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उत्तराखंड में मिला कीट-पतंगे खाने वाला पौधा, आखिरी बार 1986 सिक्किम व दार्जिलिंग किया गया था रिकार्ड

चमोली जनपद की मंडल घाटी में कीटभक्षी पौधे की एक दुर्लभ प्रजाति यूट्रीकुलेरिया फरसीलेटा (Utricularia furrows) को रिकार्ड किया गया है। मेघालय और दार्जिलिंग के कुछ हिस्सों में पाई जाने वाली यह प्रजाति 36 साल बाद भारत में फिर से रिकार्ड गई है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 26 Jun 2022 08:15 AM (IST)Updated: Sun, 26 Jun 2022 08:15 AM (IST)
उत्तराखंड में मिला कीट-पतंगे खाने वाला पौधा, आखिरी बार 1986 सिक्किम व दार्जिलिंग किया गया था रिकार्ड
Utricularia furrows : दुर्लभ कीटभक्षी प्रजाति भारत में 36 साल बाद चमोली में रिकार्ड

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी: गोपेश्वर रेंज की वजह से उत्तराखंड वन अनुसंधान को एक बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है। चमोली जनपद की मंडल घाटी में कीटभक्षी पौधे की एक दुर्लभ प्रजाति यूट्रीकुलेरिया फरसीलेटा (Utricularia furrows) को रिकार्ड किया गया है।

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मेघालय और दार्जिलिंग के कुछ हिस्सों में पाई जाने वाली यह प्रजाति 36 साल बाद भारत में फिर से रिकार्ड गई है। 1986 के बाद से इसकी उपस्थिति का प्रमाण नहीं मिल रहा था। खास बात यह है कि वन अनुसंधान की इस मेहनत को 106 साल पुरानी जापानी शोध पत्रिका जरनल आफ जापानी बाटनी में जगह मिली है।

मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक 2019 से वन अनुसंधान ने कीटभक्षी पौधों को खोजने की मुहिम शुरू की है। अभी तक 20 अलग-अलग प्रजातियों का प्रमाण मिला चुका है। गोपेश्वर रेंजर हरीश नेगी और जेआरएफ मनोज ने सितंबर 2021 में मंडल घाटी में कीटभक्षी पौधे की एक दुर्लभ प्रजाति को देखा था।

बाद विज्ञानी प्रमाण के लिए फोटो-वीडियो लेकर वनस्पति सर्वेक्षण संस्थान (बीएसआइ) के पास भेजे गए। गहन अध्ययन के बाद संस्थान के क्षेत्रीय निदेशक एसके सिंह ने बताया कि यह यूट्रीकुलेरिया फरसीलेटा है। भारत में इसकी मौजूदगी का प्रमाण अंतिम बार 1986 में सिक्किम व दार्जिलिंग में ही मिला था। सालों बाद दोबारा रिकार्ड होने से वनस्पति विज्ञानियों में भी खासा उत्सुकता है।

मेडिसीन गुण, उर्वरा विहीन में मिट्टी में जीवन

मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक कीटभक्षी पौधों में मेडिसीन गुणों की संभावना होने के कारण इस पर अलग से शोध चल रहा है। पानी वाली जगह पर यह पनपते हैैं। इसके आसपास की मिट्टी भी उर्वरा विहीन होती है। चर्तुवेदी के मुताबिक वनस्पति की अन्य प्रजातियों की तरह यह प्रकाश संश्लेषण क्रिया से भोजन हासिल नहीं करती। बल्कि शिकार के जरिये संघर्ष करते हैं। इनके ब्लैडर का मुंह 10-15 मिलि सेंकड में खुलकर बंद भी हो जाता है।

रेंजर व जेआरएफ के लगातार तीन रिकार्ड

वन अनुसंधान की गोपेश्वर रेंज के रेंजर हरीश नेगी और जेआरएफ मनोज ने तीन साल में तीन बड़ी उपलब्धि हासिल की है। 2020 में दोनों ने तप्तकुंड ट्रैक पर 3800 मीटर की ऊंचाई पर आर्किड की दुर्लभ प्रजाति लिपरिस पाइग्मिया को रिकार्ड किया। फ्रांस की प्रतिष्ठित शोध पत्रिका रिचर्डियाना में इसे मान्यता भी मिली थी। इसके बाद आर्किड की अन्य प्रजाति सेफालथेरा इरेक्टा को रिकार्ड किया। तब भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण ने माना था कि सेफालथेरा देश में पहली बार रिकार्ड हुई है। अब एक उपलब्धि और मिली है।

वनस्पतियों की खोज और उनके संरक्षण का प्रयास जारी

मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि गोपेश्वर रेंजर और जेआरएफ की मेहनत से कीटभक्षी की इस दुर्लभ प्रजाति को रिकार्ड करने में कामयाबी मिली है। वन अनुसंधान लगातार दुर्लभ वनस्पतियों की खोज और उनके संरक्षण की दिशा में जुटा है। कीटभक्षी प्रजातियों पर रिसर्च को लेकर दुनिया भर के विशेषज्ञों को दिलचस्पी रहती है।


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