नई पीढ़ी में पढऩे की संस्कृति विकसित कर रहा यह पुस्तकालय
किताबों और बच्चों के बीच दोस्ती कायम हो, इसके लिए सरकारी स्कूलों के शिक्षकों ने पुस्तकालय खोलकर नायाब पहल की है। स्कूली बच्चों के साथ किताबें पढऩे के शौकीन यहां पहुंचते हैं।
गणेश पांडे, हल्द्वानी : मोबाइल और इंटरनेट के दौर में युवा पीढ़ी रचनात्मक कार्यों से दूर होती जा रही है। मोबाइल के नजदीक आते बच्चे किताबों से दूर हो रहे। किताबों और बच्चों के बीच दोस्ती कायम हो, इसके लिए सरकारी स्कूलों के शिक्षकों ने पुस्तकालय खोलकर नायाब पहल की है। स्कूली बच्चों के साथ किताबें पढऩे के शौकीन यहां पहुंचते हैं।
काठगोदाम के रानीबाग में शैक्षिक दखल नाम से पिछले दो वर्षों से संचालित पुस्तकालय बच्चों व किताबों से दोस्ती कायम कराने में सफल साबित हो रहा है। आसपास के पच्चीस से तीस बच्चे रविवार की छुट्टी के दिन सुबह 9 से 11 बजे का समय किताबों के बीच बिताते हैं। कोई अपनी पसंद की कविता, कहानी पड़ता है तो कोई देश-विदेश की एतिहासिक धरोहर के बारे में अपना नॉलेज बढ़ाता है। बच्चे विभिन्न विषयों की पुस्तकें व पत्रिकाएं पढ़ते और उनके बारे में बातचीत करते हैं। शिक्षकों का यह प्रयास बच्चों के बीच पढऩे-लिखने की संस्कृति विकसित करने में सफल साबित हो रहा है।
अपने घर को बनाया बुक बैंक
शैक्षिक दखल पुस्तकालय के संयोजक दिनेश कर्नाटक ने खुद के घर को बुक बैंक में तब्दील किया है। सदस्यता वाले लोग घर को भी किताबें ले जाते हैं। कर्नाटक कहते हैं मनुष्य को संवेदनशील, मानवीय तथा रचनात्मक बनाने में किताबों की भूमिका सबसे ऊपर है। सार्वजनिक पुस्तकालय कम हो रहे हैं। स्कूलों में बच्चों पर जिस तरह पढ़ाई का दबाव बढ़ रहा है, उससे किताबों के प्रति अरुचि उत्पन्न होती है। बच्चों में चीजों को जानने-समझने या कुछ नया खोजने के बजाय, रटने का जोर रहता है। ऐसे में पुस्तकालय जरूरी हैं।
ऐसे हुई पुस्तकालय की शुरुआत
शिक्षक दिनेश कर्नाटक ने खुद के पास मौजूद ढाई हजार किताबों से पुस्तकाल की शुरुआत की। एक हजार रुपये नकद या इतने मूल्य की उत्कृष्ट किताबें देकर अन्य लोग भी सदस्य बनते गए। कई लोग दान में भी किताबें देते हैं।