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वसंत पंचमी पर विशेष : घर की चौखट का आज गोबर व जौ से हुआ श्रृंगार

कुमाऊं के पर्वतीय इलाकों में वसंत पंचमी को मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस दिन हर आवासीय मकान या गौशाला की चौखट पर गोबर और जौ का श्रृंगार किया जाता है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 10 Feb 2019 12:24 PM (IST)Updated: Sun, 10 Feb 2019 09:16 PM (IST)
वसंत पंचमी पर विशेष : घर की चौखट का आज गोबर व जौ से हुआ श्रृंगार
वसंत पंचमी पर विशेष : घर की चौखट का आज गोबर व जौ से हुआ श्रृंगार

किशोर जोशी,  नैनीताल। कुमाऊं के पर्वतीय इलाकों में माघ पंचमी अर्थात वसंत पंचमी को रक्षाबंधन व हरेला पर्व की तरह मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस दिन हर आवासीय मकान या गौशाला की चौखट पर गोबर और जौ का श्रृंगार किया जाता है। पर्वतीय गांवों में मनाए जाने वाले लोक पर्व प्रकृति के साथ लगाव व रिश्तों की महत्ता व पवित्रता का संदेश देते हैं। माघ मास में बसंत पंचमी का लोकपर्व भी इनमें एक है। इस पर्व पर सुबह महिलाएं गोबर-मिट्टी से घर-आंगन, ओखल लीपने के बाद चौखट पर गोबर व जौ लगाती हैं। जौ को देवी देवता को चढ़ाने के बाद बहन-बेटियों द्वारा सिर पूजन किया जाता है।

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दशकों पहले तक विवाहित बेटियां इस पर्व पर मायके जरूर आती थीं, मगर आधुनिकता के दौर में अब यह परंपरा चंद गांवों तक सिमट गई है। संस्कृतिकर्मी बृजमोहन जोशी बताते हैं कि वसंत पंचमी प्रकृति प्रेम दर्शाता है। इस दिन से कुमाऊं में बैठकी होली का दूसरा चरण शुरू होता है। आयो नवल वसंत, सखी ऋतु राज कहायो...जैसे होली राग फिजां में गूंजते हैं। मकर संक्रांति को आरंभ बैठकी होली वसंत पंचमी के बाद श्रृंगार पर आधारित गाई जाती हैं। जोशी बताते हैं कि यह पर्व अन्न के महत्व को समझने का भी है।

पलायन व जंगली जानवरों से पड़ा खलल : कुमाऊं में गांव से तेजी से हो रहे पलायन तथा जंगली जानवरों के बढ़ते आतंक का असर लोक पर्वों पर भी पड़ा है। बंजर होती खेती की वजह से अब जौ की खेती नाम मात्र होती है। सैकड़ों गांवों में अब धान, गेहूं, मडुवा, बाजरा, कूंण, चौलाई, मादिरा के साथ जौ की खेती बंद हो चुकी है। इस वजह से वसंत पंचमी पर गांवों में अब मुख्य द्वार पर जौ, गोबर लगाने की परंपरा ही बंद हो गई है। बृजमोहन जोशी कहते हैं कि पहाड़ के लोगों को जड़ों की ओर लौटना ही होगा। यहां की परंपराएं, मान्यताओं का संरक्षण नहीं होगा तो इसका समाज पर नकारात्मक असर पडऩा तय है।

तुलसी के साथ उगाया जा रहा जौ : पहाड़ में खेती-बाड़ी चौपट हुई तो गांव में रह रहे लोग परंपरा निभाने को तुलसी के साथ जौ उगा रहे हैं। अब पुरोहित यजमानों के सिर पूजन के लिए जैसे-तैसे जौ का इंतजाम कर रहे हैं। तुलसी करीब-करीब हर घर में बोई जाती है वहीं तुलसी विवाह पर चढ़ाए गए जौ वसंत पंचमी तक उग जाते हैं। इनका उपयोग वसंत पंचमी को सिर पूजन के लिए किया जा रहा है।

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