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कुमाऊं में एक दर्जन से अधिक नामों से जाना जाता है उत्तरायणी पर्व nainital news

सूर्य के धनु राशि से मकर में प्रवेश करने का महापर्व मकर संक्रांति के भारत ही नहीं उत्तराखंड में भी अलग-अलग नाम हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Thu, 16 Jan 2020 12:24 PM (IST)Updated: Thu, 16 Jan 2020 12:24 PM (IST)
कुमाऊं में एक दर्जन से अधिक नामों से जाना जाता है उत्तरायणी पर्व nainital news
कुमाऊं में एक दर्जन से अधिक नामों से जाना जाता है उत्तरायणी पर्व nainital news

हल्द्वानी, गणेश पांडे : सूर्य के धनु राशि से मकर में प्रवेश करने का महापर्व मकर संक्रांति के भारत ही नहीं उत्तराखंड में भी अलग-अलग नाम हैं। कुमाऊं में उत्तरायणी व गढ़वाल में मकरैणी नाम से मनाए जाने वाले पर्व को घुघुतिया, पुस्योडिय़ा, मकरैण, मकरैणी, उतरैणी, उतरैण, घोल्डा, घ्वौला, चुन्या त्यार, खिचड़ी संगंराद आदि नामों से जाना जाता है।

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नदियों के संरक्षण की चेतना का उत्सव

लेखक चारु तिवारी बताते हैं कि उत्तरायणी ऋतु त्योहार के साथ नदियों के संरक्षण की चेतना का उत्सव है। उत्तरायणी पर्व पर उत्तराखंड की हर नदी में स्नान करने की मान्यता है। उत्तरकाशी में इस दिन से शुरू होने वाले माघ मेले से लेकर सभी प्रयागों विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग व देवप्रयाग, सरयू-गोमती के संगम बागेश्वर के अलावा अन्य नदियों में लोग पहली रात जागरण कर सुबह स्नान करते हैं। असल में उत्तराखंड में हर नदी को मां व गंगा का स्थान प्राप्त है।

कई पौराणिक कहानियां प्रचलित

चारु तिवारी बताते हैं, कुमाऊं में उत्तरायणी के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। चंद राजाओं के समय राजा कल्याण चंद के पुत्र निर्भयचंद का अपहरण राजा के मंत्री ने कर लिया था। निर्भय को लाड़-प्यार से घुघुति कहा जाता था। मंत्री ने जहां राजकुमार को छुपाया था, उसका भेद एक कौवे ने कांव-कांव कर बता दिया। इससे खुश होकर राजा ने कौओं को मीठा खिलाने की परंपरा शुरू की। एक अन्य पुरातन कथा के मुताबिक, किसी राजा को ज्योतिषियों ने बताया कि उस पर मारक ग्रह दशा है। यदि वह मकर संक्रांति के दिन बच्चों के हाथ से कौओं को घुघुतों (फाख्ता पक्षी) का भोजन कराए तो ग्रह दशा का निराकरण हो जाएगा। अङ्क्षहसावादी राजा ने आटे के प्रतीकात्मक घुघुते तलवाकर बच्चों द्वारा कौओं को खिलाए।

घुघुते बनाए, आज कौओं बच्‍चे बुलाए

हल्द्वानी में बुधवार शाम घरों में आटा-गुड़ मिलाकर घुघुते बनाए गए। आटे के खिलौने, तलवार, डमरू आदि के साथ इन्हें फूल व फलों की माला में पिरोकर बच्चे गले में डालेंगे। गुरुवार सुबह उठकर बच्चे 'काले कौआ काले, घुघुती माला खाले, ले कौआ बड़, मैंके दिजा सुनौंक घ्वड़..' की आवाज लगाकर कौओ को आमंत्रित किया। वहीं, सरयू पार यानी बागेश्वर, पिथौरागढ़ मूल के लोगों ने एक दिन पहले ही घुघुतिया पर्व मनाया।

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