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सड़क बंद होने से तीन महीने से कैदी की तरह जी रहे थे छह गांव के ग्रामीण, जानिये फिर क्या हुआ

जुलाई से बंद सड़क खोलने की सुध न तो प्रशासन ने ली और न ही विभाग सक्रिय हुआ। गोरीपार के अति दुर्गम के करीब छह गांवों के ग्रामीणों ने तीन माह का समय कैदी तरह जी रहे थे।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sat, 12 Oct 2019 11:20 AM (IST)Updated: Sat, 12 Oct 2019 08:45 PM (IST)
सड़क बंद होने से तीन महीने से कैदी की तरह जी रहे थे छह गांव के ग्रामीण, जानिये फिर क्या हुआ
सड़क बंद होने से तीन महीने से कैदी की तरह जी रहे थे छह गांव के ग्रामीण, जानिये फिर क्या हुआ

मदकोट (पिथौरागढ़), जेएनएन : जुलाई से बंद सड़क खोलने की सुध न तो प्रशासन ने ली और न ही विभाग सक्रिय हुआ। गोरीपार के अति दुर्गम माने जाने वाले ऊंचाई में स्थित करीब छह गांवों के ग्रामीणों ने तीन माह का समय कैदी की तरह बिता रहे थे। विभाग ने बीते दिनों मशीन लगाकर मदकोट से आगे सड़क खोली परंतु जौलढूंगा नामक स्थान तक खोलने के बाद मशीन हटा दी, जिसे लेकर खिन्न ग्रामीणों ने खुद श्रमदान कर शासन, प्रशासन को आईना दिखाते हुए सड़क को खोल दिया। यही नहीं इसके साथ ही सीमांत में आपदा राहत के नाम पर होने वाली कागजी कार्यवाही की पोल भी खोल दी।

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12 जुलाई को इस क्षेत्र में भारी बारिश हुई थी। बारिश से मदकोट-गोरीपार मार्ग बंद हो गया था। गोरीपार क्षेत्र को आजादी के 71 साल बाद सड़क मिली थी और सड़क एक साल चालू रहने के बाद आपदा से बंद हो गई। गोरीपार क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जहां मदकोट से पंचाचूली की तलहटी तक बसे गांव सीधी चढ़ाई पर बसे हैं। आपदा के चलते सड़क निर्माण के मलबे से गांवों के परंपरागत पैदल मार्ग भी ध्वस्त हो गए थे। पहाड़ में सबसे अत्यधिक ऊंचाई में बसे उच्छैती, धूरातोली, वादनी, ढीलम, फाफा जैसे गांवों के ग्रामीणों को 15 से 20 किमी तक की पैदल दूरी ध्वस्त मार्गों से होकर कर रहे थे।

बंद मार्गों को खोलने के लिए आपदा प्रबंधन के तहत इन्हें खोलने की कोई पहल ही नहीं की गई। ग्रामीणों ने मानसून काल के तीन माह कैदियों की तरह बिताए। बीते दिनों विभाग को मार्ग खोलने की सुध आई और मदकोट से जेसीबी मशीन लगाई गई। विभाग ने 14 किमी दूर जौलढूंगा तक मार्ग खोला। जौलढूंगा से आगे सात किमी मार्ग खोलने की जहमत नहीं उठाई। खिन्न ग्रामीणों ने खुद श्रमदान से जौलढूंगा से वादनी तक सड़क खोलने के लिए श्रमदान का निर्णय लिया और ग्रामीण श्रमदान से मार्ग खोलने में जुटे हैं। मनोज कोरंगा, गोपाल पाना, त्रिलोक कोरंगा, विनोद दानू व भवान पाना बताते हैं कि मदकोट बाजार आना मुश्किल हो गया था। गांव में नमक तक का अभाव हो चुका था। ग्रामीणों का आरोप है कि आपदा राहत के नाम पर सिर्फ कागजी खानापूरी होती है।

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