Move to Jagran APP

नौकुचियाताल में पर्यटक अब कर सकेंगे शिकारे से सैर

नौकुचियाताल को हाईटेक बनाने के लिए इन दिनों यहां पर शिकारा नावों का निर्माण किया जा रहा है। पर्यटकों को कश्मीर की तर्ज पर यहां भी शिकारा नाव में बैठने का मौका मिलेगा।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 11 Feb 2019 02:06 PM (IST)Updated: Tue, 12 Feb 2019 01:31 AM (IST)
नौकुचियाताल में पर्यटक अब कर सकेंगे शिकारे से सैर
नौकुचियाताल में पर्यटक अब कर सकेंगे शिकारे से सैर

राकेश सनवाल, भीमताल। पर्यटन की दृष्टि से नौकुचियाताल को हाईटेक बनाने के लिए इन दिनों यहां पर शिकारा नावों का निर्माण किया जा रहा है। आने वाले कुछ समय बाद पर्यटकों को कश्मीर की तर्ज पर यहां भी शिकारा नाव में बैठने का मौका मिलेगा। नैनीताल जिले में केवल नौकुचियाताल में ही शिकारा नाव को चलाने की अनुमति है। वहीं शिकारा नाव का निर्माण भी अब स्थानीय स्तर पर होने लगा है। जब तकनीक बाहर से आई तो उसके निर्माण सामग्री में अंतर देखने को मिल रहा है। पूर्व में जहां चप्पू वाली नाव केवल तुन की लकड़ी की बनाई जाती थी, वहीं अब नई तकनीक के तहत स्थानीय कारीगरों ने तुन की लकड़ी की कीमत को देखते हुए उससे भी अच्छा और सस्ता विकल्प सीरस की लकड़ी को खोज निकला है। सीरस की लकड़ी आसानी से स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हो जाती है तो वहीं इसका वजन भी तुन की लकड़ी की तरह हल्का है। जहां पूर्व में चप्पू वाली नाव में पीतल, तांबे की कीलों का प्रयोग किया जाता था, वहीं अब वर्तमान में बाजार में लोहे और सिल्वर की कील का प्रयोग कर नाव को और अधिक टिकाऊ बनाने का प्रयास हो रहा है।

loksabha election banner

एक नाव में लग रहा पंद्रह दिन का समय : पर्यटक सीजन को देखते हुए कारीगर दिन-रात शिकारा को बनाने में जुटे हुए हैं। स्थानीय कारीगर सुरेश चंद्र आर्य, राजू भट्ट, पूरन राम नवीन चंद्र, गोपाल बिष्ट, अनिल चनौतिया ने बताया कि एक नाव को दो कारीगर दिन-रात कार्य कर पंद्रह दिन में तैयार कर लेते हैं। नाव स्वामियों के मुताबिक इसमें एक लाख तीस हजार रुपये का खर्चा आता है। पर्यटक इस नाव को देखते ही आकर्षक होते हैं। इधर, नाव स्वामियों के मुताबिक इस प्रकार की शिकारा बनने में सवा से 1.30 लाख तक का खर्चा आता है। इस नाव में एक साथ छह लोग बैठकर आसानी से झील की सैर कर सकते हैं।

पुटीन के प्रयोग से बढ़ जाती है उम्र : स्थानीय कारीगरों की माने तो बाजार में मिलने वाले पुटीन में रसायन होते हैं। इसलिए एक सीमित समय के बाद उसका असर समाप्त हो जाता है और नाव खराब होने लगती है। इसलिए नाव निर्माण में पुटीन का विशेष ध्यान रखा जाता है। कारीगरों के द्वारा साल लकड़ी की राल और अरसी के तेल से विशेष प्रकार की पुटीन से नाव की मरम्मत आदि की जा रही है।

यह भी पढ़ें : बढेरी बैराज का होगा कायाकल्‍प, पर्यटन स्थल के रूप में होगा विकसित


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.