स्क्वाड्रन लीडर मजीठिया ने 99 की उम्र में गोल्फ में 140 मीटर में होल इन वन कर दिखाया कमाल
99 वर्षीय डीएस मजीठिया को सीढ़ी से उतरते समय एक व्यक्ति ने हाथ पकड़ लिया तो गुस्से से बोले डोंट टच मी। आई एम नॉट ओल्ड मैन।
नैनीताल, किशोर जोशी : पिछले साल मई के अंतिम सप्ताह। दुनियां के सबसे ऊंचे गोल्फ कोर्स में शुमार नैनीताल का राजभवन गोल्फ कोर्स। 99 वर्षीय डीएस मजीठिया को सीढ़ी से उतरते समय एक व्यक्ति ने हाथ पकड़ लिया तो गुस्से से बोले, डोंट टच मी। आई एम नॉट ओल्ड मैन। फिर गोल्फ स्टिक हाथ मे ली और प्रैक्टिस मैच में 148 गज या करीब 140 मीटर में होल इन वन का कारनामा कर दिखाया। यह उनके जोश और गोल्फ के प्रति जूनून ही था कि एक बार में ही वह कर दिखाया जो, युवा गोल्फर घंटों पसीना बहाने के बाद नहीं कर पाते। यह कारनामा मजीठिया तीन बार कर चुके हैं। जबकि जिंदगी में एक बार यह उपलब्धि हासिल करना गोल्फर का सपना होता है।
नैनीताल के मल्लीताल शेरवानी क्षेत्र में हैरिटेज बिल्डिंग मोहन पार्क के स्वामी डीएस मजीठिया द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर देश के लिए अनेक युद्ध लड़ चुके हैं। मगर नैनीताल के लोग उन्हें गोल्फर के रूप में अधिक जानते हैं। पिछले साल उनकी कोठी में आग लग गई तो उसके बाद वह दिल्ली चले गए मगर तब तक रोज नौ से दस बजे तक गोल्फ कोर्स में उनकी मौजूदगी अपरिहार्य थी। राजभवन गोल्फ क्लब के सचिव रिटायर कर्नल हरीश साह बताते हैं कि सुपर वेटरन कैटेगरी में अकेले होने की वजह से होल इन वन को रिकॉर्ड नहीं माना गया। स्क्वाड्रन लीडर रहे मजीठिया भारतीय वायु सेना में सेवारत के दौरान से ही गोल्फ के शौकीन रहे।
हमेशा किया खेल नियमों का पालन
राजभवन गोल्फ क्लब की ओर से आयोजित होने वाले गवर्नर्स गोल्फ टूर्नामेंट में उन्होंने हमेशा हिस्सा लिया और उम्र के अंतिम पड़ाव में होने के बाद भी कभी कभी नियमों में ढील नहीं मांगी और नियमों के तहत ही खेल खेला। कर्नल साह बताते हैं कि उम्र के इस पड़ाव में उनका जोश और जुनून अद्भुत होने के साथ नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा है। गोल्फ खेल नहीं बल्कि उनकी जिंदगी है। गोल्फ खेलने का मौका नहीं मिलने पर उदास हो जाते थे। हमेशा नौ होल खेलते थे।
भयंकर तूफान में भी डिगा नहीं हौसला
नैनीताल यॉट क्लब के वरिष्ठ सदस्य वीर श्रीवास्तव के परिवार का मजीठिया के परिवार से तीन पीढ़ियों से गहरा नाता है। वीर के पिता एचके श्रीवास्तव मजीठिया गहरे दोस्त रहे। वीर ने मजीठिया के साथ नैनी झील में पाल नौकायन प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। मजीठिया वीर के क्रू अर्थात साथी रहे हैं। 80 के दशक से मजीठिया के साथ सेलिंग करना शुरू कर दिया था। वीर बताते हैं कि 1985 में सेलिंग के दौरान भयंकर तूफान आ गया तो उनकी नौका डूब गई। दो तीन मिनट तक दोनों पानी के भीतर एक दूसरे को तलाशते रहे। भयंकर लहरों में मजीठिया ने खुद के साथ ही वीर को सुरक्षित किनारे पहुंचा दिया। सचिव नैनीताल यॉट क्लब विशाल खन्ना ने बताया कि स्क्वाड्रन लीडर मजीठिया के साथ 1991 से नैनी झील में सेलिंग की। वह हमारे प्रेरणा स्रोत होने के साथ गॉडफादर भी हैं। पाल नौकायन में उनकी दक्षता हमेशा प्रेरित करती है।
द्वितीय विश्व युद्ध में सफल हॉकर हरिकेन फाइटर प्लेन उड़ाते थे मजीठिया
प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो अजय रावत बताते हैं कि डीएस मजीठिया द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पहले पायलट थे, जिन्होंने बर्मा फ्रंट में हॉकर हरिकेन फाइटर प्लेन उड़ाए। उन्हें इन फाइटर को उड़ाने की दक्षता हासिल थी। पहली अगस्त 1940 को उन्हें कमीशन मिला जबकि 18 मार्च 1947 को उन्होंने सेना से वीआरएस ले लिया। प्रो रावत बताते हैं कि मजीठिया परिवार के पास निजी हवाई जहाज भी थे। गोरखपुर सरदारनगर में चीनी मिल भी थी। गोरखपुर में बेहद लोकप्रिय रहे मजीठिया को सरकार की नीतियों की वजह से चीनी मिल बंद करनी पड़ी। हवा में उड़ने के शौकीन मजीठिया घूमने के लिए निजी हवाई जहाज में अक्सर गोरखपुर से काठमांडू चले जाते थे। प्रो रावत के अनुसार मजीठिया ने टाइगर मोथ एयरक्राफ्ट की ट्रेनिंग लाहौर में ली थी।