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आर्थिक विषमता दूर होने से साकार होंगे आरक्षण के सही मायने

आरक्षण से सामाजिक हित तभी साधे जा सकते हैं, जब समाज में आर्थिक असमानता दूर होगी। आर्थिक विषमता दूर करने के लिए देश के प्रत्येक नागरिक को समान अवसर देने होंगे।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 15 Jan 2019 04:25 PM (IST)Updated: Tue, 15 Jan 2019 07:40 PM (IST)
आर्थिक विषमता दूर होने से साकार होंगे आरक्षण के सही मायने
आर्थिक विषमता दूर होने से साकार होंगे आरक्षण के सही मायने

हल्द्वानी, जेएनएन : आरक्षण से सामाजिक हित तभी साधे जा सकते हैं, जब समाज में आर्थिक असमानता दूर होगी। आर्थिक विषमता दूर करने के लिए देश के प्रत्येक नागरिक को समान अवसर देने होंगे। समान शिक्षा व्यवस्था लागू होने से आधी से अधिक समस्याओं का निदान हो सकता है।
कुमाऊं विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट फॉर प्रोफेशनल स्टडीज एंड डेवलपमेंट रिसर्च (आइपीएसडीआर) के निदेशक प्रो. अतुल जोशी ने 'आर्थिक आरक्षण से राजनीतिक हित के साथ क्या सामाजिक हित भी सधेंगे' विषय पर आयोजित विमर्श में यह बात कही। दैनिक जागरण की ओर से आयोजित विमर्श में इस बार प्रो. जोशी अतिथि वक्ता थे। अपनी बात रखते हुए प्रो. जोशी ने कहा कि समाज के शोषित वर्ग को मुख्य धारा में लाने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। दुर्भाग्यवश यह पहल दूसरी ओर मुड़ गई। आरक्षण को नौकरी यानी रोजगार समझा जाने लगा है। इस तरह आरक्षण रोजी-रोटी का मसला बन गया है। इससे पहले समाचार संपादक आशुतोष सिंह ने विषय प्रवर्तन किया। इनपुट हेड गोविंद सनवाल ने आभार ज्ञापित कर विमर्श का समापन किया।

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सामाजिक विकास पर जोर देने की जरूरत
प्रो. जोशी ने कहा कि 21वीं सदी में जब दुनिया विकास के नित नए आयाम छू रही है, हमारा देश धर्म, जाति की बहस में उलझा है। यह देश की बड़ी विडंबना है। देश की सांस्कृतिक, सामाजिक विविधता पर गर्व करने वाला हमारा समाज छुआछूत की विकृत परंपरा से अलग नहीं हो पाया है। देश को सामाजिक विकास की दिशा में काम करने की जरूरत है। जातिवाद को समाप्त किए बिना आर्थिक समानता नहीं आ सकती।

ये है देश में नौकरी का अनुपात
डॉ. जोशी ने आंकड़ा साझा करते हुए बताया कि देश में सरकारी क्षेत्र में महज 2 फीसद नौकरियां हैं। जबकि 34 प्रतिशत रोजगार निजी व 56 प्रतिशत कृषि क्षेत्र से मुहैया होता है। जबकि दलित वर्ग की सरकारी क्षेत्र में 0.73 प्रतिशत, सार्वजनिक सेक्टर में 0.17 प्रतिशत व निजी क्षेत्र में 0.45 प्रतिशत (कुल 1.35 फीसद) भागीदारी है। ऐसे में स्पष्ट है कि देश में आरक्षण के नाम पर राजनीति ही अधिक हुई है।

आरक्षण की शर्तों में संशोधन की जरूरत
सरकार ने शिक्षा, नौकरी में आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए 8 लाख की सीमा तय की है। जबकि 5 लाख से 10 लाख सालाना आय वाला व्यक्ति 20 प्रतिशत इनकम टैक्स के स्लैब में आया है। इस लिहाज ने 20 प्रतिशत इनकम टैक्स देने वाला व्यक्ति भी आरक्षण के दायरे में आएगा। वास्तविक जरूरतमंद के बजाय सबल स्वर्ण आरक्षण का फायदा न उठा ले जाएं, इसके लिए शर्तों में संशोधन की जरूरत है।

अतिथि वक्ता का परिचय
नैनीताल में जन्मे प्रो. अतुल जोशी वर्तमान में कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल में इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज एंड डेवलपमेंट रिसर्च के निदेशक हैं। परिसर विभागाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं। प्रो. जोशी शिक्षक आंदोलनों के साथ ही राज्य आंदोलन में सक्रिय रहे। राष्ट्रीय सेवा योजना में राष्ट्रपति पुरस्कार भी हासिल कर चुके हैं। उनकी पढ़ाई नैनीताल से ही हुई। कुमाऊं विवि से ही एमए, एमकॉम व पीएचडी हासिल की है।

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