पोस्ट मानसून बारिश ने किया निराश, नदियों से लेकर झीलों के जलस्तर में गिरावट
अक्टूबर से दिसंबर के समय को पोस्ट मानसून पीरियड के तौर पर जाना जाता है। दो माह बीच चुके हैं लेकिन इस बार पोस्ट मानसून बारिश ने निराश किया था। कुमाऊं के नजरिये से देखें तो किसी भी जिले में दो मिमी या इससे अधिक बारिश नहीं हुई है।
हल्द्वानी, गणेश पांडे : अक्टूबर से दिसंबर के समय को पोस्ट मानसून पीरियड के तौर पर जाना जाता है। दो माह बीच चुके हैं, लेकिन इस बार पोस्ट मानसून बारिश ने निराश किया था। कुमाऊं के नजरिये से देखें तो किसी भी जिले में दो मिमी या इससे अधिक बारिश नहीं हुई है। तीन जिलों में बारिश की बूंद तक नहीं गिरी। इसका असर नदियों और झीलों पर भी साफ तौर पर दिखा है। हल्द्वानी व आसपास की बड़ी आबादी को पेयजल व सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने वाली गौला के जलस्तर में रिकार्ड कमी देखी गई है। गौला बैराज का जलस्तर बीते पांच वर्षों में पहली बार 200 क्यूसेक के आंकड़े से नीचे पहुंच गया है। भीमताल का जलस्तर 2015 के लेबल पर आ गया है। वहीं नैनीताल के जलस्तर में भी कमी दर्ज की गई है।
झीलों का लेबल तेजी से गिर रहा
बारिश नहीं होने के कारण झीलों का जलस्तर तेजी से गिर रहा है। नैनीझील का पानी रोजाना एक इंच कम हो रहा है। ढाई माह में नैनीझील 3.4 फीट नीचे पहुंच गई है। सितंबर में झील का स्तर 11.3 फीट पर पहुंच गया था। वहीं, भीमताल में भी पानी कम हो रहा है। पिछले साल की अपेक्षा भीमताल का जलस्तर दो फीट कम है। बारिश नहीं होने से सिंचाई के लिए पानी की मांग बढ़ रही है।
कुमाऊं में जिलेवार बारिश का ब्यौरा (मिमी में)
जिला सामान्य बारिश वास्तविक
पिथौरागढ़ 64.0 0.2
बागेश्वर 28.3 1.6
अल्मोड़ा 28.3 0.0
नैनीताल 49.7 0.0
यूएसएनगर 39.9 0.5
चम्पावत 63.9 0.0
(नोटः आंकड़े एक अक्टूबर से 1 दिसंबर तक। स्रोत आइएमडी)
नवंबर में प्रमुख झीलों का जलस्तर
वर्ष भीमताल नैनीताल
2020 42.9 फीट 7.9 फीट
2019 45.0 फीट 7.0 फीट
2018 44.5 फीट 9.2 फीट
2017 43.1 फीट 7.7 फीट
2016 43.7 फीट 4.1 फीट
नवंबर में गौला बैराज का जलस्तर
2020 161 क्यूसेक
2019 203 क्यूसेक
2018 209 क्यूसेक
2017 264 क्यूसेक
2016 227 क्यूसेक
2015 202 क्यूसेक
यह होगा कम बारिश का प्रभाव
विशेषज्ञों की मानें तो कम बारिश के कई प्रभाव देखने को मिलेंगे। मौसम विज्ञानी डा. आरके सिंह का कहना है कि जून आखिरी सप्ताह से मानसून की शुरुआत हो जाती है, लेकिन इससे पहले मार्च से जून के दौरान पेयजल संकट हो सकता है। सिंचाई विभाग के ईई तरुण बंसल ने बताया कि नदियों का जलस्तर गिरने से सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराना मुश्किल होगा। अभी से रोस्टर शुरू हो गया है। सिंचाई के लिए चैथे दिन पानी दिया जा रहा है।
कम बारिश की यह है वजह
जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मौसम विज्ञानी डा. आरके सिंह ने बताया कि इस बार बंगाल की खाड़ी में कम दबाव का क्षेत्र कम विकसित हुए। पश्चिम विक्षोभ भी कम आए। नवंबर में दो बार पश्चिम विक्षोभ आया लेकिन यह अपेक्षाकृत कमजोर रहा। जिसके असर से कुमाऊं की उच्चाई वाली चोटियों पर बर्फबारी तो हुई लेकिन बारिश कम देखने को मिली।