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श्रावण पूर्णिमा को श्रावणी उपाकर्म और संस्कृत दिवस के रूप में मनाया गया

श्रावण पूर्णिमा को श्रावणी उपाकर्म और संस्कृत दिवस के रूप में मनाया गया। श्री महादेव गिरि संस्कृत महाविद्यालय देवलचैड़ में शारीरिक दूरी का पालन करते हुए सप्त ऋषियों का तर्पण किया गय

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2020 05:02 PM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2020 05:02 PM (IST)
श्रावण पूर्णिमा को श्रावणी उपाकर्म और संस्कृत दिवस के रूप में मनाया गया
श्रावण पूर्णिमा को श्रावणी उपाकर्म और संस्कृत दिवस के रूप में मनाया गया

हल्द्वानी, जेएनएन : श्रावण पूर्णिमा को श्रावणी उपाकर्म और संस्कृत दिवस के रूप में मनाया गया। श्री महादेव गिरि संस्कृत महाविद्यालय देवलचैड़ में शारीरिक दूरी का पालन करते हुए सप्त ऋषियों का तर्पण किया गया। प्राचार्य डाॅ. नवीन चंद्र जोशी के निर्देशन में डाॅ. केसी जोशी, अशोक वाष्र्णेय आदि ने तर्पण करने के बाद नवीन जनेऊ धारण की। जनेऊ की गांठ में ब्रह्म और उसके धागों में सप्तऋषि का वास माना गया है।

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इसके बाद संस्कृत दिवस पर हुई विचार गोष्ठी में महाविद्यालय के अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी परेश यति महाराज ने कहा कि महान संत ब्रह्मलीन महादेव गिरि, महामंडलेश्वर बालकृष्ण यति ने कुमाऊं में संस्कृत शिक्षा का बीज बोने की दिशा में अहम योगदान दिया। उन्होंने कहा कि संस्कृत में संस्कार और संस्कृति निहित हैं। हमारी वाणी, कर्म आदि संस्कारों का परिचय देते हैं। श्रावण उपाकर्म पर उन्होंने कहा ऋषियों के समय से इसे मनाने की परंपरा रही है। चिकित्सा विज्ञान भी इसे मानता है। कोरोना महामारी रूपी राक्षस ने भारतीय पुरातन संस्कृति की महत्ता को एक बार फिर साबित किया है।

पुराने समय में बाहर से आने व भोजन करने से पहले हाथ-पांव धोने, भोजन के स्थान को लीपने की परंपरा रही है। कोरोना महामारी ने पुराने समय को लौटा दिया है। महाराज ने कहा कि लाॅकडाउन की वंदिशों ने वातावरण को शुद्ध और नदियों स्वच्छ बना दिया। मनुष्य ने भौतिक सुखों की चाह में प्रकृति के बनाए नियमों का उल्लंघन किया। जिससे कई तहत की प्राकृतिक असमानताएं पैदा हो गई। प्रकृति एक बार फिर नियम सिखा रही है।

व्यक्ति को अपना आचार, व्यवहार सुधारना होगा। डाॅक्टर भी बता रहे हैं कि हमारी दिनचर्या अनुशासित, आहार संतुलित व संयमित हो तो हमारी रोकप्रतिरोधक क्षमता मजबूत रहेगी। जिससे कोरोना और दूसरी बीमारियों से लड़ने में मदद मिलेगी। अगर हम नहीं चेते तो समय और प्रकृति खुद ही संतुलन साधन लगते हैं। इस दौरान सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य डॉ. रमेश चंद्र द्विवेदी, समर पाल सिंह चैधरी, अनिल मिश्रा आदि मौजूद रहे।


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