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दशमोत्तर छात्रवृत्ति के लिए एक प्रदेश में दो नियम, पहाड़ व मैदान के विद्यार्थियों में 6 हजार रुपये का 'भेदभाव'

Post Matric Scholarship Uttarakhand पर्वतीय जिलों के अभ्यर्थियों को जिस कोर्स की पढ़ाई के लिए 14 हजार रुपये दिए जा रहे हैं मैदानी जिलों में उसी कोर्स की पढ़ाई के लिए 20 हजार रुपये छात्रवृत्ति मिल रही है। यह मामला कुछ दिन पहले कमिश्नर के दरबार में भी आया था।

By Deep belwalEdited By: Rajesh VermaPublished: Wed, 30 Nov 2022 08:42 AM (IST)Updated: Wed, 30 Nov 2022 08:42 AM (IST)
दशमोत्तर छात्रवृत्ति के लिए एक प्रदेश में दो नियम, पहाड़ व मैदान के विद्यार्थियों में 6 हजार रुपये का 'भेदभाव'
सरकार चाहे तो शुल्क निर्धारण समिति बनाकर इस समस्या का हल निकाल सकती है।

हल्द्वानी, दीप चंद्र बेलवाल: Post Matric Scholarship Uttarakhand: दशमोत्तर छात्रवृत्ति योजना के लिए उत्तराखंड में दो-दो नियम चल रहे हैं। शासन से स्पष्ट नीति नहीं बनने के कारण यह स्थिति पैदा हुई है। पर्वतीय व मैदानी जिलों के अभ्यर्थियों की छात्रवृत्ति में छह हजार का अंतर आ रहा है।

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इन लोगों को दी जाती है छात्रवृत्ति

समाज कल्याण निदेशालय हर साल एससी, ओबीसी व दिव्यांग अभ्यर्थियों को दशमोत्तर छात्रवृत्ति आवंटित करता है। मेडिकल, इंजीनियरिंग, एएनएम, जेएनएम, एमबीए, बीएड, बीटेक आदि की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति ट्यूशन फीस के रूप में दी जाती है। इस योजना का लाभ लेने के लिए अभ्यर्थी नेशनल स्कालर्स पोर्टल पर ट्यूशन फीस की रशिद व अन्य अभिलेख अपलोड करते हैं।

पहाड़ के बच्चों को 14 हजार, मैदान को 20 हजार रुपये

पोर्टल पर अपलोड छात्रों का विवरण कालेजों के पास पहुंचता है। इसके बाद कालेज समाज कल्याण विभाग और फिर आइटी सेल को भेजता है। इसके बाद छात्रवृत्ति अभ्यर्थियों के बैंक खातों में पहुंचती है। प्रदेश में छात्रवृत्ति में छह हजार रुपये तक का अंतर आ रहा है। पर्वतीय जिलों के अभ्यर्थियों को जिस कोर्स की पढ़ाई के लिए 14 हजार रुपये दिए जा रहे हैं, मैदानी जिलों के अभ्यर्थियों को उसी कोर्स की पढ़ाई के लिए 20 हजार रुपये तक छात्रवृत्ति मिल रही है। यह एक कोर्स का अंतर है। दूसरे कोर्सों में भी ऐसे मामले सामने आ रहे हैं।

गरीब परिवारों पर पड़ रहा आर्थिक बोझ

दशमोत्तर छात्रवृत्ति का लाभ सरकारी व प्राइवेट दोनों संस्थानों के अभ्यर्थियों को दिया जाता है। प्राइवेट कालेजों में फीस अधिक होने पर गरीब परिवारों के अभ्यर्थी प्रवेश नहीं ले पाते हैं। वहीं किसी तरह प्रवेश ले भी लिया तो छात्रवृत्ति उतनी नहीं होती। जिससे कुछ मदद मिल सके। होनहार बच्चों के स्वजन आर्थिक बोझ के नीचे दब जाते हैं।

शुल्क निर्धारण समिति बनाकर निकल सकता है हल

सरकार चाहे तो शुल्क निर्धारण समिति बनाकर इस समस्या का हल निकाल सकती है। दरअसल, सरकारी कालेजों में जो कोर्स पांच लाख रुपये में होता है। प्राइवेट में उसके लिए 20 लाख रुपये तक देने होते हैं। प्राइवेट स्कूलों में फीस का निर्धारण कर छात्रवृत्ति की राशि को बढ़ाया जा सकता है।

कमिश्नर के जनता दरबार में आया मामला

छात्रवृत्ति का यह मामला कुछ दिन पहले कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत के दरबार में भी सामने आया था। अल्मोड़ा निवासी बीएड के एक छात्र-छात्राओं ने छात्रवृत्ति कम मिलने की शिकायत की थी। इस पर उप निदेशक मौके पर गए थे। इसके बाद अल्मोड़ा व नैनीताल दोनों जिलों के जिला समाज कल्याण अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी गई है।

छात्रवृत्ति को लेकर दो नियम वाला मामला सामने आया है। मामले में दो जिलों के समाज कल्याण अधिकारियों से आख्या मांगी है। इस समस्या को जल्द दूर करने का प्रयास किया जाएगा।

- बीएल फिरमाल, निदेशक समाज कल्याण


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