Move to Jagran APP

कश्‍मीरी केसर को रास आई उत्तराखंड की आबोहवा, उत्पादन में आत्मनिर्भर बनेगा प्रदेश

कश्मीरी केसर को शिवालिक की आबोहवा रास आ गई है। यही नहीं पहाड़ की मिट्टी व मौसम ने उसकी गुणवत्ता के साथ बल्ब (प्याजनुमा जड़) की बढ़वार भी बढ़ा दी है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Thu, 27 Aug 2020 02:38 PM (IST)Updated: Thu, 27 Aug 2020 02:38 PM (IST)
कश्‍मीरी केसर को रास आई उत्तराखंड की आबोहवा, उत्पादन में आत्मनिर्भर बनेगा प्रदेश
कश्‍मीरी केसर को रास आई उत्तराखंड की आबोहवा, उत्पादन में आत्मनिर्भर बनेगा प्रदेश

अल्मोड़ा, दीप सिंह बोरा : कश्मीरी केसर को शिवालिक की आबोहवा रास आ गई है। यही नहीं पहाड़ की मिट्टी व मौसम ने उसकी गुणवत्ता के साथ बल्ब (प्याजनुमा जड़) की बढ़वार भी बढ़ा दी है। कोसी कटारमल (अल्मोड़ा) में प्रयोग के तौर पर उगाए गए केसर पर अप्रत्याशित कामयाबी से उत्साहित विज्ञानियों ने राष्ट्ररीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत उत्तराखंड को केसर उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में प्रयास तेज कर दिए हैं। परियोजना से जुड़े शेर ए कश्मीर विश्वविद्यालय के विज्ञानी केसर बीज (बल्ब) व तकनीक राज्य सरकार को देने के लिए तैयार बैठे हैं।

loksabha election banner

देश के हिमालयी राज्यों की बेहतरी को नित नए आयाम स्थापित कर रहे जीबी पंत राष्ट्ररीय हिमालयी अध्ययन मिशन के विज्ञानियों ने एक और कमाल कर दिखाया है। संस्थान के कोसी कटारमल स्थित प्रयोग वाटिका में दो वर्ष पूर्व किए गए अभिनव प्रयोग ने पहाड़ में केसर उत्पादन की नई उम्मीदें जगा दी हैं। बीती फरवरी मार्च में यहां खिले केसर के फूलों को सैफ्रॉन रिसर्च सेंटर (जम्मू कश्मीर) की प्रयोगशाला में भेजा गया। जहां वैज्ञानिक परीक्षण में परिणाम उम्मीद से कहीं बेहतर रहा। कोसी कटारमल में उगाए गए केसर में मौजूद प्रमुख तत्व क्रोसिन मानक 200 से 3.83 प्रतिशत तो पिकरोक्रोसीन (मानक 70) 20.23 फीसद ज्यादा पाया गया है। वहीं सैफ्रानल 20-50 प्रतिशत होना चाहिए जो 34.78 फीसद पाया गया है।

पहाड़ में संवरेगी आजीविका

शेर ए कश्मीर विश्वविद्यालय में प्रो. एमएच खान की अगुवाई में जीबी पंत संस्थान के राष्टï्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन की परियोजना के तहत केसर उत्पादन व उसकी गुणवत्तायुक्त बीज उत्पादन पर लगातार गहन शोध चल रहा। भारत में औषधीय व पोषकीय गुणों से भरपूर केसर की कीमत डेढ़ लाख रुपया प्रति किग्रा जबकि अंतरराष्टï्रीय बाजार में दो लाख रुपये तक है। अल्मोड़ा में उच्च गुणवत्ता के केसर उत्पादन से किसानों की आजीविका को नए नए पंख लग सकते हैं। इसी के मद्देनजर जिले के बिनसर (रानीखेत) व धौलादेवी क्षेत्र में कश्मीरी केसर उगाने की तैयारी है।

दो से चार किलो तक हुए बल्ब

प्रयोग के तौर पर वर्ष 2018 में कोसी कटारमल में कश्मीरी केसर के करीब दो किलो बल्व लगाए गए। इनसे दो ग्राम केसर मिला। दो वर्ष बाद बल्व की संख्या बढ़कर चार किलो तक हो गई है। यानी पहाड़ की मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व उसकी जड़ें भी फैला रहे। केसर में प्रचुर मात्रा में विटामिन। फॉलिक एसिड, रिबोफ्लाबिन, नाइसिन व विटामिन-सी का खजाना। त्वचा व बालों के पोषण में सहायक।

कब लगाते हैं केसर

अक्टूबर व नवंबर में केसर के बल्ब लगाए जाते हैं। जनवरी व फरवरी मध्य में फूल खिलते हैं जो 15-20 दिन के भीतर परिपक्व होकर केसर देने योग्य हो जाते हैं। प्रो. किरीट कुमार, नोडल अधिकारी राष्ट्ररीय हिमालयी अध्ययन मिशन ने बतायाक कि हमारे यहां उगाए गए केसर की गुणवत्ता काफी उच्च पाई गई है। इसकी पुष्टिï के लिए हमने सैफ्रॉन रिसर्च सेंटर में फूल भेजे थे। विज्ञानियों की लैब रिपोर्ट ने इसे ग्रेड-वन श्रेणी में रखा है। अब राज्य सरकार ने भी केसर उत्पादन में दिलचस्पी दिखाई है। बीज व तकनीक हम मुहैया कराएंगे। वार्ता चल रही है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.