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Hindi Diwas 2021 : ऐसा शख्स, जिसमें समाती है हिंदी की विराट दुनिया, किताब ही नहीं, इंटरनेट मीडिया का किया बेहतरीन उपयोग

ये विभूति हैं साहित्यकार अनुवादक ब्लागर स्तंभकार अशोक पांडे जिन्होंने न केवल किताबों के जरिये बल्कि इंटरनेट मीडिया से हिंदी की श्रेष्ठ रचनाओं से भी दुनिया भर के पाठकों का ध्यान खींचा। वर्ष 1966 में जन्मे अशोक पांडे इस समय जज फार्म हल्द्वानी में रहते हैं।

By Prashant MishraEdited By: Published: Sat, 09 Jan 2021 12:55 PM (IST)Updated: Sat, 09 Jan 2021 06:45 PM (IST)
Hindi Diwas 2021 : ऐसा शख्स, जिसमें समाती है हिंदी की विराट दुनिया, किताब ही नहीं, इंटरनेट मीडिया का किया बेहतरीन उपयोग
अब तक दुनिया की प्रसिद्ध 50 से अधिक पुस्तकों का अनुवाद कर चुके हैं।

हल्द्वानी, गणेश जोशी। एक ऐसा शख्स, जिसमें साहित्य, फिल्म, खेल की पूरी दुनिया बसती है। जो दुनिया के अधिकतम देशों की साहित्य की गहरी समझ विकसित कर चुके हों और अंग्रेजी समेत कई भाषाओं का ज्ञान होने के बावजूद हिंदी के प्रति गहरा लगाव रखते हैं। ये विभूति हैं साहित्यकार, अनुवादक, ब्लागर, स्तंभकार अशोक पांडे, जिन्होंने न केवल किताबों के जरिये, बल्कि इंटरनेट मीडिया से हिंदी की श्रेष्ठ रचनाओं से भी दुनिया भर के पाठकों का ध्यान खींचा।

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वर्ष 1966 में जन्मे और बिड़ला विद्या मंदिर नैनीताल में पढ़े अशोक पांडे इस समय जज फार्म हल्द्वानी में रहते हैं। बचपन से ही लिखने-पढऩे का शौक रखने वाले अशोक पांडे अब तक दुनिया की प्रसिद्ध 50 से अधिक पुस्तकों का अनुवाद कर चुके हैं। इसमें अंग्रेजी, स्पेनिश से हिंदी व अंग्रेजी में अनुवाद मुख्य है।

कबाड़खाना ब्लाग के जरिये हिंदी की सेवा

जब अधिकांश लोग इंटरनेट मीडिया की हाईटेक होती तकनीक से वाकिफ नहीं थे, तभी अशोक पांडे ने कबाड़खाना ब्लाग को दुनिया की नजरों में ला दिया था। खुद की रचनाओं के अलावा उन्होंने श्रेष्ठ साहित्यिक रचनाओं से देश-दुनिया के पाठकों का ध्यान आकर्षित किया। यही कारण है कि तमाम देशों के ङ्क्षहदी प्रेमी मुक्तिबोध, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जैसे महान रचनाकारों से लेकर आधुनिक रचनाकारों को पढऩे को प्रेरित हुए। वर्ष 2007 में इस ब्लाग की शुरुआत हुई थी। ङ्क्षहदी साहित्यिक जगत का यह ऐसा ब्लाग है, जिस पर पुस्तक भी प्रकाशित हुई थी।

हिंदी के लिए पेशे के साथ जुनून भी जरूरी

अशोक बताते हैं कि छोटे-छोटे देशों के लेखक दुनिया भर में पढ़े जाते हैं। उनकी एक-एक रचना की लाखों-करोड़ों प्रतियां प्रकाशित होती हैं। भारतीय लेखकों की पुस्तकों को दुनिया तक पहुंचाने के लिए लेखन का जुनून होने के साथ ही अनुवाद को पेशेवर तरीके से लेना होगा, तभी भारत का श्रेष्ठ साहित्य भी दुनिया की नजरों में आएगा।

जर्मनी में दिए साक्षात्कार में बताया था हिंदी का महत्व

बात वर्ष 2004 की है, जब अशोक आस्ट्रिया प्रवास पर थे, तब जर्मनी विश्व पुस्तक मेला आयोजित हुआ था। इसमें भारत से सम्मानित अतिथि के तौर प्रसिद्ध लेखक विष्णु खरे और लीलाधर जगूड़ी शामिल थे। इस सम्मेलन में वहां के प्रसिद्ध रेडियो चैनल में अशोक ने साक्षात्कार दिया था। इस घटनाक्रम को लेकर वह बताते हैं, जब चैनल में तमाम लोग भारतीय रचनाकारों में विक्रम सेठ व सलमान रश्दी तक सीमित करने लगे तो हैरत हुई। जब उनसे मुक्तिबोध जैसे कुछ भारतीय लेखकों की चर्चा हुई तो उन्हें नाम तक मालूम नहीं था।

यह हैं प्रमुख हिंदी अनुवाद की पुस्तकें

कविता संग्रह 'देखता हूं सपनेÓ उनकी प्रसिद्ध रचना है। इसके अलावा लारा एस्कीबेल के स्पेनिश उपन्यास का मूल अनुवाद जैसे चाकलेट के लिए पानी, विंसेंट वन गाग की जीवन गाथा लस्ट फार लाइफ, मैक्सिम गोर्की की गद्य रचना का अनुवाद पीले दैत्य का शहर, फर्नादो पेसाआ की चयनित रचनाओं का अनुवाद पृथ्वी की सारी खामोशी उन्होंने ही किया है।


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