देवस्थानम एक्ट को लेकर स्वामी ने हाईकोर्ट में रखा अपना पक्ष, बोले- सरकार का काम मंदिर चलाने का नहीं
हाईकोर्ट में चारधाम देवस्थानम एक्ट को लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता व भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी की ओर से दायर जनहित याचिका पर फाइनल सुनवाई शुरू हो गई है।
नैनीताल, जेएनएन : हाईकोर्ट में चारधाम देवस्थानम एक्ट को लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता व भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी की ओर से दायर जनहित याचिका पर फाइनल सुनवाई शुरू हो गई है। सोमवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में वीसी के माध्यम से सुनवाई हुई। इस दौरान वीसी के माध्यम से स्वामी द्वारा कोर्ट में अपना पक्ष रख गया।
सरकार के शपथ पत्र के जवाब में स्वामी ने कहा है कि सरकार का ये फैसला संविधान की धारा 25, 26,व 31 के विरुद्ध है। उन्होंने यह भी कहा है कि मुख्यमंत्री समेत अन्य को बोर्ड में रखना गलत है, जबकि सरकार और अधिकारियों का काम अर्थ, कानून व्यवस्था की देखरेख करना है ना कि मंदिर चलाने का। अपनी दलील में स्वामी ने कहा कि मंदिर चलाने का काम तीर्थ पुरोहितों व भक्तों का है।
मंगलवार को खंडपीठ फिर मामले पर सुनवाई करेगी और सरकार व अन्य पक्षकार इस मामले में अपना पक्ष रखेंगे। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने चारधाम देवस्थानम एक्ट पास कर 51 मन्दिरों को इसमें शामिल किया जिसका पंडा पुरोहितों ने भारी विरोध किया था। हाईकोर्ट में सरकार के एक्ट को बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने ही चुनौती देते हुए कहा है कि राज्य सरकार का एक्ट असंवैधानिक है और सुप्रीम कोर्ट के 2014 के आदेश का उल्लंघन भी करता है। याचिका में कहा गया है कि सरकार को मन्दिर चलाने का कोई अधिकार नहीं है मन्दिर को भक्त या फिर उनके लोग ही चला सकते हैं लिहाजा सरकार के एक्ट को निरस्त किया जाए।
राज्य सरकार द्वारा दाखिल अपने जवाब में कहा गया कि सरकार के एक्ट पूरी तरह संवैधानिक है। यह एक्ट किसी के अधिकारों को कोई हनन नहीं करता है। इस पूरे मामले में देहरादून की रुलक संस्था ने भी प्रार्थना पत्र दाखिल किया है और सरकार के एक्ट का समर्थन किया है। इस पत्र में कहा गया है कि सरकार का एक्ट हिन्दू धार्मिक भावनाओं का हनन नहीं करता और संविधान के अनुच्छेद 14 का भी उल्लंघन नहीं करता है। श्री केदार सभा केदारनाथ के तीर्थ पुरोहितों ने भी इस मामले में याचिका दाखिल की है। याचिका में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष समेत अधिकारियों को बोर्ड में स्थान देने को चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि तीर्थ पुरोहितों के हक हकूको के अधिकारों को सुरक्षित करे बगैर एक्ट बनाया गया है ,जो की असंवैधानिक हैं।