)Updated: Wed, 23 Sep 2020 10:49 AM (IST)
आज ही के दिन 1937 में हुआ था महिला अस्पताल का उद्घाटन, मथुरादत्त पांडे ने बनाया था भवन का प्रारूप
आज से 83 साल पहले हल्द्वानी का महिला अस्पताल बनकर तैयार हुआ था

हल्द्वानी, जेएनएन : आज से 83 साल पहले हल्द्वानी का महिला अस्पताल बनकर तैयार हुआ था। इसका निर्माण जिला बोर्ड के मुख्य अभियंता मथुरादत्त पांडे ने किया था। वह कुमाऊं केसरी बद्री दत्त पांडे के भतीजे थे। उस दिन की याद को ताजा करने के लिए मंगलवार को उनकी पुत्री और पौत्र ने महिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. ऊषा जंगपांगी को उद्घाटन के अवसर की तस्वीर भेंट की। भोटिया पड़ाव निवासी कर्नल आलोक पांडे ने बताया कि नाना स्वर्गीय मथुरादत्त पांडे ने महिला अस्पताल का निर्माण करवाया था। वह कुशल इंजीनियर थे। उनकी ख्याति पूरे क्षेत्र में थी। ब्रिटिश शासन में 23 सितंबर, 1937 को महिला अस्पताल का उद्घाटन हुआ था। हर वर्ष महिला अस्पताल के उद्घाटन दिवस पर आयोजन किया जाता है। इसी याद को ताजा करते हुए उन्होंने उद्घाटन के अवसर की तस्वीर अस्पताल की मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. ऊषा जंगपांगी के अलावा सीएमओ डॉ. भागीरथी जोशी को भेंट किया। इस दौरान स्वर्गीय पांडे की पुत्री मुन्नी पांडे, प्रकाश चंद्र पांडे, निवेदिता पांडे शामिल रहे।

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महिलाओं की उम्मीदों का बेहतरीन अस्पताल

शहर में अस्पतालों की भरमार है। सरकारी से लेकर तमाम निजी अस्पताल हैं, लेकिन अपने शहर में एक ऐसा अस्पताल भी है, जो 83 वर्षों से हल्द्वानीवासियों का ही नहीं, बल्कि आसपास के क्षेत्रों के लोगों की सेवा में समर्पित है। 23 सितंबर, 1937 में शहर के हार्ट में स्थित महिला अस्पताल केवल 10 बेड से शुरू हुआ था, जो आज 150 बेड तक पहुंच गया है। छोटी-मोटी घटनाएं छोड़ दें तो इस पर कभी बड़ी लापरवाही का दाग भी नहीं लगा। तभी तो आज भी यह महिलाओं की उम्मीदों का बेहतरीन अस्पताल बना हुआ है। इतना ही नहीं कोरानाकाल में भी अस्पताल ने नई पहचान बनाई। कुमाऊं भर की महिलाएं डिलीवरी कराने पहुंच रही हैं। यह संख्या प्रतिमाह 400 तक पहुंचने लगी है।

चिकित्सा अधीक्षक ने भी निभाई जिम्मेदारी

अस्पताल की शान को बनाए रखने के लिए तमाम चिकित्सा अधीक्षकों की भी अहम भूमिका रही है। डॉ. सावित्री सिंह, डॉ. मीना पुनेरा भट्ट के बाद जिम्मेदारी संभाली डॉ. भागीरथी जोशी ने। जिन्होंने अस्पताल को ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए हरसंभव योगदान दिया। डॉ. जोशी के कार्यकाल में अस्पताल के नए भवन का उद्घाटन सीएम त्रिवेंद्र रावत ने किया। अब यह अस्पताल 150 बेड का बना गया।

मर जाएंगे, लेकिन बच्चा पैदा यहीं होगा

यह अस्पताल गरीबों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। शहर के महंगे चमचमाते अस्पताल में जाने में असमर्थ तमाम गरीब परिवार के लोग डिलीवरी कराने पहुंचते हैं। इस अस्पताल में एक साल पहले तक बेड फुल हो जाया करते थे। ऐसे में जब गर्भवती को रेफर किया जाता था तो उनका यही कहना होता था, हम मर जाएंगे, लेकिन हमारा बच्चा यहीं पैदा होगा। हम जमीन पर सो जाएंगे, डिलीवरी करा दीजिए। यही कारण था कि एक बेड पर दो-दो महिलाएं भर्ती रहा करती थी। फिर भी किसी को कोई शिकायत न होती।


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