यादगार बना आसमानी आतिशबाजी का दिलकश नजारा, एस्ट्रोफोटाग्राफरों ने खींचीं तस्वीरें
जमीनी आतिशबाजी का नजारा तो आम है, पर कुदरती होने वाली आसमानी आतिशबाजी रोमांच से भर देती है।
नैनीताल, जेएनएन : जमीनी आतिशबाजी का नजारा तो आम है, पर कुदरती होने वाली आसमानी आतिशबाजी रोमांच से भर देती है। यही रोमांचक नजारा शुक्रवार तड़के देखने को मिला। खगोल प्रेमियों ने नजारे का भरपूर लुत्फ उठाया तो एस्ट्रोफोटोग्राफरों ने कैमरे में कैद कर इस खगोलीय घटना को यादगार बना लिया। वैज्ञानिक नजरिये से आसमानी आतिशबाजी यानी उल्कावृष्टि सामान्य खगोलीय घटना है। इन दिनों जेमीनीड शॉवर नामक आतिशबाजी हो रही है। इस घटना का चरम पर रहने का समय शुक्रवार की भोर का था। जिसमें एक घंटे में सौ से डेड़ सौ तक आसमान से गिरती उल्काओं को देखा गया। इसमें वैज्ञानिकों का पूर्वानुमान बिल्कुल सटीक बैठा। सैकड़ों उल्काओं की जमकर रंगबिरंगी बारिश हुई। इस रोमांचक घटना को कैमरे में कैद करने के लिए एस्ट्रो फोटोग्राफर भी पीछे नही रहे।
नैनीताल के एस्ट्रोफोटोग्राफर राजीव दूबे, हिमांशु जोशी और प्रांजल साह की टीम हनुमानगढ़ी के समीप पहुंच गई। जिसमें उन्होंने धरती की ओर जलकर गिरती उल्काओं को कैमरे में कैद किया। फोटोग्राफर राजीव दूबे ने बताया कि उल्कावृष्टि का नजारा सालों से लगातार देखते आ रहे हैं, पर पहली बार शानदार आतिशबाजी देखने को मिली। तीन घंटे के दौरान सैंकड़ों रंग बिरंगे रोमांचक नजारों का दीदार हुआ। 78 हजार मील प्रति घंटे की रफ्तार होती है उल्काओं की बारिश आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडे के अनुसार क्षुद्रग्रह फैतान के पृथ्वी के मार्ग पर छोड़ी गई उल्काएं यानी धूल-कंकड़ के जरिए जेमीनीड शॉवर उल्कावृष्टि होती है। इस क्षुद्रग्रह का आकार लगभग 1.4 मील है। 1983 में इसे खोजा गया था। इस खगोलीय घटना में उल्काएं 78 हजार मील प्रति घंटे की रफ्तार से गति से गुजरती हैं।
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